जलाराम का दान और प्रभु श्रीराम का चमत्कार : जलाराम ने अपने चाचा वालजी की दुकानदारी में सहयोग करना शुरू कर दिया था.प्रत्येक ग्राहक के साथ वे सम्मानपूर्वक व्यवहार करते थे."सबसे समभाव, सबके किये एक भाव" के सिद्धांत का वे अनुसरण करते थे.इसके कारण उनके चाचा के व्यवसाय में वृद्धि होने लगी.इनके यहाँ अगर कोई छोटा बच्चा भी ग्राहक बतौर आता तो ठ्गाता न था.इससे उनके धंधे की साख भी बढ़ने लगी थी.जिस जगह उनके चाचा वालजी की दुकान थी, उसके आसपास अन्य २० दुकानें भी थी.उसमे से चार दुकानें बनिए की, बाकी लोहाना और खोजा व्यापारियों की थीं.जलाराम की विश्वसनीयता की वजह से वालजी की दुकान में ग्राहकी बढ़ते देख कर पड़ोसी दुकानदारों को इर्ष्या होने लगी.वे जलाराम को उस दुकान से बाहर करवाने की साजिश रचने लगे.
उस ज़माने में भी वीरपुर गाँव होते हुए जूनागढ़,गिरनार जाने वाले श्रद्धालुओं और संत महात्माओं की आवाजाही लगी रहती थी.तीर्थयात्रा पर निकले लोगों के लिए वीरपुर गाँव सुविधाजनक पड़ाव हुआ करता था.भिक्षु साधुओं को भरोसा रहता था जलाराम उनके रूकने,खाने का प्रबंध अवश्य कर देंगे.
एक दिन सुबह का समय था.साफसफाई के बाद दुकानें खुली,तभी दर्जन भर साधुओं की एक मंडली बाजार आ पहुँची.दुकानदारों से वे भोजन उपलब्ध कराने की याचना करने लगे.सुबह बोहनी बट्टा न होने के कारण दुकानदारों का मूड वैसे ही खराब था.उन्होंने झिड़कते हुए कहा-"आगे चलो बाबा.सुबह सुबह माँगने आ जाते हो".
दुखी होकर एक साधुजन ने अपने साथियों से कहा-"इन लोगों से कुछ मिलने वाला नहीं है,वालजी की दुकान सामने ही है, उनका भतीजा जलाराम अगर आ गया होगा तो हमारे रहने खाने का प्रबंध आसानी से हो जाएगा".वहीं खड़े एक स्थानीय नागरिक ने भी सहमति जताते हुए कहा- "सेवाभावी जलाराम किसी को निराश नहीं करते.आप लोग इधर उधर मांगने के बजाय जलाराम के पास जाइए.आपका काम बन जाएगा".तत्पश्चात वे साधुजन वालजी की दुकान पहुँच गए.जलाराम दुकान में साफसफाई कर सामान सजा रहे थे.साधुजनों को देख कर वे प्रसन्न हो गए.उन्हें ऐसा लगा मानो सुबह के समय साक्षात प्रभु के दर्शन हो गए हों.उन्होंने हाथ जोड़कर नम्रता से कहा- "पधारिये बाबाजी, सेवक के लिए क्या आदेश है? मुझे आप लोगों की सेवा कर आंतरिक प्रसन्नता मिलेगी". मंडली के एक वयोवृद्ध साधुजन ने याचना भरे शब्दों में कहा-"बच्चा,हम लोग गोकुल मथुरा से आये हैं.
द्वारका की यात्रा पूर्ण कर अब हम लोग प्रभास पाटन ,जूनागढ़ और गिरनार जा रहे हैं.तू अगर हमारे भोजन और विश्राम का प्रबंध कर देगा,तो भगवान् तेरी मनोकामना पूरी करेगा, तेरा कल्याण करेगा".फिर लम्बी साँस लेकर
वह दुकान के सामने उकडू बैठ गया.जलाराम ने तपाक से कहा- "जो आज्ञा बाबाजी, आप लोग बिलकुल चिंता न करें, सब प्रबंध हो जाएगा.आप अपनी मंडली से कहिये वे रहवासे जाकर नित्य कर्म से निपट लें, और आप यहीं रूकिये,मैं भोजन की आवश्यक सामग्री निकालता हूँ".यह सुनते ही बुजुर्ग साधुजन प्रसन्न हो गए, सबने मिलकर जलाराम का जयघोष किया.फिर उस वयोवृद्ध साधुजन ने अपने साथियों से कहा-"आप लोग रहवासे जाइए,नहा धोकर आराम कीजिये,तब तक मैं सब सामान लेकर पहुंचता हूँ".
पड़ोस में एक बनिए की दुकान थी.वह जलाराम की प्रसिद्धि और उसके यहाँ ग्राहकी में वृद्धि देख कर इर्ष्या की आग में जल रहा था.जलाराम के पास भिक्षु साधुओं की टोली देख कर वह खिल उठा, उसे लगा आज अच्छा अवसर है
वालजी से जलाराम की चुगली करने का.उसे अंदाज था जलाराम इन साधुओं को कुछ न कुछ अवश्य देगा.चाचा
वालजी से कहकर जलाराम को वह रंगे हाथ पकड़वाना चाह रहा था,ताकि वे जलाराम को अपनी दुकान से बाहर निकाल दें.मन ही मन यह योजना बनाकर वह बनिया पड़ोसी दुकानदार फिर जलाराम के क्रियाकलापों पर नजरें
केन्द्रित किये रखा.
इधर,जलाराम बुजुर्ग साधुजन की मांग के अनुसार दुकान से समस्त खाद्य सामग्री निकालकर एकत्रित करने लगे. घी रखने के लिए साधुजन के पास कोई बर्तन नहीं था, इसलिए जलाराम ने दुकान का लोटा ही दे दिया.चावल,दाल आदि सामान को रखने के लिए दुकान में रखा कपड़ा भी दे दिया.बुजुर्ग साधुजन जलाराम की यह उदारता देख कर गदगद हो गया.वह एक एक कर सब सामान उठाने का प्रयास करने लगा.सामान ज्यादा था,
इसलिए उठाने में उसे परेशानी हो रही थी.एक सामान उठाए,तो दूसरा हाथ से गिर जाए.उनकी परेशानी देख कर
जलाराम बोले-"बाबाजी, रूकिये,इतना सामान आप अकेले नहीं उठा पायेंगे.मैं स्वयं इसे उठा कर आपके साथ छोड़ने चलता हूँ".उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा-"बच्चा,दुकान में तो तू अकेला है",जलाराम ने सहजता से कहा-"तो क्या हुआ, दुकान बंद कर मैं आपके साथ चलता हूँ." इतना कहकर जलाराम दुकान बंद करने लगे. उधर पड़ोसी बनिया दुकानदार यह सब गतिविधि छुपकर देख रहा था.वह इस मौके को हाथ से निकालने नहीं देना चाह रहा था.जैसे ही जलाराम सारा सामान उठाकर उस साधुजन के साथ रवाना हुए,वैसे ही पड़ोसी बनिया अपनी दुकान नौकर के हवाले कर चुगली करने की बदनीयत से जलाराम के चाचा वालजी के घर की तरफ फुर्ती से दौड़ा.
लेकिन बीच रास्ते में ही उसकी वालजी से भेंट हो गई.वालजी अपनी दुकान की तरफ ही जा रहे थे.बनिया दुकानदार ने हाँफते हुए कहा-"वालजी भाई,अच्छा हुआ यहीं मिल गए, मैं आप ही के घर जा रहा था.वालजी ने
उत्सुकतावश पूछा-"क्यों, क्या बात है?" बनिया ने कुटिलता से जवाब दिया-"अब क्या बताऊँ? आपके भतीजे जलाराम ने तो आपकी पूरी दुकान लुटा दी है.वालजी ने चौंकते हुए कहा-"क्या बात कर रहे हो? बनिया ने दांव लगता देख सरपट कहा-" मैं सौ टका सही कह रहा हूँ,सुबह सुबह आपकी दुकान में साधुओं का एक जत्था आया था,आपके लाडले भतीजे जलाराम ने दुकान से भारी मात्रा में खाने का सामान मुफ्त में उन्हें दिया है, और तो और
दुकान बंद कर सारा सामान खुद उठा कर उनको पहुँचाने साथ गया है." बनिया मिर्चमसाला लगाकर पूरा घटनाक्रम बताने लगा.पहले की दो चार झूठी घटनाएँ भी बताई.यह सब लगीबुझाई सुन कर वालजी का माथा
ठनका.आँखें लाल हो गई.हालांकि वे अपने भतीजे जलाराम की भावनाओं और कार्यों से वाकिफ थे,लेकिन एक साथ दर्जन भर साधुओं के रहने खाने के प्रबंध की बात सुनकर वे आगबबूला हो गए.उनको महसूस हुआ भतीजा
जलाराम उनके लगाव और छूट का गलत लाभ उठा रहा है.
फिर जलाराम को सबक सिखाने वालजी और बनिया दुकानदार साधुओं के रहवासे की तरफ चल पड़े.थोड़े ही दूर पहुंचे तो उन्होंने बुजुर्ग साधुजन और जलाराम को जाते देख जोर से पुकारा-"अरे जला,रूक जला,जा किधर रहा है?"चाचा की पुकार सुन कर जलाराम वहीं खड़े रह गए साधुजन ने जलाराम से पूछा-"बच्चा,कौन है यह आदमी ?"जलाराम ने शांत भाव से जवाब दिया-"यह मेरे वालजी काका हैं,इन्हीं की दुकान मैं सम्हालता हूँ".यह सुनकर
वे भयग्रस्त हो गए.साधुजन वालजी के तेवर से सहम गए,उन्हें आशंका हुई जलाराम पर आज चाचा का गुस्सा
बरपेगा.उन्हें जलाराम से मदद लेने का अफ़सोस होने लगा.वे बोले-"बच्चा, यह सब सामान हमें नहीं चाहिए, तू इसे
वापस दुकान में रखने चला जा.तेरे जैसे सेवक पर कोई संकट आये, यह हमें देखा नहीं जाएगा".यह सुनकर जलाराम मुस्कुराए. उनकी मुस्कान अर्थपूर्ण थी. उन्होंने केवल इतना ही कहा-"जैसी प्रभु श्रीराम की इच्छा".फिर
वे भगवान् श्रीराम को मन ही मन याद करते हुए उनसे मौजूदा स्थिति से बचाव की प्रार्थना की.
तब तक चाचा वालजी और बनिया समीप आ गए.पास आते ही वालजी ने गुस्से में भतीजे से पूछा-"जला,इस गठरी में क्या लेकर जा रहा है?" जलाराम के मुंह से अपने आप यह शब्द निकले- "काका,छेना के सिवाय इसमें और क्या हो सकता है?" चाचा ने तमतमाते हुए कहा-"जला, अब ज्यादा नादाँ मत बन, इस सेठ ने मुझे सब कुछ बता दिया है, दिखा तेरी गठरी". जलाराम ने बिना डरे उस गठरी को दिखाया.तो सचमुच उसमे छेना ही निकला.यह चमत्कार देख कर साधुजन सहित सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए.इस दरम्यान तमाशबीनों की भीड़ जुट गयी थी.वहां उपस्थित सभी लोगों को यह दृश्य देख कर लगा जलाराम वास्तव में एक सच्चा भक्त है.यह बनिया नाहक ही चाचा वालजी को भड़का कर यहाँ तक साथ ले आया था.इस चमत्कार को देख कर क्षण भर के लिए उस बनिए का भी माथा चकरा गया.वालजी के गुस्से से बनिया अनभिज्ञ न था,वे उसे कुछ बोले,इससे पहले ही उसने वालजी को उचकाया- "वालजी भाई, जला से पूछो, इस लोटे में क्या है?" चाचा ने पूछा-" हाँ जला, इस लोटे में क्या लेकर जा रहा है?" जलाराम ने मासूमियत से कहा- " काका, लोटे में तो पानी ही होगा न?" बनिया दुकानदार चाचा भतीजे के बीच में आकर आँख तरेरते हुए कहा-"जला, झूठ मत बोल, इसके भीतर कोई पानी वाणी नहीं है.इसमें घी है. मैंने अपनी आँखों से तुझे इस लोटे में घी डालते हुए देखा है".सबको लगा जलाराम अब फंसे. जलाराम ने चुपचाप वह लोटा चाचा के सामने रख दिया. देखा तो, वास्तव में उसके भीतर शुद्ध पानी था.लोटा झुकाया तो पानी की धार बही.लोटे में घी के बदले पानी देख कर सब अचंभित रह गए.बनिया का चहेरा देखने लायक था.वह सन्न रह गया.काटो तो खून नहीं.उसका दांव ऐसा उलटा पडेगा,कल्पना न थी.अपने मुंह से गुड के बदले छेना और घी की जगह पानी जैसे शब्द कैसे निकल पड़े यह स्वयं जलाराम को समझ नहीं आया."यह सब प्रभु की माया है" ,ऐसा मन ही मन बोलकर जलाराम ने चाचा की तरफ देखा. चाचा को भी कुछ समझ में नहीं आया. उन्होंने भतीजे से कहा-"जला, जा यह सामान रख कर कर जल्दी आ".जलाराम ने रहस्यभरी मुस्कान के साथ जवाब दिया-"जैसी आपकी आज्ञा".जलाराम साधुजन के साथ चल पड़े.उन्हें लग रहा था प्रभु का सच्चा भक्त उनके साथ चल रहा है.आशीर्वाद देते हुए वे बोले-"प्रभु सब जगह मौजूद है, उन्होंने हम दोनों की लाज बचा ली. भगवान तेरा भला करे".
रहवास पहुँच कर जब साधुजन ने गठरी और लोटे के अन्दर देखा तो आँखें फटी की फटी रह गई. जो भी सामान
जलाराम की दुकान से लाया गया था वह वैसा का वैसा ही था.साधुजन ने खुशी के मारे जलाराम को गले लगा लिया और बोले-" बच्चा, जो हमने अब तक नहीं पाया है,वह तूने पा लिया है".सभी साधुओं ने फिर एक बार जलाराम को आशीर्वाद दिया.
उधर, बनिया परेशान भाव से चाचा वालजी के पीछे पीछे दुकान की तरफ जा रहा था.दुकान के पास आते ही उसने
वालजी से अपने मन की दुविधा बताई- "वालजी भाई,मैंने ध्यान से खुद जलाराम को घी सहित खाद्य सामग्री साधुजन को देते हुए देखा था. मेरी ऑंखें धोखा नहीं खा सकती.वालजी ने संतोष भरे स्वर में कहा-" अब सब कुछ तो स्पष्ट हो गया है". बनिया ने अंतिम पांसा फेंकते हुए कहा-"मुझे तो लगता है यह सब उस साधुजन की नजरबंदी
की करामात है.खैर जाने दो, दुकान जाकर सभी सामानों की गिनती और पड़ताल करोगे तो सब पता लग जाएगा".
वालजी ने कहा-"चलो यह भी करके देख लेते है.तुम्हें संतोष हो जाएगा.दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा".दोनों
दुकान पहुंचे.पीछे पीछे तमाशबीन भी पहुँच गए. चाचा वालजी ने अपनी दुकान में एक एक सामान की गिनती की,
तुलाई की, कपड़ों का मापजोख किया,लेकिन सब कुछ पहले जैसा था.कोई वस्तु कम न थी.यह सब चमत्कार देख कर पड़ोसी बनिया सर झुका कर चुपचाप वहां से चले जाने में अपनी भलाई समझी.फिर मन ही मन यह कसम
खाई दुबारा जलाराम के मामले में नहीं पडूंगा. ( जारी .... ) .
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उस ज़माने में भी वीरपुर गाँव होते हुए जूनागढ़,गिरनार जाने वाले श्रद्धालुओं और संत महात्माओं की आवाजाही लगी रहती थी.तीर्थयात्रा पर निकले लोगों के लिए वीरपुर गाँव सुविधाजनक पड़ाव हुआ करता था.भिक्षु साधुओं को भरोसा रहता था जलाराम उनके रूकने,खाने का प्रबंध अवश्य कर देंगे.
एक दिन सुबह का समय था.साफसफाई के बाद दुकानें खुली,तभी दर्जन भर साधुओं की एक मंडली बाजार आ पहुँची.दुकानदारों से वे भोजन उपलब्ध कराने की याचना करने लगे.सुबह बोहनी बट्टा न होने के कारण दुकानदारों का मूड वैसे ही खराब था.उन्होंने झिड़कते हुए कहा-"आगे चलो बाबा.सुबह सुबह माँगने आ जाते हो".
दुखी होकर एक साधुजन ने अपने साथियों से कहा-"इन लोगों से कुछ मिलने वाला नहीं है,वालजी की दुकान सामने ही है, उनका भतीजा जलाराम अगर आ गया होगा तो हमारे रहने खाने का प्रबंध आसानी से हो जाएगा".वहीं खड़े एक स्थानीय नागरिक ने भी सहमति जताते हुए कहा- "सेवाभावी जलाराम किसी को निराश नहीं करते.आप लोग इधर उधर मांगने के बजाय जलाराम के पास जाइए.आपका काम बन जाएगा".तत्पश्चात वे साधुजन वालजी की दुकान पहुँच गए.जलाराम दुकान में साफसफाई कर सामान सजा रहे थे.साधुजनों को देख कर वे प्रसन्न हो गए.उन्हें ऐसा लगा मानो सुबह के समय साक्षात प्रभु के दर्शन हो गए हों.उन्होंने हाथ जोड़कर नम्रता से कहा- "पधारिये बाबाजी, सेवक के लिए क्या आदेश है? मुझे आप लोगों की सेवा कर आंतरिक प्रसन्नता मिलेगी". मंडली के एक वयोवृद्ध साधुजन ने याचना भरे शब्दों में कहा-"बच्चा,हम लोग गोकुल मथुरा से आये हैं.
द्वारका की यात्रा पूर्ण कर अब हम लोग प्रभास पाटन ,जूनागढ़ और गिरनार जा रहे हैं.तू अगर हमारे भोजन और विश्राम का प्रबंध कर देगा,तो भगवान् तेरी मनोकामना पूरी करेगा, तेरा कल्याण करेगा".फिर लम्बी साँस लेकर
वह दुकान के सामने उकडू बैठ गया.जलाराम ने तपाक से कहा- "जो आज्ञा बाबाजी, आप लोग बिलकुल चिंता न करें, सब प्रबंध हो जाएगा.आप अपनी मंडली से कहिये वे रहवासे जाकर नित्य कर्म से निपट लें, और आप यहीं रूकिये,मैं भोजन की आवश्यक सामग्री निकालता हूँ".यह सुनते ही बुजुर्ग साधुजन प्रसन्न हो गए, सबने मिलकर जलाराम का जयघोष किया.फिर उस वयोवृद्ध साधुजन ने अपने साथियों से कहा-"आप लोग रहवासे जाइए,नहा धोकर आराम कीजिये,तब तक मैं सब सामान लेकर पहुंचता हूँ".
पड़ोस में एक बनिए की दुकान थी.वह जलाराम की प्रसिद्धि और उसके यहाँ ग्राहकी में वृद्धि देख कर इर्ष्या की आग में जल रहा था.जलाराम के पास भिक्षु साधुओं की टोली देख कर वह खिल उठा, उसे लगा आज अच्छा अवसर है
वालजी से जलाराम की चुगली करने का.उसे अंदाज था जलाराम इन साधुओं को कुछ न कुछ अवश्य देगा.चाचा
वालजी से कहकर जलाराम को वह रंगे हाथ पकड़वाना चाह रहा था,ताकि वे जलाराम को अपनी दुकान से बाहर निकाल दें.मन ही मन यह योजना बनाकर वह बनिया पड़ोसी दुकानदार फिर जलाराम के क्रियाकलापों पर नजरें
केन्द्रित किये रखा.
इधर,जलाराम बुजुर्ग साधुजन की मांग के अनुसार दुकान से समस्त खाद्य सामग्री निकालकर एकत्रित करने लगे. घी रखने के लिए साधुजन के पास कोई बर्तन नहीं था, इसलिए जलाराम ने दुकान का लोटा ही दे दिया.चावल,दाल आदि सामान को रखने के लिए दुकान में रखा कपड़ा भी दे दिया.बुजुर्ग साधुजन जलाराम की यह उदारता देख कर गदगद हो गया.वह एक एक कर सब सामान उठाने का प्रयास करने लगा.सामान ज्यादा था,
इसलिए उठाने में उसे परेशानी हो रही थी.एक सामान उठाए,तो दूसरा हाथ से गिर जाए.उनकी परेशानी देख कर
जलाराम बोले-"बाबाजी, रूकिये,इतना सामान आप अकेले नहीं उठा पायेंगे.मैं स्वयं इसे उठा कर आपके साथ छोड़ने चलता हूँ".उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा-"बच्चा,दुकान में तो तू अकेला है",जलाराम ने सहजता से कहा-"तो क्या हुआ, दुकान बंद कर मैं आपके साथ चलता हूँ." इतना कहकर जलाराम दुकान बंद करने लगे. उधर पड़ोसी बनिया दुकानदार यह सब गतिविधि छुपकर देख रहा था.वह इस मौके को हाथ से निकालने नहीं देना चाह रहा था.जैसे ही जलाराम सारा सामान उठाकर उस साधुजन के साथ रवाना हुए,वैसे ही पड़ोसी बनिया अपनी दुकान नौकर के हवाले कर चुगली करने की बदनीयत से जलाराम के चाचा वालजी के घर की तरफ फुर्ती से दौड़ा.
लेकिन बीच रास्ते में ही उसकी वालजी से भेंट हो गई.वालजी अपनी दुकान की तरफ ही जा रहे थे.बनिया दुकानदार ने हाँफते हुए कहा-"वालजी भाई,अच्छा हुआ यहीं मिल गए, मैं आप ही के घर जा रहा था.वालजी ने
उत्सुकतावश पूछा-"क्यों, क्या बात है?" बनिया ने कुटिलता से जवाब दिया-"अब क्या बताऊँ? आपके भतीजे जलाराम ने तो आपकी पूरी दुकान लुटा दी है.वालजी ने चौंकते हुए कहा-"क्या बात कर रहे हो? बनिया ने दांव लगता देख सरपट कहा-" मैं सौ टका सही कह रहा हूँ,सुबह सुबह आपकी दुकान में साधुओं का एक जत्था आया था,आपके लाडले भतीजे जलाराम ने दुकान से भारी मात्रा में खाने का सामान मुफ्त में उन्हें दिया है, और तो और
दुकान बंद कर सारा सामान खुद उठा कर उनको पहुँचाने साथ गया है." बनिया मिर्चमसाला लगाकर पूरा घटनाक्रम बताने लगा.पहले की दो चार झूठी घटनाएँ भी बताई.यह सब लगीबुझाई सुन कर वालजी का माथा
ठनका.आँखें लाल हो गई.हालांकि वे अपने भतीजे जलाराम की भावनाओं और कार्यों से वाकिफ थे,लेकिन एक साथ दर्जन भर साधुओं के रहने खाने के प्रबंध की बात सुनकर वे आगबबूला हो गए.उनको महसूस हुआ भतीजा
जलाराम उनके लगाव और छूट का गलत लाभ उठा रहा है.
फिर जलाराम को सबक सिखाने वालजी और बनिया दुकानदार साधुओं के रहवासे की तरफ चल पड़े.थोड़े ही दूर पहुंचे तो उन्होंने बुजुर्ग साधुजन और जलाराम को जाते देख जोर से पुकारा-"अरे जला,रूक जला,जा किधर रहा है?"चाचा की पुकार सुन कर जलाराम वहीं खड़े रह गए साधुजन ने जलाराम से पूछा-"बच्चा,कौन है यह आदमी ?"जलाराम ने शांत भाव से जवाब दिया-"यह मेरे वालजी काका हैं,इन्हीं की दुकान मैं सम्हालता हूँ".यह सुनकर
वे भयग्रस्त हो गए.साधुजन वालजी के तेवर से सहम गए,उन्हें आशंका हुई जलाराम पर आज चाचा का गुस्सा
बरपेगा.उन्हें जलाराम से मदद लेने का अफ़सोस होने लगा.वे बोले-"बच्चा, यह सब सामान हमें नहीं चाहिए, तू इसे
वापस दुकान में रखने चला जा.तेरे जैसे सेवक पर कोई संकट आये, यह हमें देखा नहीं जाएगा".यह सुनकर जलाराम मुस्कुराए. उनकी मुस्कान अर्थपूर्ण थी. उन्होंने केवल इतना ही कहा-"जैसी प्रभु श्रीराम की इच्छा".फिर
वे भगवान् श्रीराम को मन ही मन याद करते हुए उनसे मौजूदा स्थिति से बचाव की प्रार्थना की.
तब तक चाचा वालजी और बनिया समीप आ गए.पास आते ही वालजी ने गुस्से में भतीजे से पूछा-"जला,इस गठरी में क्या लेकर जा रहा है?" जलाराम के मुंह से अपने आप यह शब्द निकले- "काका,छेना के सिवाय इसमें और क्या हो सकता है?" चाचा ने तमतमाते हुए कहा-"जला, अब ज्यादा नादाँ मत बन, इस सेठ ने मुझे सब कुछ बता दिया है, दिखा तेरी गठरी". जलाराम ने बिना डरे उस गठरी को दिखाया.तो सचमुच उसमे छेना ही निकला.यह चमत्कार देख कर साधुजन सहित सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए.इस दरम्यान तमाशबीनों की भीड़ जुट गयी थी.वहां उपस्थित सभी लोगों को यह दृश्य देख कर लगा जलाराम वास्तव में एक सच्चा भक्त है.यह बनिया नाहक ही चाचा वालजी को भड़का कर यहाँ तक साथ ले आया था.इस चमत्कार को देख कर क्षण भर के लिए उस बनिए का भी माथा चकरा गया.वालजी के गुस्से से बनिया अनभिज्ञ न था,वे उसे कुछ बोले,इससे पहले ही उसने वालजी को उचकाया- "वालजी भाई, जला से पूछो, इस लोटे में क्या है?" चाचा ने पूछा-" हाँ जला, इस लोटे में क्या लेकर जा रहा है?" जलाराम ने मासूमियत से कहा- " काका, लोटे में तो पानी ही होगा न?" बनिया दुकानदार चाचा भतीजे के बीच में आकर आँख तरेरते हुए कहा-"जला, झूठ मत बोल, इसके भीतर कोई पानी वाणी नहीं है.इसमें घी है. मैंने अपनी आँखों से तुझे इस लोटे में घी डालते हुए देखा है".सबको लगा जलाराम अब फंसे. जलाराम ने चुपचाप वह लोटा चाचा के सामने रख दिया. देखा तो, वास्तव में उसके भीतर शुद्ध पानी था.लोटा झुकाया तो पानी की धार बही.लोटे में घी के बदले पानी देख कर सब अचंभित रह गए.बनिया का चहेरा देखने लायक था.वह सन्न रह गया.काटो तो खून नहीं.उसका दांव ऐसा उलटा पडेगा,कल्पना न थी.अपने मुंह से गुड के बदले छेना और घी की जगह पानी जैसे शब्द कैसे निकल पड़े यह स्वयं जलाराम को समझ नहीं आया."यह सब प्रभु की माया है" ,ऐसा मन ही मन बोलकर जलाराम ने चाचा की तरफ देखा. चाचा को भी कुछ समझ में नहीं आया. उन्होंने भतीजे से कहा-"जला, जा यह सामान रख कर कर जल्दी आ".जलाराम ने रहस्यभरी मुस्कान के साथ जवाब दिया-"जैसी आपकी आज्ञा".जलाराम साधुजन के साथ चल पड़े.उन्हें लग रहा था प्रभु का सच्चा भक्त उनके साथ चल रहा है.आशीर्वाद देते हुए वे बोले-"प्रभु सब जगह मौजूद है, उन्होंने हम दोनों की लाज बचा ली. भगवान तेरा भला करे".
रहवास पहुँच कर जब साधुजन ने गठरी और लोटे के अन्दर देखा तो आँखें फटी की फटी रह गई. जो भी सामान
जलाराम की दुकान से लाया गया था वह वैसा का वैसा ही था.साधुजन ने खुशी के मारे जलाराम को गले लगा लिया और बोले-" बच्चा, जो हमने अब तक नहीं पाया है,वह तूने पा लिया है".सभी साधुओं ने फिर एक बार जलाराम को आशीर्वाद दिया.
उधर, बनिया परेशान भाव से चाचा वालजी के पीछे पीछे दुकान की तरफ जा रहा था.दुकान के पास आते ही उसने
वालजी से अपने मन की दुविधा बताई- "वालजी भाई,मैंने ध्यान से खुद जलाराम को घी सहित खाद्य सामग्री साधुजन को देते हुए देखा था. मेरी ऑंखें धोखा नहीं खा सकती.वालजी ने संतोष भरे स्वर में कहा-" अब सब कुछ तो स्पष्ट हो गया है". बनिया ने अंतिम पांसा फेंकते हुए कहा-"मुझे तो लगता है यह सब उस साधुजन की नजरबंदी
की करामात है.खैर जाने दो, दुकान जाकर सभी सामानों की गिनती और पड़ताल करोगे तो सब पता लग जाएगा".
वालजी ने कहा-"चलो यह भी करके देख लेते है.तुम्हें संतोष हो जाएगा.दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा".दोनों
दुकान पहुंचे.पीछे पीछे तमाशबीन भी पहुँच गए. चाचा वालजी ने अपनी दुकान में एक एक सामान की गिनती की,
तुलाई की, कपड़ों का मापजोख किया,लेकिन सब कुछ पहले जैसा था.कोई वस्तु कम न थी.यह सब चमत्कार देख कर पड़ोसी बनिया सर झुका कर चुपचाप वहां से चले जाने में अपनी भलाई समझी.फिर मन ही मन यह कसम
खाई दुबारा जलाराम के मामले में नहीं पडूंगा. ( जारी .... ) .
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doing very gud job dinesh ji badhai............
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