छोटे गंज से छः सौ लोगों को दूध परोसने का चमत्कार : जलाराम बापा जितने अपने श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रिय थे, उतने ही संत महात्माओं के भी प्रिय पात्र थे. चलाडा गाँव के दाना भगत जलाराम बापा के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे. एक दिन दाना भगत के साथ ऐसी घटना घटी, जिससे उनका मन दुखी हो गया. शाम ढल रही थी. दाना भगत अपने घर में अथितियों को स्वल्पाहार करा रहे थे. कुछ अनुयायी उनके दर्शनार्थ आंगन में बैठ कर प्रतीक्षा कर रहे थे. एकाएक दरवाजे पर दाना भगत को जोर की हुंकार सुनाई दी. अगले ही पल धडधडाते हुए कुछ सशस्त्र काठी दरबारी घर के भीतर जबरिया तौर पर घुस आये. आते ही इनके तलवार धारी मुखिया ने दाना भगत से पूछा- "कहाँ है तुम्हारा दाना भगत?, बुलाओ उसे, बहुत माल इकट्ठा कर रखा है उसने". दाना भगत ने शांतचित्त होकर कहा- "यहाँ कैसे आना हुआ आप लोगों का?, मुझे नहीं पहचानते हो क्या? मैं ही दाना भगत हूँ. बताइये मैं आप लोगों की क्या सेवा कर सकता हूँ". काठी दरबारी के मुखिया ने तलवार को हवा में लहराते हुए व्यंगात्मक लहजे में कहा- "ऐसा क्या, तो तुम हो दाना भगत. ढोंगी भगत बन कर पूरे गाँव को बेवकूफ बना कर बहुत धन जमा कर लिए हो. बाहर निकालो उसे". दाना भगत उन्हें उलाहना देते हुए बोले- "अरे दुष्टों, लूटपाट करने के लिए तुम्हें और कोई घर नहीं मिला, जो मेरे जैसे फक्कड़ भगत के यहाँ चले आये. अपना समय क्यों बर्बाद करने यहाँ आ गए. यहाँ तुम्हें निराशा ही हाथ लगेगी". मुखिया ने अपनी मूछों को ऐठते हुए कहा- "ढोंगी भगत, हमने सुना है बहुत माल है तुम्हारे पास. उसे आज और अभी हल्का किये देते हैं". दाना भगत ने खुलासा करते हुए जवाब दिया- "हाँ, बहुत धन मैंने एकत्रित किया है, किन्तु वह ज्ञान और धर्म का धन है. इसे तो मैं सबको खुले हाथों से बांटता हूँ. चाहो तो तुम भी ले लो, हो सकता है इससे तुम्हारा भी जीवन सुधर जाए". मुखिया ने झल्लाते हुए गुस्से से कहा- "ये सब गोलमाल बातें करना बंद करो और माल मेरे सामने लाकर रखो", दाना भगत बोले- "तुमको जब मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा है तो मैं क्या कर सकता हूँ". मुखिया ने उन्हें धमकाते हुए कहा- "अब जो करना हैं, हम ही करेंगे. तुम चुपचाप यहीं खड़े रहो". इतना कहकर मुखिया ने अपने साथियों को भीतर जाकर धन ले आने का आदेश दिया. फिर उसके साथी जबरन अन्दर घुस कर तलाशी करने लगे. जो भी कीमती सामान दिखा, उसे गठरी में बाँध कर बाहर ले आये.
जब वे लुटेरे काठी दरबारी और मुखिया सामान लूट कर जाने लगे तो दाना भगत ने दुखी होकर उन्हें श्राप दिया- "यहाँ लूटमार कर तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया है. तुम लोगों ने केवल सामान ही नहीं लूटा है, बल्कि यहाँ की प्रतिष्ठा भी लूटी है. भगवान् तुम लोगों को कभी क्षमा नहीं करेंगे. भगवान् तुम लोगों को इसका दंड अवश्य देंगे. तुम लोग जेतपुर के दबंग कर्णधार हो, इस भ्रम में न रहना. तुम्हारे यहाँ भी ऐसी लूट होगी, जीवन भर तुम लोग याद रखोगे. आज ही मैं अपने भगवान् से प्रार्थना कर तुम लोगों को दण्डित करवाउंगा". लुटेरों के मुखिया ने दाना भगत का उपहास उड़ाते हुए कहा- "हमें भगवान् से दंड दिलाओगे. ठीक है, वो भी देख लेंगे तुम्हारा भगवान् हमारा क्या बिगाड़ता है". अपने मुखिया के समर्थन में काठी दरबारियों ने भी जोर से ठहाके लगाए फिर हवा में तलवार लहराते हुए लूटा हुआ सामान उठा कर घोड़े में लादा और जेतपुर की तरफ सरपट भाग गए.
अभी कुछ ही दिन बीते थे, दाना भगत के श्राप का असर दिखना शुरू हो गया. लुटेरे मुखिया सहित काठी दरबारियों के घर रोज कोई न कोई परेशानी पैदा होने लगी. आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगा. परिवार के सदस्यों
की क्रमशः मृत्यु होने लगी. मुखिया के दोनों पुत्रों की मौत हो गई. इनका वंश ख़त्म होने लगा. सभी लुटेरों को दाना भगत द्वारा दिए गए श्राप का अहसास होने लगा. फिर सबने मिल कर यह तय किया दाना भगत से लूटा सारा सामान उन्हें सम्मान के साथ वापस लौटा दिया जाय और उनसे माफी मांग ली जाय. तत्काल वे सभी सामान लेकर दाना भगत के गाँव के लिए रवाना हो गए.
जब वे लोग दाना भगत के घर पहुंचे तब दाना भगत भगवान के नाम की माला जप रहे थे. आते ही सबने दाना भगत के चरण स्पर्श किये और सामान लौटाते हुए अपने कृत्य की माफी माँगी. मुखिया ने हाथ जोड़ कर प्रायश्चित करते हुए कहा- "भगत जी, आपके यहाँ लूटपाट कर हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई, हम सबको क्षमा कर दीजिये. भगवान् ने हमें दंड दे दिया है. हमें अपने इस गलत काम के लिए बहुत पछतावा हो रहा है, आप जो सजा देंगे हमें मंजूर है, किन्तु अपना श्राप वापस ले लीजिये और जेतपुर आकर आप हमें उपकृत कीजिये.". दाना भगत ने शांत भाव से जवाब दिया- "सुनो भाइयो, मैंने तुम लोगों को पहले चेताया था लूटमार मत करो, तुम्हारा ही नुकसान होगा. परन्तु तुम लोग माने नहीं. श्राप मैंने नहीं, भगवान् ने दिया है, मैं तो केवल एक माध्यम हूँ. मैं तुम लोग की सहायता नहीं कर सकता". मुखिया उनके पैरों में गिर कर रोते हुए मान मनौव्वल करने लगा. दाना भगत पसीज गए. उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करते हुए कहा- "ठीक है, भगवान की जैसी इच्छा. मैं तुम लोगों की सहायता करूंगा. अगले सप्ताह मैं तुम्हारे गाँव जेतपुर आउंगा, लेकिन तुम लोगो को वीरपुर जाकर जलाराम बापा को भी जेतपुर आने का ससम्मान निमंत्रण देना होगा". मुखिया ने राहत भरी सांस ली फिर उसने आभार जताते हुए कहा- "भगत जी, आपका हर आदेश हमें स्वीकार है, आपने हमारी सहायता करने का वचन देकर बड़ा
उपकार किया है, हम आपके जीवन भर आभारी रहेंगे". तत्पश्चात वे सभी दाना भगत की आज्ञा लेकर लौट गए.
एक सप्ताह बाद दाना भगत अपने वचन के मुताबिक़ जेतपुर के काठी दरबारियों के यहाँ पहुँच गए. उधर, वीरपुर से जलाराम बापा भी जेतपुर पहुँच गए. जेतपुर वीरपुर गाँव की सीमा के समीप होने के कारण जलाराम बापा को आने में ज्यादा समय नहीं लगा. सौराष्ट्र के प्रख्यात दो संतों के मिलन से पूरा जेतपुर गाँव प्रसन्नचित्त था. जेतपुर के काठी दरबारियों के श्राप का निवारण करने के लिए दाना भगत और जलाराम बापा जैसे दो महान संत पधारे हैं, यह जान कर आसपास के क्षेत्रों से भी करीब छह सौ लोग श्रद्धा वश इकट्ठे हो गए.
दोपहर का समय था. सब लोग भोजन करने बैठे थे. काठी दरबारियों में भोजन के वक़्त दूध पिलाने का चलन था. मुखिया चिंतित था. उसे समझ नहीं आ रहा था सबको दूध कैसे पिलाया जाय. करीब छः सौ लोग इकट्ठे हो जायेंगे, इसकी कल्पना न थी. एक सेवक ने मुखिया को दूध का छोटा गंज दिखाते हुए पूछा- "इतना दूध सबको कैसे पूरेगा". उधर, दाना भगत और जलाराम बापा खटिया में बैठे हुए थे. दोनों संत मुखिया की परेशानी भांप गए. दाना भगत ने मुखिया को इशारे से अपने पास बुलाया और उससे बोले- "भाई, मेहमानों को दूध जल्दी परोसो".
मुखिया ने चिंतित होते जवाब दिया- "लेकिन भगत जी, इतना कम दूध सबको कैसे पूरेगा?". दाना भगत ने मुस्कुराते हुए कहा- "दूध का गंज जलाराम बापा को दे दो, वे स्वयं सबको परोस देंगे". फिर जलाराम बापा को दूध का गंज परोसने के लिए सौंप दिया गया. जलाराम बापा ने प्रभु श्रीराम का नाम लेकर पंगत में बैठे लोगों को दूध परोसना शुरू किया. शुरूआत दाना भगत से की. देखते ही देखते जलाराम बापा ने उस छोटे गंज से ही करीब छः सौ लोगों को दूध परोस दिया. यह अजूबा देख कर मुखिया समेत सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए. जलाराम बापा के इस चमत्कार की खबर पूरे जेतपुर गाँव में तेजी से फ़ैल गई. ग्रामवासी जलाराम बापा के दर्शन के लिए उमड़ पड़े. शाम को भजन कार्यक्रम शुरू हुआ, जो रात भर चला. सुबह विदाई के समय दाना भगत ने मुखिया समेत काठी दरबारियों को समझाइश देते हुए कहा- "अब से किसी को परेशान नहीं करना. सारे गलत काम को त्याग कर धर्म और सेवा के मार्ग पर चलना. यह आप लोगों का सौभाग्य है जलाराम बापा जैसे महान परोपकारी संत आपके बाजू के गाँव वीरपुर में रहते हैं. कभी कोई संकट आये तो बापा से मिलना. उनका चमत्कार आज तुम लोगों ने स्वयं अपनी आँखों से देख लिया है". फिर सभी लोगों ने दोनों संतों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया और उनके जयकारे लगाए. जब दोनों संत विदा हो रहे थे, तब श्रद्धालुओं की आँखों से आंसू बह रहे थे. ( जारी )
जब वे लुटेरे काठी दरबारी और मुखिया सामान लूट कर जाने लगे तो दाना भगत ने दुखी होकर उन्हें श्राप दिया- "यहाँ लूटमार कर तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया है. तुम लोगों ने केवल सामान ही नहीं लूटा है, बल्कि यहाँ की प्रतिष्ठा भी लूटी है. भगवान् तुम लोगों को कभी क्षमा नहीं करेंगे. भगवान् तुम लोगों को इसका दंड अवश्य देंगे. तुम लोग जेतपुर के दबंग कर्णधार हो, इस भ्रम में न रहना. तुम्हारे यहाँ भी ऐसी लूट होगी, जीवन भर तुम लोग याद रखोगे. आज ही मैं अपने भगवान् से प्रार्थना कर तुम लोगों को दण्डित करवाउंगा". लुटेरों के मुखिया ने दाना भगत का उपहास उड़ाते हुए कहा- "हमें भगवान् से दंड दिलाओगे. ठीक है, वो भी देख लेंगे तुम्हारा भगवान् हमारा क्या बिगाड़ता है". अपने मुखिया के समर्थन में काठी दरबारियों ने भी जोर से ठहाके लगाए फिर हवा में तलवार लहराते हुए लूटा हुआ सामान उठा कर घोड़े में लादा और जेतपुर की तरफ सरपट भाग गए.
अभी कुछ ही दिन बीते थे, दाना भगत के श्राप का असर दिखना शुरू हो गया. लुटेरे मुखिया सहित काठी दरबारियों के घर रोज कोई न कोई परेशानी पैदा होने लगी. आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगा. परिवार के सदस्यों
की क्रमशः मृत्यु होने लगी. मुखिया के दोनों पुत्रों की मौत हो गई. इनका वंश ख़त्म होने लगा. सभी लुटेरों को दाना भगत द्वारा दिए गए श्राप का अहसास होने लगा. फिर सबने मिल कर यह तय किया दाना भगत से लूटा सारा सामान उन्हें सम्मान के साथ वापस लौटा दिया जाय और उनसे माफी मांग ली जाय. तत्काल वे सभी सामान लेकर दाना भगत के गाँव के लिए रवाना हो गए.
जब वे लोग दाना भगत के घर पहुंचे तब दाना भगत भगवान के नाम की माला जप रहे थे. आते ही सबने दाना भगत के चरण स्पर्श किये और सामान लौटाते हुए अपने कृत्य की माफी माँगी. मुखिया ने हाथ जोड़ कर प्रायश्चित करते हुए कहा- "भगत जी, आपके यहाँ लूटपाट कर हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई, हम सबको क्षमा कर दीजिये. भगवान् ने हमें दंड दे दिया है. हमें अपने इस गलत काम के लिए बहुत पछतावा हो रहा है, आप जो सजा देंगे हमें मंजूर है, किन्तु अपना श्राप वापस ले लीजिये और जेतपुर आकर आप हमें उपकृत कीजिये.". दाना भगत ने शांत भाव से जवाब दिया- "सुनो भाइयो, मैंने तुम लोगों को पहले चेताया था लूटमार मत करो, तुम्हारा ही नुकसान होगा. परन्तु तुम लोग माने नहीं. श्राप मैंने नहीं, भगवान् ने दिया है, मैं तो केवल एक माध्यम हूँ. मैं तुम लोग की सहायता नहीं कर सकता". मुखिया उनके पैरों में गिर कर रोते हुए मान मनौव्वल करने लगा. दाना भगत पसीज गए. उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करते हुए कहा- "ठीक है, भगवान की जैसी इच्छा. मैं तुम लोगों की सहायता करूंगा. अगले सप्ताह मैं तुम्हारे गाँव जेतपुर आउंगा, लेकिन तुम लोगो को वीरपुर जाकर जलाराम बापा को भी जेतपुर आने का ससम्मान निमंत्रण देना होगा". मुखिया ने राहत भरी सांस ली फिर उसने आभार जताते हुए कहा- "भगत जी, आपका हर आदेश हमें स्वीकार है, आपने हमारी सहायता करने का वचन देकर बड़ा
उपकार किया है, हम आपके जीवन भर आभारी रहेंगे". तत्पश्चात वे सभी दाना भगत की आज्ञा लेकर लौट गए.
एक सप्ताह बाद दाना भगत अपने वचन के मुताबिक़ जेतपुर के काठी दरबारियों के यहाँ पहुँच गए. उधर, वीरपुर से जलाराम बापा भी जेतपुर पहुँच गए. जेतपुर वीरपुर गाँव की सीमा के समीप होने के कारण जलाराम बापा को आने में ज्यादा समय नहीं लगा. सौराष्ट्र के प्रख्यात दो संतों के मिलन से पूरा जेतपुर गाँव प्रसन्नचित्त था. जेतपुर के काठी दरबारियों के श्राप का निवारण करने के लिए दाना भगत और जलाराम बापा जैसे दो महान संत पधारे हैं, यह जान कर आसपास के क्षेत्रों से भी करीब छह सौ लोग श्रद्धा वश इकट्ठे हो गए.
दोपहर का समय था. सब लोग भोजन करने बैठे थे. काठी दरबारियों में भोजन के वक़्त दूध पिलाने का चलन था. मुखिया चिंतित था. उसे समझ नहीं आ रहा था सबको दूध कैसे पिलाया जाय. करीब छः सौ लोग इकट्ठे हो जायेंगे, इसकी कल्पना न थी. एक सेवक ने मुखिया को दूध का छोटा गंज दिखाते हुए पूछा- "इतना दूध सबको कैसे पूरेगा". उधर, दाना भगत और जलाराम बापा खटिया में बैठे हुए थे. दोनों संत मुखिया की परेशानी भांप गए. दाना भगत ने मुखिया को इशारे से अपने पास बुलाया और उससे बोले- "भाई, मेहमानों को दूध जल्दी परोसो".
मुखिया ने चिंतित होते जवाब दिया- "लेकिन भगत जी, इतना कम दूध सबको कैसे पूरेगा?". दाना भगत ने मुस्कुराते हुए कहा- "दूध का गंज जलाराम बापा को दे दो, वे स्वयं सबको परोस देंगे". फिर जलाराम बापा को दूध का गंज परोसने के लिए सौंप दिया गया. जलाराम बापा ने प्रभु श्रीराम का नाम लेकर पंगत में बैठे लोगों को दूध परोसना शुरू किया. शुरूआत दाना भगत से की. देखते ही देखते जलाराम बापा ने उस छोटे गंज से ही करीब छः सौ लोगों को दूध परोस दिया. यह अजूबा देख कर मुखिया समेत सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए. जलाराम बापा के इस चमत्कार की खबर पूरे जेतपुर गाँव में तेजी से फ़ैल गई. ग्रामवासी जलाराम बापा के दर्शन के लिए उमड़ पड़े. शाम को भजन कार्यक्रम शुरू हुआ, जो रात भर चला. सुबह विदाई के समय दाना भगत ने मुखिया समेत काठी दरबारियों को समझाइश देते हुए कहा- "अब से किसी को परेशान नहीं करना. सारे गलत काम को त्याग कर धर्म और सेवा के मार्ग पर चलना. यह आप लोगों का सौभाग्य है जलाराम बापा जैसे महान परोपकारी संत आपके बाजू के गाँव वीरपुर में रहते हैं. कभी कोई संकट आये तो बापा से मिलना. उनका चमत्कार आज तुम लोगों ने स्वयं अपनी आँखों से देख लिया है". फिर सभी लोगों ने दोनों संतों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया और उनके जयकारे लगाए. जब दोनों संत विदा हो रहे थे, तब श्रद्धालुओं की आँखों से आंसू बह रहे थे. ( जारी )
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