भूतों का भय दूर किया : जलाराम बापा के चरण जहाँ पड़ते थे, वह जगह स्वतः पवित्र हो जाती थी. उनकी उपस्थिति मात्र से हर किसी का कल्याण हो जाता था, फिर चाहे वह इंसान हो या कोई और. एक रोज जलाराम बापा अपने कुछ सेवकों के साथ झींझुडा गाँव जा रहे थे. वहां महात्मा कानडगर की स्मृति में संत मेले का आयोजन किया गया था. इसमें शामिल होने जलाराम बापा को भी निमंत्रण मिला था.
जलाराम बापा सुबह से ही झींझुडा गाँव जाने के लिए घर से निकल गए थे. दोपहर को जब सफ़र के दौरान रास्ते में जाडिया कोटडा गाँव आया, तब कुछ देर आराम करने के उद्देश्य से जलाराम बापा अपने सेवकों के साथ एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे रूक कर डेरा डाल दिया. जलाराम बापा के रूकने की खबर अन्य राहगीरों के जरिये पूरे गाँव में तेजी से फ़ैल गई. उनके दर्शन के लिए श्रद्धालु ग्रामवासी उमड़ पड़े. गाँव के मुखिया सहित कुछ लोग भोजन भी साथ लाये थे. जलाराम बापा ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. भोजन उपरान्त जलाराम बापा से श्रद्धालुओं ने गाँव के भीतर चलने का अनुरोध किया. मुखिया ने हाथ जोड़ कर कहा- "बापा, आप हमारे गाँव के अन्दर पधारेंगे तो हम सब गाँव वालों के भाग्य खुल जायेंगे. हमारा गाँव धन्य हो जाएगा". जलाराम बापा बोले- "भाइयों, मैं संत मेले में सम्मिलित होने के लिए झींझुडा गाँव जा रहा हूँ. वहां मुझे शीघ्र पहुँचना है. इसलिए मैं अभी आप लोगों के साथ चलने में असमर्थ हूँ. हाँ, लौटते समय अगर आप लोग कहेंगे तो अवश्य आ सकता हूँ". मुखिया ने मायूस होकर कहा- "बापा, ठीक है जैसा आप उचित समझे. वापसी के समय हम लोग आपका सानिध्य ले लेंगे. बापा, आपसे एक और विनती है, आप आदेश दे तो कहूं". जलाराम बापा ने विनम्रता से कहा- "भाई, मैं तो आप लोगों का ही सेवक हूँ, कोई भी कार्य हो, संकट हो, बताओ. कहने में संकोच मत करो". मुखिया के चहेरे पर भय का भाव झलकने लगा. उसने दबी जुबान में कहा- "बापा, आप अभी जिस बरगद के पेड़ के नीचे बैठे हैं, दरअसल उस पर भूतों का वास है. भूतीया पेड़ होने के कारण राहगीर यहाँ से गुजरने पर कतराते हैं, वे डरते हैं. गाँव वालों का मानना है कुछ लोग जो पागल हुए हैं उसकी वजह यही पेड़ है. कुछ लोगों की मौत भूतों के भय के कारण भी हो चुकी है. बापा, अब आप ही हमें इस संकट से छुटकारा दिला सकते हैं".
जलाराम बापा थोड़ी देर मौन रहे. तत्पश्चात खड़े होकर उन्होंने सर ऊपर किया और पेड़ पर अपनी दृष्टि दौड़ाई. फिर जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "भाई, डरने वाली कोई बात नहीं है. आप लोगों के भीतर का भय मैं अभी सदा के लिए दूर किये देता हूँ". इतना कहकर जलाराम बापा ने अपनी आँखें बंद की और प्रभु श्रीराम का जप करने लगे. इसके बाद उन्होंने पेड़ की परिक्रमा प्रारम्भ की. उन्होंने जैसे ही पेड़ के सात फेरे पूरे किये, वैसे ही जोर की गडगडाहट हुई. बरगद के पेड़ की शाखाएं हिलने लगी. पुनः गडगडाहट होने से वहां मौजूद ग्रामवासी सहम गए. लोग भय से कांपते हुए एक दूसरे का हाथ पकड़ लिए. अगले ही क्षण जलाराम बापा ने हंसते हुए कहा- "भाइयों, अब से आप लोग भूतों के भय से सदा के लिए मुक्त हो गए हैं और इन भूतों को भी मुक्ति मिल गई है. आपके साथ साथ इन भूतों का भी उद्धार हो गया है. अब डरने की कोई आवश्यकता नहीं है. आप लोग बिना डरे अब यहाँ से आनाजाना कर सकते हैं. कोई किसी को अबसे परेशान नहीं करेगा. यहाँ भूतों का वास सदा के लिए समाप्त हो गया है". यह खुशखबरी सुन कर ग्रामवासी प्रसन्न होकर झूमने लगे, सबने जलाराम बापा के जयकारे लगाए. फिर सभी ने क्रमवार जलाराम बापा के चरण स्पर्श कर आभार जताया. कुछ देर बाद जलाराम बापा अपने सेवकों के साथ गंतव्य स्थान के लिए रवाना हो गए. ( जारी )
जलाराम बापा सुबह से ही झींझुडा गाँव जाने के लिए घर से निकल गए थे. दोपहर को जब सफ़र के दौरान रास्ते में जाडिया कोटडा गाँव आया, तब कुछ देर आराम करने के उद्देश्य से जलाराम बापा अपने सेवकों के साथ एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे रूक कर डेरा डाल दिया. जलाराम बापा के रूकने की खबर अन्य राहगीरों के जरिये पूरे गाँव में तेजी से फ़ैल गई. उनके दर्शन के लिए श्रद्धालु ग्रामवासी उमड़ पड़े. गाँव के मुखिया सहित कुछ लोग भोजन भी साथ लाये थे. जलाराम बापा ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. भोजन उपरान्त जलाराम बापा से श्रद्धालुओं ने गाँव के भीतर चलने का अनुरोध किया. मुखिया ने हाथ जोड़ कर कहा- "बापा, आप हमारे गाँव के अन्दर पधारेंगे तो हम सब गाँव वालों के भाग्य खुल जायेंगे. हमारा गाँव धन्य हो जाएगा". जलाराम बापा बोले- "भाइयों, मैं संत मेले में सम्मिलित होने के लिए झींझुडा गाँव जा रहा हूँ. वहां मुझे शीघ्र पहुँचना है. इसलिए मैं अभी आप लोगों के साथ चलने में असमर्थ हूँ. हाँ, लौटते समय अगर आप लोग कहेंगे तो अवश्य आ सकता हूँ". मुखिया ने मायूस होकर कहा- "बापा, ठीक है जैसा आप उचित समझे. वापसी के समय हम लोग आपका सानिध्य ले लेंगे. बापा, आपसे एक और विनती है, आप आदेश दे तो कहूं". जलाराम बापा ने विनम्रता से कहा- "भाई, मैं तो आप लोगों का ही सेवक हूँ, कोई भी कार्य हो, संकट हो, बताओ. कहने में संकोच मत करो". मुखिया के चहेरे पर भय का भाव झलकने लगा. उसने दबी जुबान में कहा- "बापा, आप अभी जिस बरगद के पेड़ के नीचे बैठे हैं, दरअसल उस पर भूतों का वास है. भूतीया पेड़ होने के कारण राहगीर यहाँ से गुजरने पर कतराते हैं, वे डरते हैं. गाँव वालों का मानना है कुछ लोग जो पागल हुए हैं उसकी वजह यही पेड़ है. कुछ लोगों की मौत भूतों के भय के कारण भी हो चुकी है. बापा, अब आप ही हमें इस संकट से छुटकारा दिला सकते हैं".
जलाराम बापा थोड़ी देर मौन रहे. तत्पश्चात खड़े होकर उन्होंने सर ऊपर किया और पेड़ पर अपनी दृष्टि दौड़ाई. फिर जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "भाई, डरने वाली कोई बात नहीं है. आप लोगों के भीतर का भय मैं अभी सदा के लिए दूर किये देता हूँ". इतना कहकर जलाराम बापा ने अपनी आँखें बंद की और प्रभु श्रीराम का जप करने लगे. इसके बाद उन्होंने पेड़ की परिक्रमा प्रारम्भ की. उन्होंने जैसे ही पेड़ के सात फेरे पूरे किये, वैसे ही जोर की गडगडाहट हुई. बरगद के पेड़ की शाखाएं हिलने लगी. पुनः गडगडाहट होने से वहां मौजूद ग्रामवासी सहम गए. लोग भय से कांपते हुए एक दूसरे का हाथ पकड़ लिए. अगले ही क्षण जलाराम बापा ने हंसते हुए कहा- "भाइयों, अब से आप लोग भूतों के भय से सदा के लिए मुक्त हो गए हैं और इन भूतों को भी मुक्ति मिल गई है. आपके साथ साथ इन भूतों का भी उद्धार हो गया है. अब डरने की कोई आवश्यकता नहीं है. आप लोग बिना डरे अब यहाँ से आनाजाना कर सकते हैं. कोई किसी को अबसे परेशान नहीं करेगा. यहाँ भूतों का वास सदा के लिए समाप्त हो गया है". यह खुशखबरी सुन कर ग्रामवासी प्रसन्न होकर झूमने लगे, सबने जलाराम बापा के जयकारे लगाए. फिर सभी ने क्रमवार जलाराम बापा के चरण स्पर्श कर आभार जताया. कुछ देर बाद जलाराम बापा अपने सेवकों के साथ गंतव्य स्थान के लिए रवाना हो गए. ( जारी )
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