मंगलवार, 3 जनवरी 2012

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 33 )

खाली अन्न कोठियों को भर कर अंतर्ध्यान हुए : जलाराम बापा अपने सदाव्रत-अन्नदान सेवा कार्य के लिए श्रद्धालुओं और अनुयायियों से केवल अनाज की भेंट सहयोग स्वरुप स्वीकार ही नहीं करते थे, बल्कि इन्हीं सहयोगियों को कभी अनाज का संकट महसूस होता था तो वे चमत्कारिक तौर पर उनका खाली अन्न भण्डार भी भर देते थे. वीरपुर के पड़ोसी गाँव में रहने वाले अनुयायी किसान जीवा पटेल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
अकाल के कारण आम आदमी को खाने के लाले पड़ ही रहे थे, बड़े किसानों की हालत भी खराब हो गई थी. कोठारों में संग्रहित किया हुआ अनाज भी उपयोग में लाया जा चुका था. एक दिन सुबह सुबह किसान जीवा पटेल की पत्नी अभाव से परेशान होकर अपने पति पर बिफर उठी. उसने ताने मारते हुए कहा- "तंग आ गई हूँ आपके दानी रवैये से. अपना घर लुटा कर अब स्वयं आपको हाथ फैलाने की नौबत आ गई है. यह दुर्दिन आपके दोनों हाथ खुले होने के कारण देखना पड़ रहा है. बहुत सहयोग किये हो जला भगत को. कहाँ है आपका जला भगत, अब बुलाओ उसे, ताकि अपनी परेशानी दूर हो". जलाराम बापा के विषय में ऐसे गलत शब्द सुन कर जीवा पटेल अपनी पत्नी पर झल्लाए और कहा- "क्यों आज सुबह होते ही मुझ पर अपनी भड़ास निकाल रही हो. मुझ पर जितना गुस्सा उतारना है उतार लो लेकिन जलाराम बापा के बारे में तो कम से कम ऐसा मत बोलो. जाओ रसोई घर में और मेरे लिए कुछ नाश्ता बनाओ". उसकी पत्नी ने झिडकते हुए जवाब दिया- "कोई नाश्ता नहीं मिलेगा. दोपहर को भी खाना नहीं बनेगा. कोठार में अन्न का एक दाना भी नहीं बचा है. लगता है हमें भी अब वीरपुर जाकर सदाव्रत की पंगत में बैठ कर पेट भरना पडेगा". जीवा पटेल ने फिर शांत होकर उसे समझाया- "देखो, जलाराम बापा के यहाँ अन्न ग्रहण करना कोई शर्म की बात नहीं है, वह तो प्रभु के प्रसाद स्वरुप है. ठीक है आज हमारे यहाँ अन्न ख़त्म हो गया है, किन्तु जलाराम बापा हमें कभी भूखे मरने नहीं देंगे. तुम चिंता मत करो".
जीवा पटेल एक स्वाभिमानी और सेवा भावी किसान था. उसने कभी दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाया था, बल्कि हमेशा जलाराम बापा के आदर्शों को अपना कर दीनदुखियों की सेवा को ही अपना धर्म माना था. अनाज का  अनावश्यक संग्रहण करना उसे पसंद नहीं था. जितनी जरूरत होती, उतना अनाज ही अपने कोठार में रखता. अतिरिक्त अनाज वह कभी जलाराम बापा के यहाँ दे आता या कभी भिक्षुओं में बाँट देता था.
अभाव की स्थिति और पत्नी की नाराजगी दूर करने के उद्देश्य से उसने माला उठायी फिर श्रद्धापूर्वक जलाराम बापा का नाम जपने लगा. उधर दूसरी ओर उसकी पत्नी के भुनभुनाने का क्रम जारी था. किन्तु जीवा पटेल तो पूरे मनोयोग से जलाराम बापा के स्मरण में जुटा हुआ था. एकाएक उसे अपने सामने जलाराम बापा का संबोधन सुनाई दिया- "जीवा भाई, कैसे हो. हालचाल ठीक है न. कोई परेशानी तो नहीं है न, यदि हो बताओ?". जीवा पटेल ने आँखें खोली तो देखा सामने जलाराम बापा खड़े थे. वह चौंक गया. वह सोचने लगा, याद करते ही जलाराम बापा इतनी जल्दी वीरपुर से यहाँ कैसे पहुँच गए. वह फुर्ती से खडा हुआ और जलाराम बापा के चरण स्पर्श किये.
इस बीच जीवा पटेल की पत्नी भी जलाराम बापा की आवाज सुन कर आ गई. जलाराम बापा को अपने घर में देख कर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उसने तो आवेश वश जलाराम बापा को बुलाने कहा था. यहाँ सचमुच जलाराम बापा सशरीर हाजिर हो गए. जीवा पटेल ने अपनी पत्नी से कहा- "देखो भाग्यवती, यह हैं मेरे जलाराम बापा. तुम इन्हें बुलाने को कह रही थी, लो वे हमारी पुकार सुन कर उपस्थित हो गए हैं, जो सहायता मांगनी हो अभी मांग लो, फिर अफ़सोस न करना". जलाराम बापा उससे बोले- "बेटी, बताओ क्यों मुझे याद कर रही थी. कोई परेशानी हो तो निःसंकोच बताओ". जीवा पटेल की पत्नी सकपका गई. उसकी जुबान पर मानो ताला लग गया हो, मुंह से एक शब्द नहीं निकले. तत्पश्चात मौन का वातावरण भंग करते हुए जलाराम बापा स्वयं बोले-
"अच्छा ठीक है. जीवा भाई, चलो मुझे अपना अन्न भण्डार दिखाओ. इसे ही देखने ही मैं तुम्हारे यहाँ आया हूँ".
अब साहस जुटा कर जीवा पटेल की पत्नी ने जलाराम बापा को असलियत बताते हुए हाथ जोड़ कर कहा- "बापा,
सच तो यह है कोठार में चूहे भागमभाग कर रहे हैं". जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए दार्शनिक अंदाज में कहा- "बेटी, प्रभु के सच्चे भक्त के कोठार में ऐसा ही होता है. दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम. यदि चूहे भी खा रहे हैं, तो इसमें क्या बुरा है. चलो, शीघ्र कोठार दिखाओ, मुझे दूसरे गाँव भी जाना है". जलाराम बापा का आदेश मान कर जीवा पटेल आगे बढ़ा और उसकी पत्नी भी पीछे पीछे चल पडी.
कोठार में दाखिल होते ही जलाराम बापा बोले- "जीवा भाई, तुम्हारा यह अनाज का कोठार तो अच्छा है. बहुत सारी कोठियां रखी हुई हैं". यह कहते हुए उन्होंने एक बंद कोठी को देख कर पूछा- "इसमें क्या गेहूं भरा है?". फिर दूसरी कोठी के पास जाकर कहा- "लगता है इसमें बाजरा भरा है". वे क्रमवार सभी बंद पडी कोठी के पास गए. वे कहते गए-"इसमें तो ज्वार है". "इसमें तो चावल है". इसमें तो चना है". इसमें तो मूंग है". अंत में जलाराम बापा ने जीवा पटेल को समझाइश देते हुए कहा- "सुनो जीवा भाई, मेरे यहाँ से जाने के बाद ही इन सभी कोठियों को खोलना. जितना आवश्यक हो उतना ही इसमें से निकालना, और अकेले नहीं खाना".गरीब भूखे जनों का भी पेट भरना ".जीवा पटेल जलाराम बापा की बातें सुन कर हतप्रभ था. वह विचारमग्न हो गया. उधर, उसकी पत्नी को सब्र न रहा. उत्सुकता वश वह प्रत्येक कोठी के पास गई और खोल कर देखा तो वैसा ही हुआ जैसा जलाराम बापा
का अनुमान था. सभी कोठियां विभिन्न अनाज से भरी हुई थी. वह खुशी से उछल पडी. और आनंदित स्वर में आभार जताते हुए कहा- "बापा, यह तो आपने चमत्कार कर दिखाया. वास्तव में आपको समझने में मेरी भूल हुई. मुझे क्षमा कर दीजिये. आप सचमुच महान परोपकारी संत हैं, आपके हम जीवन भर आभारी रहेंगे". यह कहते हुए वह पीछे मुडी तो देखा जलाराम बापा अंतर्ध्यान हो चुके थे. उनका अचानक अदृश्य हो जाना उसे समझ नहीं आया. अपनी पत्नी की झुंझलाहट देख कर जीवा पटेल ने हंसते हुए कहा- "क्यों भाग्यवती, देखा मेरे बापा का
चमत्कार. अब तो सब कुछ जान गई हो न उनके बारे में. भविष्य में अब उनके विषय में कोई गलत बात नहीं  करना. बापा किसी को भूखा नहीं रखते हैं. जा अब जल्दी से मेरे लिए नाश्ता बना". उसकी पत्नी ने प्रायश्चित करते हुए माफी माँगी और विश्वास दिलाया आगे कभी भी वह जलाराम बापा के विषय में कोई गलत बात नहीं करेगी. जीवा पटेल अपनी पत्नी के ह्रदय परिवर्तन को देख कर प्रसन्न हो गया. ( जारी )                                            
                                                             

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