किसान की पत्नी की नेत्र दृष्टि लौटाई : जलाराम बापा के अनुयायियों में किसानों की संख्या अच्छी खासी थी. अब तो वीरपुर के अलावा आसपास के गाँव के किसान भी इनके प्रति श्रद्धा भाव रखने लगे थे. वीरपुर के समीप स्थित खोखरी गाँव में तुलनात्मक रूप से किसानों की संख्या अधिक थी. ये लोग भी जलाराम बापा के अनुयायी थे. जब भी इनको कोई तकलीफ होती तो जलाराम बापा का स्मरण कर मन्नत रखते, जो फलीभूत भी होती. जलाराम बापा के प्रति श्रद्धा को लेकर गांववासियों में कभी कभी प्रश्न प्रतिप्रश्न भी होते. आस्था की मनः स्थिति भी टटोली जाती. एक बार ऐसा हुआ भी. खोखरी गाँव में मानसून दगा दे गया था. बारिश न होने से अकाल की स्थिति निर्मित हो गयी थी. मानसून आधारित खेती होने से गाँव के किसानों में चिंता व्याप्त हो गयी. गाँव में सिंचाई का कोई अन्य साधन भी उपलब्ध नहीं था. किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था.
एक दिन एक मंदिर के पुजारी ने सोचा क्यों न बारिश के लिए जलाराम बापा को याद कर प्रभु आस्था का सहारा लिया जाय. उन्होंने गाँव में मुनादी करवाई "मंदिर में संध्या आरती के समय बरसात के लिए प्रभु के नाम सामूहिक प्रार्थना की जायेगी". शाम को मंदिर में सब लोग परिवार समेत इकट्ठा हो गए. पुजारी ने सब पर पैनी दृष्टि डाली, फिर कहा- "सज्जनों, मुझे ऐसा आभास हो रहा है अभी प्रभु प्रार्थना का सही समय नहीं आया है. इसलिए आज इसे स्थगित करना पडेगा". पुजारी के इस गूढ़ अभिमत से सभी हतप्रभ रह गए. लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. इस बीच एक युवा ग्रामीण ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा- "ये क्या बोल रहे हैं आप!, आपकी सूचना के अनुसार हम अपना कामकाज छोड़कर यहाँ इकट्ठा हुए हैं और अब आप कह रहे हैं प्रभु प्रार्थना का सही समय नहीं आया है. ये तो कोई बात नहीं हुई". पुजारी ने जवाब दिया- "मैं बिलकुल सही कह रहा हूँ. प्रभु प्रार्थना के लिए श्रद्धा होना पहली अनिवार्यता है. इस समय मुझे आप लोगों में श्रद्धा का नितांत अभाव दिख रहा है".एक अन्य युवक ने तैश में आकर कहा- "ये क्या अनाप-शनाप बोल रहे हैं. ये आप कैसे कह सकते हैं हमारे में श्रद्धा की कमी है. अगर ऐसा होता तो हम यहाँ आते ही क्यों?" पुजारी ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा- "अगर आप लोगों में प्रभु प्रार्थना के लिए सच्ची श्रद्धा होती तो अपने साथ छाता अवश्य लेकर आते. इसका मतलब साफ़ है आप लोगों को यह भरोसा नहीं था प्रभु प्रार्थना से बरसात होगी, अन्यथा खाली हाथ आने का और दूसरा कारण क्या हो सकता है".पुजारी का यह उलाहना सुनकर लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ साथ ही आत्मग्लानि भी हुई. फिर सर झुका कर सभी लोग चुपचाप अपने अपने घर चले गए.
हालांकि खोखरी गाँव में जलाराम बापा का एक ऐसा अनुयायी किसान भी था, जिसने अपनी पत्नी की तकलीफ के समय भी श्रद्धा भाव में कोई कमी न आने दी. दरअसल एक दिन उस किसान की पत्नी की आँखों में अचानक पीड़ा
हुई. कुछ ही पलों में उसे दिखना बंद हो गया. एकाएक उसकी नेत्र दृष्टि चली गई. उसकी आँखों के सामने अन्धकार छा गया. आँख है तो जहां है. किसान की पत्नी दुखी होकर स्वयं को असहाय महसूस करने लगी. पत्नी के अनायास अंधत्व की स्थिति देख कर किसान भी दुखी हो गया, लेकिन उसे यह भी भरोसा था जलाराम बापा की कृपा हुई तो
पत्नी की खोई हुई नेत्र ज्योति जरूर लौट आयेगी.
उधर, पूरे गाँव में किसान की पत्नी के अंधत्व संबंधी खबर फ़ैल गई. गाँव के कतिपय नास्तिकों को जलाराम बापा
के विरूद्ध बोलने का मौक़ा मिल गया. एक नास्तिक ग्रामीण ने उस किसान से चुनौती भरे शब्दों में कहा- "अरे भाई, तुम और तुम्हारी पत्नी बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के हो, फिर ये विपदा अचानक क्यों आई?, इसके बावजूद तुम्हारा
विश्वास अभी भी जलाराम बापा पर बना हुआ है. अगर तुम्हारे भगत जला में दम है तो तुम्हारी पत्नी को वे ठीक क्यों नहीं कर देते?" कुछ अन्य नास्तिक भी इसी तरह के ताने मारने लगे. अनुयायी किसान को भला यह सब कैसे बर्दाश्त होता. उसने भी पलटवार कर जवाब दिया- "मुझे अपने जलाराम बापा पर पूरा भरोसा है, उनकी कृपा
से मेरी पत्नी को अवश्य दिखने लगेगा. तुम लोगों की बोलती अवश्य बंद हो जायेगी.
दूसरे ही दिन वह किसान अपनी पत्नी को साथ लेकर वीरपुर गाँव पहुँच गया. जलाराम बापा के पास पहुँच कर किसान ने उनके चरण स्पर्श किये और फिर सारा वृत्तांत सुनाया. नास्तिकों के ताने के बारे में बताया. हाथ जोड़ कर उसने विनती की- "बापा, अगर आपकी कृपा होगी तो मेरी पत्नी को पुनः दिखने लगेगा". जलाराम बापा ने उससे स्नेह पूर्वक कहा- "किसान भाई, लोगों के ताने से दुखी होने की आवश्यकता नहीं है. तुम्हारी पत्नी का सब कष्ट दूर हो जाएगा, प्रभु श्रीराम पर विश्वास रखो". तत्पश्चात वे किसान की पत्नी की आँखों की तरफ पलक झपकाए बगैर देखते रहे. क्षण भर बाद जलाराम बापा ने वीरबाई को बुलवाया और उनसे कहा- "देवी, किसान की पत्नी की आँखों पर प्रभु के चरणामृत डालो, और उसे सीताराम के दर्शन कराओ". वीरबाई ने ऐसा ही किया. फिर उन्होंने किसान की पत्नी से कहा- "बेन, अब सीताराम के दर्शन करो". किसान की पत्नी की पलकों में हलचल हुई, अगले ही क्षण ठीक सामने सीताराम की प्रतिमा दिखी. वह खुशी से फूले नहीं समाई. उसकी आँखों में खुशी के आंसू छलक गए. किसान भी यह चमत्कार देखकर खुशी से झूम उठा. फिर पति पत्नी ने जलाराम बापा और वीरबाई के चरण स्पर्श कर आभार जताया. यथाशक्ति भेंट अर्पित कर जयकारे लगाते हुए किसान दंपती अपने गाँव रवाना हो गए. अपने गाँव खोखरी पहुँच कर किसान दंपती ने जब जलाराम बापा की कृपा का ब्यौरा दिया तो श्रद्धालुओं में आस्था और बढ़ गई. इस चमत्कार की जानकारी होने पर नास्तिकों की बोलती भी बंद हो गई. अब वे भी जलाराम बापा के अनुयायी बन गए. ( जारी ..... )
एक दिन एक मंदिर के पुजारी ने सोचा क्यों न बारिश के लिए जलाराम बापा को याद कर प्रभु आस्था का सहारा लिया जाय. उन्होंने गाँव में मुनादी करवाई "मंदिर में संध्या आरती के समय बरसात के लिए प्रभु के नाम सामूहिक प्रार्थना की जायेगी". शाम को मंदिर में सब लोग परिवार समेत इकट्ठा हो गए. पुजारी ने सब पर पैनी दृष्टि डाली, फिर कहा- "सज्जनों, मुझे ऐसा आभास हो रहा है अभी प्रभु प्रार्थना का सही समय नहीं आया है. इसलिए आज इसे स्थगित करना पडेगा". पुजारी के इस गूढ़ अभिमत से सभी हतप्रभ रह गए. लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. इस बीच एक युवा ग्रामीण ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा- "ये क्या बोल रहे हैं आप!, आपकी सूचना के अनुसार हम अपना कामकाज छोड़कर यहाँ इकट्ठा हुए हैं और अब आप कह रहे हैं प्रभु प्रार्थना का सही समय नहीं आया है. ये तो कोई बात नहीं हुई". पुजारी ने जवाब दिया- "मैं बिलकुल सही कह रहा हूँ. प्रभु प्रार्थना के लिए श्रद्धा होना पहली अनिवार्यता है. इस समय मुझे आप लोगों में श्रद्धा का नितांत अभाव दिख रहा है".एक अन्य युवक ने तैश में आकर कहा- "ये क्या अनाप-शनाप बोल रहे हैं. ये आप कैसे कह सकते हैं हमारे में श्रद्धा की कमी है. अगर ऐसा होता तो हम यहाँ आते ही क्यों?" पुजारी ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा- "अगर आप लोगों में प्रभु प्रार्थना के लिए सच्ची श्रद्धा होती तो अपने साथ छाता अवश्य लेकर आते. इसका मतलब साफ़ है आप लोगों को यह भरोसा नहीं था प्रभु प्रार्थना से बरसात होगी, अन्यथा खाली हाथ आने का और दूसरा कारण क्या हो सकता है".पुजारी का यह उलाहना सुनकर लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ साथ ही आत्मग्लानि भी हुई. फिर सर झुका कर सभी लोग चुपचाप अपने अपने घर चले गए.
हालांकि खोखरी गाँव में जलाराम बापा का एक ऐसा अनुयायी किसान भी था, जिसने अपनी पत्नी की तकलीफ के समय भी श्रद्धा भाव में कोई कमी न आने दी. दरअसल एक दिन उस किसान की पत्नी की आँखों में अचानक पीड़ा
हुई. कुछ ही पलों में उसे दिखना बंद हो गया. एकाएक उसकी नेत्र दृष्टि चली गई. उसकी आँखों के सामने अन्धकार छा गया. आँख है तो जहां है. किसान की पत्नी दुखी होकर स्वयं को असहाय महसूस करने लगी. पत्नी के अनायास अंधत्व की स्थिति देख कर किसान भी दुखी हो गया, लेकिन उसे यह भी भरोसा था जलाराम बापा की कृपा हुई तो
पत्नी की खोई हुई नेत्र ज्योति जरूर लौट आयेगी.
उधर, पूरे गाँव में किसान की पत्नी के अंधत्व संबंधी खबर फ़ैल गई. गाँव के कतिपय नास्तिकों को जलाराम बापा
के विरूद्ध बोलने का मौक़ा मिल गया. एक नास्तिक ग्रामीण ने उस किसान से चुनौती भरे शब्दों में कहा- "अरे भाई, तुम और तुम्हारी पत्नी बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के हो, फिर ये विपदा अचानक क्यों आई?, इसके बावजूद तुम्हारा
विश्वास अभी भी जलाराम बापा पर बना हुआ है. अगर तुम्हारे भगत जला में दम है तो तुम्हारी पत्नी को वे ठीक क्यों नहीं कर देते?" कुछ अन्य नास्तिक भी इसी तरह के ताने मारने लगे. अनुयायी किसान को भला यह सब कैसे बर्दाश्त होता. उसने भी पलटवार कर जवाब दिया- "मुझे अपने जलाराम बापा पर पूरा भरोसा है, उनकी कृपा
से मेरी पत्नी को अवश्य दिखने लगेगा. तुम लोगों की बोलती अवश्य बंद हो जायेगी.
दूसरे ही दिन वह किसान अपनी पत्नी को साथ लेकर वीरपुर गाँव पहुँच गया. जलाराम बापा के पास पहुँच कर किसान ने उनके चरण स्पर्श किये और फिर सारा वृत्तांत सुनाया. नास्तिकों के ताने के बारे में बताया. हाथ जोड़ कर उसने विनती की- "बापा, अगर आपकी कृपा होगी तो मेरी पत्नी को पुनः दिखने लगेगा". जलाराम बापा ने उससे स्नेह पूर्वक कहा- "किसान भाई, लोगों के ताने से दुखी होने की आवश्यकता नहीं है. तुम्हारी पत्नी का सब कष्ट दूर हो जाएगा, प्रभु श्रीराम पर विश्वास रखो". तत्पश्चात वे किसान की पत्नी की आँखों की तरफ पलक झपकाए बगैर देखते रहे. क्षण भर बाद जलाराम बापा ने वीरबाई को बुलवाया और उनसे कहा- "देवी, किसान की पत्नी की आँखों पर प्रभु के चरणामृत डालो, और उसे सीताराम के दर्शन कराओ". वीरबाई ने ऐसा ही किया. फिर उन्होंने किसान की पत्नी से कहा- "बेन, अब सीताराम के दर्शन करो". किसान की पत्नी की पलकों में हलचल हुई, अगले ही क्षण ठीक सामने सीताराम की प्रतिमा दिखी. वह खुशी से फूले नहीं समाई. उसकी आँखों में खुशी के आंसू छलक गए. किसान भी यह चमत्कार देखकर खुशी से झूम उठा. फिर पति पत्नी ने जलाराम बापा और वीरबाई के चरण स्पर्श कर आभार जताया. यथाशक्ति भेंट अर्पित कर जयकारे लगाते हुए किसान दंपती अपने गाँव रवाना हो गए. अपने गाँव खोखरी पहुँच कर किसान दंपती ने जब जलाराम बापा की कृपा का ब्यौरा दिया तो श्रद्धालुओं में आस्था और बढ़ गई. इस चमत्कार की जानकारी होने पर नास्तिकों की बोलती भी बंद हो गई. अब वे भी जलाराम बापा के अनुयायी बन गए. ( जारी ..... )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें