अंग्रेज एजेंट सदाव्रत-अन्नदान देख कर चमत्कृत : जलाराम बापा द्वारा जारी चमत्कारिक सदाव्रत-अन्नदान कौतुहल का केंद्र बन चुका था. इसकी जानकारी राजा महाराजाओं के अलावा अंग्रेज अधिकारियों और राजदूत तक
पहुँच चुकी थी. जलाराम बापा द्वारा कम संसाधनों और अल्प खाद्य सामग्री के बावजूद आगंतुक सभी अथितियों को भर पेट भोजन कराने की सच्चाई जानने और परखने के उद्देश्य से एक दिन राजकोट रियासत के राजनैतिक एजेंट वीरपुर गाँव आये. अब तक राजा महाराजाओं की मेहमाननवाजी का लाभ उठाने वाले इस अंग्रेज एजेंट को अपने यहाँ आया देख जलाराम बापा ने उनका भी आथित्य सत्कार किया. दरअसल, उस अंग्रेज एजेंट की पूर्व नियोजित योजना थी हर तीस मिनट के अंतराल में बगैर सूचना के तीस-तीस घुड़सवार जवानों की सात टुकड़ी भोजन करने जलाराम बापा के यहाँ आयेगी, ताकि भोजन सामग्री घट जाए. आखिरकार योजना के तहत वे आये भी, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से सभी ने भर पेट भोजन किया. जबकि काफी संख्या में अन्य अतिथि पहले से मौजूद थे. जलाराम बापा ने आग्रह पूर्वक सबको खिलाया. सभी सुस्वादु भोजन की प्रसंशा कर रहे थे. अंग्रेज एजेंट कनखियों से सारा नजारा देख रहा था. उसकी धारणा गलत निकली. वह सोचने लगा अतिथियों की अत्याधिक संख्या के बावजूद भोजन सामग्री कम क्यों नहीं पडी. यही नहीं बल्कि वह जल्द तैयार भी कैसे हो गयी, यह माजरा उसकी समझ से परे था. फिर मन ही मन उसने जलाराम बापा की तारीफ़ की. सभी अतिथि भोजन करने के बाद जलाराम बापा से आशीर्वाद लेकर जयकारे लगाते विदा हो रहे थे. यह देख कर अंग्रेज एजेंट भी खुद को न रोक पाया. जलाराम बापा के पास पहुँच कर उन्हें सम्मान देते हुए उसने सर से टोपी उतार कर झुकते हुए अभिवादन किया, और फिर आभार जताते हुए कहा- "आप वास्तव में भगवान् के सच्चे सेवक हैं. आपकी महिमा का मैं कायल हो गया हूँ. स्वादिष्ट भोजन कराने के लिए धन्यवाद". इतना कहकर वह अपने जवानों के साथ विदा हो गया.
ध्रांगध्रा नरेश ने बैल चालित चक्की भेंट की : गुजरात के विभिन्न राज दरबारों में अब आये दिन जलाराम बापा के
चमत्कारों और उनके सेवा कार्यों की चर्चा होने लगी थी. एक दिन ध्रांगध्रा नरेश का राज दरबार लगा हुआ था. प्रजा
की शिकायतों का समाधान और न्याय कर्म पूर्ण करने के बाद राजा ने दरबारियों से पूछा- "और आसपास की कोई विशेष बात या जानकारी देना बाकी रह गई हो बताओ". एक दरबारी ने उल्लासपूर्वक कहा- "महाराज श्री, आपकी आज्ञा हो तो वीरपुर के भगत जलाराम बापा के विषय में कुछ बताऊँ". राजा ने अनुमति दी. दरबारी ने कहा- "महाराज श्री, भगत जलाराम बापा के यहाँ जारी सदाव्रत-अन्नदान चमत्कार से युक्त है. बिना सूचना के वहां कितने व्यक्ति क्यों न पहुँच जाए, किसी को भोजन कम नहीं पड़ता है. हमारे कई सिपाही भी इसके प्रत्यक्ष साक्षी हैं". राजा ने आश्चर्य पूर्वक कहा- "अच्छा तो यह बात है, लेकिन न जाने मुझे क्यों इस पर भरोसा नहीं हो रहा है. एक बार स्वयं वीरपुर जाकर सच्चाई का पता लगाना पडेगा".
दूसरे ही दिन ध्रांगध्रा नरेश कुछ दरबारियों और घुड़सवार अंगरक्षकों के काफिले के साथ जलाराम बापा के यहाँ ठीक भोजन के समय पहुँच गए. जलाराम बापा ने उन सबका आदरपूर्वक स्वागत किया. फिर हाथ जोड़ कर उनसे पंगत में बैठ कर भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया. राजा ने इनकार करते हुए कहा- "भगत क्षमा करिए, हम जूनागढ़ जाने के लिए निकले हैं, रास्ते में वीरपुर आया तो सोचा आपके दर्शन कर तत्काल आगे बढ़ जायेंगे. अगर हम सब भोजन करने बैठेंगे तो बहुत देर हो जायेगी". जलाराम बापा ने विनम्रता से कहा- "महाराज श्री, प्रभु के इस दरबार में आया अतिथि राजा हो या रंक, कोई भी प्रसाद लिए बिना वापस नहीं जाता". राजा ने सोचा यह परखने में
क्या हर्ज है, इतनी जल्दी भोजन कैसे परोसा जाएगा. वे अपने काफिले के साथ भोजन करने बैठ गए. जलाराम बापा ने उसी क्षण सबको पर्याप्त भोजन परोस दिया.सभी भोजन कर तृप्त हो गए. राजा आश्चर्यचकित हुए और प्रसन्न भी. उन्होंने जलाराम बापा से आशीर्वाद लेकर कहा- "भगत, किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो बताइये".
जलाराम बापा ने कहा- "महाराज श्री, वैसे तो प्रभु की कृपा से अभी यहाँ सब कुछ है, केवल बड़ी घरेलू चक्की की कमी है. आपके ध्रांगध्रा में अच्छे पत्थर निकलते हैं, वे चक्की बनाने के लिए बहुत उपयोगी होंगे. उसे भिजवा देंगे तो गेहूं, बाजरा आदि पिसने में कठिनाई न होगी". राजा ने खुश होकर कहा- "भगत, मैं भी यही सोच रहा था. सदाव्रत के लिए बैल से चलने वाली एक बड़ी चक्की का प्रबंध कर शीघ्र भिजवाता हूँ". इतना कहकर उन्होंने विदाई ली. तत्पश्चात कुछ ही दिनों के भीतर ध्रांगध्रा नरेश ने अपना वादा पूरा करते हुए बैल चलित बड़े पत्थरो वाली चक्की जलाराम बापा के यहाँ भिजवा दी. ( जारी .... )
पहुँच चुकी थी. जलाराम बापा द्वारा कम संसाधनों और अल्प खाद्य सामग्री के बावजूद आगंतुक सभी अथितियों को भर पेट भोजन कराने की सच्चाई जानने और परखने के उद्देश्य से एक दिन राजकोट रियासत के राजनैतिक एजेंट वीरपुर गाँव आये. अब तक राजा महाराजाओं की मेहमाननवाजी का लाभ उठाने वाले इस अंग्रेज एजेंट को अपने यहाँ आया देख जलाराम बापा ने उनका भी आथित्य सत्कार किया. दरअसल, उस अंग्रेज एजेंट की पूर्व नियोजित योजना थी हर तीस मिनट के अंतराल में बगैर सूचना के तीस-तीस घुड़सवार जवानों की सात टुकड़ी भोजन करने जलाराम बापा के यहाँ आयेगी, ताकि भोजन सामग्री घट जाए. आखिरकार योजना के तहत वे आये भी, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से सभी ने भर पेट भोजन किया. जबकि काफी संख्या में अन्य अतिथि पहले से मौजूद थे. जलाराम बापा ने आग्रह पूर्वक सबको खिलाया. सभी सुस्वादु भोजन की प्रसंशा कर रहे थे. अंग्रेज एजेंट कनखियों से सारा नजारा देख रहा था. उसकी धारणा गलत निकली. वह सोचने लगा अतिथियों की अत्याधिक संख्या के बावजूद भोजन सामग्री कम क्यों नहीं पडी. यही नहीं बल्कि वह जल्द तैयार भी कैसे हो गयी, यह माजरा उसकी समझ से परे था. फिर मन ही मन उसने जलाराम बापा की तारीफ़ की. सभी अतिथि भोजन करने के बाद जलाराम बापा से आशीर्वाद लेकर जयकारे लगाते विदा हो रहे थे. यह देख कर अंग्रेज एजेंट भी खुद को न रोक पाया. जलाराम बापा के पास पहुँच कर उन्हें सम्मान देते हुए उसने सर से टोपी उतार कर झुकते हुए अभिवादन किया, और फिर आभार जताते हुए कहा- "आप वास्तव में भगवान् के सच्चे सेवक हैं. आपकी महिमा का मैं कायल हो गया हूँ. स्वादिष्ट भोजन कराने के लिए धन्यवाद". इतना कहकर वह अपने जवानों के साथ विदा हो गया.
ध्रांगध्रा नरेश ने बैल चालित चक्की भेंट की : गुजरात के विभिन्न राज दरबारों में अब आये दिन जलाराम बापा के
चमत्कारों और उनके सेवा कार्यों की चर्चा होने लगी थी. एक दिन ध्रांगध्रा नरेश का राज दरबार लगा हुआ था. प्रजा
की शिकायतों का समाधान और न्याय कर्म पूर्ण करने के बाद राजा ने दरबारियों से पूछा- "और आसपास की कोई विशेष बात या जानकारी देना बाकी रह गई हो बताओ". एक दरबारी ने उल्लासपूर्वक कहा- "महाराज श्री, आपकी आज्ञा हो तो वीरपुर के भगत जलाराम बापा के विषय में कुछ बताऊँ". राजा ने अनुमति दी. दरबारी ने कहा- "महाराज श्री, भगत जलाराम बापा के यहाँ जारी सदाव्रत-अन्नदान चमत्कार से युक्त है. बिना सूचना के वहां कितने व्यक्ति क्यों न पहुँच जाए, किसी को भोजन कम नहीं पड़ता है. हमारे कई सिपाही भी इसके प्रत्यक्ष साक्षी हैं". राजा ने आश्चर्य पूर्वक कहा- "अच्छा तो यह बात है, लेकिन न जाने मुझे क्यों इस पर भरोसा नहीं हो रहा है. एक बार स्वयं वीरपुर जाकर सच्चाई का पता लगाना पडेगा".
दूसरे ही दिन ध्रांगध्रा नरेश कुछ दरबारियों और घुड़सवार अंगरक्षकों के काफिले के साथ जलाराम बापा के यहाँ ठीक भोजन के समय पहुँच गए. जलाराम बापा ने उन सबका आदरपूर्वक स्वागत किया. फिर हाथ जोड़ कर उनसे पंगत में बैठ कर भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया. राजा ने इनकार करते हुए कहा- "भगत क्षमा करिए, हम जूनागढ़ जाने के लिए निकले हैं, रास्ते में वीरपुर आया तो सोचा आपके दर्शन कर तत्काल आगे बढ़ जायेंगे. अगर हम सब भोजन करने बैठेंगे तो बहुत देर हो जायेगी". जलाराम बापा ने विनम्रता से कहा- "महाराज श्री, प्रभु के इस दरबार में आया अतिथि राजा हो या रंक, कोई भी प्रसाद लिए बिना वापस नहीं जाता". राजा ने सोचा यह परखने में
क्या हर्ज है, इतनी जल्दी भोजन कैसे परोसा जाएगा. वे अपने काफिले के साथ भोजन करने बैठ गए. जलाराम बापा ने उसी क्षण सबको पर्याप्त भोजन परोस दिया.सभी भोजन कर तृप्त हो गए. राजा आश्चर्यचकित हुए और प्रसन्न भी. उन्होंने जलाराम बापा से आशीर्वाद लेकर कहा- "भगत, किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो बताइये".
जलाराम बापा ने कहा- "महाराज श्री, वैसे तो प्रभु की कृपा से अभी यहाँ सब कुछ है, केवल बड़ी घरेलू चक्की की कमी है. आपके ध्रांगध्रा में अच्छे पत्थर निकलते हैं, वे चक्की बनाने के लिए बहुत उपयोगी होंगे. उसे भिजवा देंगे तो गेहूं, बाजरा आदि पिसने में कठिनाई न होगी". राजा ने खुश होकर कहा- "भगत, मैं भी यही सोच रहा था. सदाव्रत के लिए बैल से चलने वाली एक बड़ी चक्की का प्रबंध कर शीघ्र भिजवाता हूँ". इतना कहकर उन्होंने विदाई ली. तत्पश्चात कुछ ही दिनों के भीतर ध्रांगध्रा नरेश ने अपना वादा पूरा करते हुए बैल चलित बड़े पत्थरो वाली चक्की जलाराम बापा के यहाँ भिजवा दी. ( जारी .... )
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