शनिवार, 10 दिसंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 21 )

राजकोट के लकवा पीड़ित लोहाना पुरोहित को स्वस्थ किया : जलाराम बापा के सेवा कार्यों, भक्ति और चमत्कारों के कारण वीरपुर गाँव सौराष्ट्र, गुजरात का चर्चित यात्रा धाम बन चुका था. जलाराम बापा को श्रद्धापूर्वक स्मरण कर रखी गई मन्नत चमत्कारिक रूप से फलती तो थी ही, इसके अतिरिक्त यदि कोई दुखी जन वीरपुर गाँव में जलाराम बापा की शरण में पहुँच जाता तो भी उसके सारे दुःख दर्द आश्चर्य जनक ढंग से दूर हो जाते थे. वीरपुर गाँव के समीप स्थित राजकोट के एक लकवाग्रस्त लोहाना गोर महाराज (पुरोहित) गोपाल जोशी भी इसके एक उदाहरण थे.
राजकोट सौराष्ट्र की एक महत्वपूर्ण रियासत थी. यहाँ तुलनात्मक रूप से गुजराती लोहाना समुदाय के अधिक लोग निवासरत थे. गोपाल जोशी इनके वरिष्ठ पुरोहित थे. प्रत्येक शुभ या शोक अवसर पर इनकी सेवाएँ अनिवार्य होती थी. लेकिन एक लम्बे अरसे से वे खटिया पकड़ चुके थे. विवशतः बिस्तर पर ही उनका समस्त नित्य कर्म होता था. वजह थी उनका लकवाग्रस्त होना. पक्षाघात से पीड़ित होने के कारण ये पुरोहित तो तकलीफ भोग ही रहे थे, साथ ही उनका पूरा परिवार भी परेशान और दुखी था. ऐसा नहीं था राजकोट में अस्पताल, वैद्य या हकीम की कमी हो, सभी से उपचार आजमा लिया गया था, किन्तु कोई फ़ायदा नहीं हुआ. किसी की दवा उपयोगी सिद्ध नहीं हुई.
राजकोट के कई लोहाना सेठ भी गोर महाराज गोपाल जोशी के यजमान थे. वे भी उनकी पीड़ा देख कर दुखी थे. एक दिन वे सभी सेठ राज वैद्य से मिले. उन्हें गोर महाराज की बीमारी का पूरा ब्योरा सुनाया. एक वृद्ध सेठ ने राज वैद्य से कहा- "वैद्य जी, गोपाल गोर महाराज की तबियत लगातार बिगड़ती ही जा रही है. उनकी यह हालत हमसे देखी नहीं जा रही है. ऐसा कोई अस्पताल, वैद्य या हकीम बाकी नहीं है, जहां उपचार के लिए उन्हें दिखाया न गया हो. अब आपका ही सहारा शेष रह गया है. कृपया आप उनका उपचार तत्काल प्रारम्भ करेंगे तो मेहरबानी होगी". निवेदन स्वीकार करते हुए प्रत्युत्तर में राज वैद्य ने कहा- "अगर ऐसी बात थी तो आप लोग मुझसे पहले क्यों नहीं मिले?, चलिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, आज ही गोपाल गोर महाराज की नाडी देख कर उनका उपचार प्रारम्भ करते हैं". फिर राज वैद्य ने अपने सेवक से कह कर दवा पेटी और बग्घी मंगवाई और सेठ लोगों के साथ चल पड़े ब्राह्मण मोहल्ले स्थित गोर महाराज गोपाल जोशी के घर.
राज वैद्य की बग्घी देख कर पूरा ब्राहमण मोहल्ला इकट्ठा हो गया. सबको उम्मीद बंध गई राज वैद्य के आने से. गोपाल गोर महाराज के अब जल्द स्वस्थ होने की संभावना बढ़ गई थी. उधर, राज वैद्य ने सबसे पहले गोपाल गोर महाराज की नाडी का परीक्षण किया फिर शरीर के हर अंग-प्रत्यंग का जायजा लिया और गर्व के साथ प्रसन्न मुद्रा में उनके परिजनों से कहा- "चिंता करने वाली कोई बात नहीं है. मैं दवा की कुछ पुडिया दे रहा हूँ, इसे शहद के साथ प्रतिदिन नियमित रूप से गोर महाराज को खिलाना, देखना हफ्ते भर में इनकी बीमारी छूमंतर हो जायेगी और ये पहले की तरह फिर से चलने फिरने लग जायेंगे". राज वैद्य की यह गर्वोक्ति और दावा सुन कर सभी के चहेरे खिल उठे. वहां मौजूद सभी व्यक्तियों को राज वैद्य पर पूरा भरोसा था.
राज वैद्य द्वारा दी गई दवा उनके आदेशानुसार परिजनों द्वारा गोपाल गोर महाराज को रोज खिलाई जाने लगी. शहद की पूरी बोतल खप गई. दवा की सभी पुडिया खिला दी गई. अब गोपाल गोर महाराज के शरीर की तेल-मालिश का वक़्त आ गया. मालिश के लिए राज वैद्य द्वारा न जाने कैसा तेल दिया गया था, जिसे लगाते ही गोपाल गोर महाराज को राहत मिलने के बजाय उनका पूरा शरीर तपने लगा. "आसमान से गिरे, खजूर के पेड़ में अटके" वाली कहावत चरितार्थ हो गई. गोपाल गोर महाराज दर्द से कराहने लगे. वे हिम्मत हार कर पुत्र से कहने लगे- "नन्दूरा, अब मैं नहीं बचूंगा. मुझे खटिया से उतार कर जमीन पर लिटा दे. मेरा अंतिम समय निकट आ गया है, गीता पाठ प्रारंभ करवा दे. मेरे बेटी-दामाद को भी यहाँ बुलवा लो". गोपाल गोर महाराज की पत्नी ने रोते हुए उन्हें दिलासा दिया- "नन्दूरा के बापूजी शुभ शुभ बोलिए, आपको कुछ नहीं होगा. क्यों अनावश्यक चिंता करते हैं. आप सौ साल जियेंगे. हो सकता है राज वैद्य की दवा का असर कुछ दिन बाद दिखे". गोपाल महाराज ने दुखी भाव से दो टूक जवाब दिया- "वह असर तो दिख रहा है. अभी ये हाल है, तो आगे क्या होगा, समझ जाओ".
देखते ही देखते पहले ब्राहमण मोहल्ले फिर पूरे राजकोट में यह अफवाह फ़ैल गई "राज वैद्य की दवा के दुष्प्रभाव के कारण गोपाल गोर महाराज की तबियत ज्यादा बिगड़ गई है. अब शायद ही वे बच पायेंगे". फलस्वरूप रिश्तेदार, यजमान, मित्र, परिचित, पड़ोसी सभी लोग गोपाल गोर महाराज को देखने उनके घर आने लगे, मानो वे कुछ ही दिन के मेहमान हो. उनकी तबियत का हाल जानने घर आने वालों में बुजुर्ग लोहाना मित्र कुंवरजी भाई भी थे. वे जलाराम बापा के पक्के अनुयायी थे. वे कई बार वीरपुर गाँव जाकर जलाराम बापा के दर्शन का लाभ ले चुके थे. उस बुजुर्ग मित्र ने गोपाल गोर महाराज से पूछा- "गोर महाराज, अब कैसी तबियत है". उन्होंने जवाब दिया- "बस अब चला चली की बेला है. जितने दिन निकल जाए, बहुत है".वृद्ध मित्र ने सुझाव देते हुए कहा- "गोर महाराज,
हिम्मत रखो. तुम्हें कुछ नहीं होगा. मेरी मानो तो वीरपुर वाले भगत जलाराम बापा की शरण में चले जाओ, देखना
पहले की तंदुरूस्त हो जाओगे". यह सुझाव सुन कर गोपाल गोर महाराज ने मन ही मन सोचा- "सब से उपचार करा कर तो देख लिया है, परिणाम शून्य रहा. अब ये अंतिम नुस्खा भी आजमा कर देख लिया जाए. शायद वह फल जाए". उन्होंने बुजुर्ग मित्र से कहा- "धन्यवाद, तुम्हारा सुझाव सही प्रतीत हो रहा है. यह बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई?, मैं इसी समय वीरपुर गाँव के लिए रवाना होता हूँ". इतना कह कर उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया- "नन्दूरा, सब प्रबंध कर बैल गाडी ले आ, हमें तत्काल वीरपुर गाँव, भगत जलाराम बापा के यहाँ जाना है".पुत्र ने विरोध भरे स्वर में कहा- "बापूजी, यह आप क्या कह रहे हैं. खटिया से उठने की शक्ति आप में है नहीं, वीरपुर तक कैसे जा सकते हैं?" गोपाल गोर महाराज ने नाराज होते हुए कहा- "नन्दूरा, तेरे को जितना बोल रहा हूँ उतना कर, ज्यादा होशियारी मत दिखा. तू नहीं चलेगा तो मैं अकेले गाडीवान देवसी के साथ चला जाउंगा". पुत्र ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं माने. वहां उपस्थित एक दो नास्तिकों ने भी नन्दूरा की हाँ में हाँ मिलाते हुए गोपाल गोर महाराज को यह विचार त्यागने की सलाह देते हुए कहा- "गोर महाराज, आप भी कहाँ वीरपुर वाले जला के चक्कर में फंस रहे हैं. किसी अच्छे वैद्य से उपचार कराओ, तो शायद भला हो". गोपाल गोर महाराज ने उन्हें डांटते हुए कहा- "चुप रहो तुम लोग. क्या जानते हो भगत जलाराम के विषय में, कुछ मालूम है नहीं, चले बीच में टांग अडाने". दाल गलती न देख कर उन नास्तिकों ने बुजुर्ग मित्र कुंवरजी भाई को बरगलाना शुरू किया- "बापा, क्यों अपने मित्र की जान लेने पर तुले हो, वीरपुर गाँव जाते हुए कहीं बीच रास्ते में इनका राम नाम सत्य हो गया तो लोग आपको जीवन भर क्षमा नहीं करेंगे. इसलिए बेहतर है इन्हें जाने से रोकिये". कुंवरजी भाई ने तुनक कर जवाब दिया- "अरे मूर्खों, भगत जलाराम बापा के दर्शन और आशीर्वाद से किसी का भला होता हो तो तुम्हारा क्या बिगड़ रहा है?".
थोड़ी देर बाद चालक देवसी बैल गाडी लेकर आ गया. बुजुर्ग मित्र ने स्वयं उस बैल गाडी में गद्दे बिछाए. उस पर गोपाल गोर महाराज को लिटाया गया. रास्ते के लिए जरूरी सामान रखा गया. फिर चालक देवसी धीरे धीरे बैल गाडी हांकते हुए वीरपुर गाँव की ओर रवाना हो गया. जब बैल गाडी वीरपुर गाँव पहुँची तो गोपाल गोर महाराज ने राहत की सांस ली. चहेरे पर निश्चिंतता का भाव था. जैसे ही बैल गाडी दरवाजे पर पहुँची वैसे ही जलाराम बापा उनका स्वागत करने दौड़े चले आये. दो चार सेवक भी पीछे पीछे आ गए. जलाराम बापा ने देखते ही कहा- "पधारिये गोर महाराज". यह सुन कर गोपाल गोर महाराज अचंभित हुए और बोले- "बापा, आपको कैसे मालूम हुआ मैं गोर महाराज हूँ".जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "इसमें चौंकने वाली कोई बात नहीं है,आपकी वेशभूषा ही बता रही है आप कौन हैं". परिचय की औपचारिकता के बाद गोपाल गोर महाराज ने जलाराम बापा को
अपनी बीमारी और अब तक के सभी उपचार के बारे में विस्तार से बताया. जलाराम बापा ने उनकी बात ध्यान से सुनी. फिर बोले- "गोर महाराज, मैं वैद्य तो नहीं हूँ जो आपका उपचार कर सकूं, किन्तु हाँ, इतना विश्वास के साथ कह सकता हूँ यहाँ रह कर प्रभु श्रीराम की श्रद्धा से भक्ति करोगे, दुखीजनों और संत महात्माओं की सेवा करोगे तो आपकी बीमारी अपने आप दूर हो जायेगी. मेरी बात पर विश्वास हो तो अन्दर चले आओ". इतना कह कर जलाराम बापा अन्य आगंतुक अथितियों का सत्कार करने भीतर चले गए. बिना देर किये गोपाल गोर महाराज ने गाडीवान
देवसी से कहा- "देवसी देख क्या रहा है, चल जल्दी मुझे नीचे उतार". गाडीवान सोचने लगा "इन्हें मैं कैसे गाडी से नीचे उतारूंगा, भीतर भी कैसे ले जाउंगा. कहीं से खटिया और एक दो मददगार मिल जाए तो काम आसान हो जाएगा". इसी दौरान अचानक वहां जलाराम बापा फिर आ गए और कहा- "चलिए गोर महाराज, मैं आपको सहारा देता हूँ". इतना कह कर वे गाडी के पास आकर खड़े हो गए. यह सुन कर गोपाल गोर महाराज का हाथ स्वतः जलाराम बापा के कंधे की तरफ बढ़ गया. फिर तो मानो चमत्कार सा हो गया. एक लम्बे अरसे से बिस्तर से न उठ पाने वाले अशक्त गोपाल गोर महाराज एकाएक उठ खड़े हुए और आहिस्ते आहिस्ते जलाराम बापा के पीछे चल पड़े.        
यह चमत्कार देख कर गोपाल गोर महाराज फूले नहीं समाये. उनकी आँखों से खुशी के आंसू छलक उठे. यह सब अजूबा देख कर गाडीवान देवसी की आँखें भी आश्चर्य से फटी की फटी रह गई. आखिरकार जलाराम बापा का कथन शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हुआ. छः माह के भीतर ही गोपाल गोर महाराज पूर्णतः स्वस्थ हो गए. अब वे पहले की तरह चलने फिरने लग गए थे. उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा. जलाराम बापा के चरण स्पर्श कर आभार जताते हुए उन्होंने कहा- "बापा, आपने मुझे नया जीवन देकर बड़ा उपकार किया है, आपका मैं जीवन भर आभारी रहूँगा".
जलाराम बापा बोले- "यह सब प्रभु श्रीराम की कृपा है, आपको उनकी सेवा करने का प्रतिफल मिला है. प्रभु की भक्ति करते हुए आप भी दीनदुखियों की सेवा सदैव करना". फिर जलाराम बापा से आज्ञा और आशीर्वाद लेकर गोपाल गोर महाराज जयकारे लगाते हुए प्रसन्नतापूर्वक अपने घर राजकोट के लिए रवाना हो गए. ( जारी .... )                                                                                                                                        
       

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