सेवा भावी पत्नी वीर बाई का स्वर्गवास : जलाराम बापा के प्रत्येक सेवा कार्यों में पत्नी वीर बाई का योगदान अनूठा था. सदाव्रत-अन्नदान का अभियान इनके सहयोग के बिना संभव न था. आगंतुक अथितियों की संख्या अधिक होने के बावजूद इन्होने सदैव पूरी तन्मयता और प्रसन्नचित्त होकर रसोई तैयार की. सदाव्रत-अन्नदान का सिलसिला शुरू हुए ५८ वर्ष हो चुके थे, लेकिन वीर बाई का उत्साह पूर्ववत कायम था. उसमें कोई कमी नहीं आई थी. वे तो साक्षात अन्नपूर्णा देवी सदृश्य थीं. तैयार की हुई रसोई में उनके प्रेम वात्सल्य का भी स्वाद भी समाहित रहता था. जलाराम बापा और पत्नी वीर बाई दोनों का प्रथम उद्देश्य दीनदुखियों की सेवा करना था. प्रभु भक्ति और सेवा कार्यों के कारण वे गृहस्थ होते हुए भी सांसारिक मोह माया से कोसो दूर थे. जलाराम बापा द्वारा अपनी पत्नी वीर बाई को देवी मान कर उनके प्रति हमेशा श्रद्धा भाव रखना अनुयायियों के लिए प्रेरणा जनक था.
एक दिन ऐसा भी आया, जो सबको रूला गया. इस ह्रदय विदारक क्षण की किसी को कल्पना नहीं थी. आगंतुक अथितियों, अनुयायियों, सेवकों और वीरपुर वासियों के लिए इस दिन का सूरज ताप नहीं बल्कि संताप लेकर उगा था. देवी स्वरूप वीर बाई ने बिस्तर पर अपनी अंतिम साँसें लीं. उन्होंने इस मायावी संसार से सदा के लिए अपनी विदाई ले ली. लोगों की आँखों से आंसू नहीं थम रहे थे. रो-रो कर उनका बुरा हाल था. वीरपुर के साथ साथ आसपास के क्षेत्रों में भी यह शोक समाचार वायु वेग से फ़ैल गया था. श्रद्धालु जन वीर बाई के अंतिम दर्शन के लिए वीरपुर उमड़ पड़े थे. हर कोई शोक संतप्त था. शोक में लोगों ने भोजन त्याग दिया था. लेकिन जलाराम बापा अपने प्रभु की इस इच्छा से अवगत थे. जीवन-मृत्यु के गूढ़ रहस्य को वे भलीभांति समझते थे, इसलिए उनकी आँखे नम अवश्य थीं किन्तु उनके चहेरे के भाव को पढ़ना आसान नहीं था. रोकर बेसुध से होने वाले अपने अनुयायियों को जलाराम बापा सांत्वना दे रहे थे.तो किसी को जीवन के सत्य से वाकिफ करा रहे थे. यद्दपि जलाराम बापा को इसका अहसास अवश्य था उनके सेवा यज्ञ में पत्नी वीर बाई की आहुतियाँ अत्यंत लाभकारी थीं, जिसका अभाव अब थोड़ी दिक्कत पैदा करेगा. लेकिन प्रभु के इस कठोर फैसले के समक्ष वे भी विवश थे. वीर बाई जलाराम बापा की केवल जीवन संगिनी ही नहीं थीं, बल्कि उनके सेवा कार्यों में बराबर की सहभागी भी थीं.
वीर बाई के बैकुंठ धाम प्रवास के पश्चात जलाराम बापा ने अपने यहाँ एक सप्ताह तक निरंतर राम धुन के साथ भजन कार्यक्रम जारी रखवाया. वीर बाई को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए श्रद्धालु जन इस भजन कार्यक्रम में परिवार सहित शामिल हो रहे थे. "रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम" गायन के दरम्यान अनुयायियों को इन पंक्तियों में जलाराम बापा और वीर बाई की झलक दृष्टिगोचर हो रही थी. इस तरह
सात दिन तक जलाराम बापा के सानिध्य में भजन की पावन गंगा प्रवाहित होती रही और श्रद्धालु जन भक्ति के निर्मल शीतल जल से अपने तपते शोक संतप्त शरीर तथा अंतर्मन को ठंडक देकर पवित्र करते रहे. ( जारी ) .
एक दिन ऐसा भी आया, जो सबको रूला गया. इस ह्रदय विदारक क्षण की किसी को कल्पना नहीं थी. आगंतुक अथितियों, अनुयायियों, सेवकों और वीरपुर वासियों के लिए इस दिन का सूरज ताप नहीं बल्कि संताप लेकर उगा था. देवी स्वरूप वीर बाई ने बिस्तर पर अपनी अंतिम साँसें लीं. उन्होंने इस मायावी संसार से सदा के लिए अपनी विदाई ले ली. लोगों की आँखों से आंसू नहीं थम रहे थे. रो-रो कर उनका बुरा हाल था. वीरपुर के साथ साथ आसपास के क्षेत्रों में भी यह शोक समाचार वायु वेग से फ़ैल गया था. श्रद्धालु जन वीर बाई के अंतिम दर्शन के लिए वीरपुर उमड़ पड़े थे. हर कोई शोक संतप्त था. शोक में लोगों ने भोजन त्याग दिया था. लेकिन जलाराम बापा अपने प्रभु की इस इच्छा से अवगत थे. जीवन-मृत्यु के गूढ़ रहस्य को वे भलीभांति समझते थे, इसलिए उनकी आँखे नम अवश्य थीं किन्तु उनके चहेरे के भाव को पढ़ना आसान नहीं था. रोकर बेसुध से होने वाले अपने अनुयायियों को जलाराम बापा सांत्वना दे रहे थे.तो किसी को जीवन के सत्य से वाकिफ करा रहे थे. यद्दपि जलाराम बापा को इसका अहसास अवश्य था उनके सेवा यज्ञ में पत्नी वीर बाई की आहुतियाँ अत्यंत लाभकारी थीं, जिसका अभाव अब थोड़ी दिक्कत पैदा करेगा. लेकिन प्रभु के इस कठोर फैसले के समक्ष वे भी विवश थे. वीर बाई जलाराम बापा की केवल जीवन संगिनी ही नहीं थीं, बल्कि उनके सेवा कार्यों में बराबर की सहभागी भी थीं.
वीर बाई के बैकुंठ धाम प्रवास के पश्चात जलाराम बापा ने अपने यहाँ एक सप्ताह तक निरंतर राम धुन के साथ भजन कार्यक्रम जारी रखवाया. वीर बाई को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए श्रद्धालु जन इस भजन कार्यक्रम में परिवार सहित शामिल हो रहे थे. "रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम" गायन के दरम्यान अनुयायियों को इन पंक्तियों में जलाराम बापा और वीर बाई की झलक दृष्टिगोचर हो रही थी. इस तरह
सात दिन तक जलाराम बापा के सानिध्य में भजन की पावन गंगा प्रवाहित होती रही और श्रद्धालु जन भक्ति के निर्मल शीतल जल से अपने तपते शोक संतप्त शरीर तथा अंतर्मन को ठंडक देकर पवित्र करते रहे. ( जारी ) .
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