सेवक टीडा भगत को "रोटी में राम" के दर्शन करवाए : जलाराम बापा के यहाँ संत महात्माओं की सेवा करने के उद्देश्य से कुछ सेवक भी रहते थे. इनमें टीडा भगत नामक एक वृद्ध सेवक भी शामिल था. इसका काम था संत महात्माओं सहित आगंतुक अथितियों को पानी पिलाना. उम्र को देखते हुए इसे ज्यादा मेहनत वाला कार्य नहीं सौंपा गया था. एक दिन भरी दोपहरी में जलाराम बापा के यहाँ दो तेजस्वी योगी महाराज पधारे. आते ही उन्होंने स्वल्पाहार करने की इच्छा जाहिर की. स्वल्पाहार के बाद टीडा भगत ने उन्हें ठंडा पानी पिलाया. इसी दौरान वहां जलाराम बापा आ पहुंचे. दोनों योगी महाराज को देख कर जलाराम बापा ने स्मित मुस्कान के साथ प्रणाम किया. उन्होंने भी मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया और विदा हो गए.
जलाराम बापा ने वहां खड़े सेवक टीडा भगत से पूछा- "भाई, आपने इन दोनों तेजस्वी महाराज को पहचाना क्या?" सेवक ने प्रतिप्रश्न किया- "नहीं बापा, बिलकुल नहीं पहचाना, कौन थे ये महाराज?" जलाराम बापा ने जवाब दिया- "भाई, वे गोपीचंद और भरथरी थे. वे हमारे इस आश्रम को अपनी चरण धूलि से पवित्र करने आये थे. यह हमारा सौभाग्य है". सेवक ने आश्चर्यचकित होकर कहा- "बापा, सचमुच वे गोपीचंद और भरथरी थे. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है". जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "भाई, आपको अगर असलियत का पता लगाना है तो उनके पीछे पीछे जाओ. अभी वे अधिक दूर नहीं गए होंगे. आप देखोगे इस तेज धूप में भी उनको छाया देने ऊपर बादल साथ चल रहे होंगे". यह जान कर वह सेवक तत्काल उनके पीछे दौड़ पडा.
थोड़ी ही दूर जाने के बाद सेवक को वे दोनों योगी महाराज भजन गाते हुए जाते दिख गए. जलाराम बापा की बात याद आते ही सेवक ने आकाश की तरफ सर उंचा किया तो देखा वास्तव में भरी दोपहरी में भी बादलों का एक समूह ऊपर छाया बन कर दोनों योगी महाराज के साथ साथ चल रहा है. जबकि आसपास तेज धूप थी. सेवक ने यह अद्भुत नजारा देख कर दांतों तले उंगली दबा ली. वे उन दोनों योगी महाराज की ओर अपलक निहारते रहे. फिर
देखते ही देखते वे दोनों सेवक की नज़रों से ओझल हो गए.
वापस लौटते ही सेवक टीडा भगत ने जलाराम बापा को आँखों देखा हाल बताया. उन्होंने हाथ जोड़ कर जलाराम बापा से शिकायत भरे लहजे में कहा- "बापा, अगर ऐसा था, तो आपने मुझे उनके बारे में पहले क्यों नहीं बताया, मैं उनके चरण में गिर कर उनसे कुछ मांग लेता". जलाराम बापा हँसे और कहा- "अरे भाई, अभी भी कुछ पाना शेष रह गया है क्या? यहाँ आपको किस चीज की कमी महसूस हो रही है, जो चाहते हैं वह सब तो यहाँ आपको मिल रहा है. इसके पश्चात भी आपको यदि ऐसा लगता है कुछ पाना और शेष रह गया है तो प्रभु श्रीराम का नाम जपते हुए सच्चे मन से अथितियों की सेवा करते रहो, अवश्य ही आपका बेडा पार हो जाएगा". जलाराम बापा के यह वचन सुन कर सेवक के ज्ञान चक्षु खुल गए. उसी पल सेवक ने अपनी समस्त तृष्णाओं को त्याग दिया. भूखे और दुखी जनों में उन्हें दरिद्र नारायण दिखने लगे. उनकी सेवा ही प्रभु की सच्ची भक्ति लगी. उनकी मन से सेवा करते करते
उन्हें यह समझ में आ गया गरीबों को जो तृप्त करता है, उस पर प्रभु की कृपा दृष्टि अवश्य होती है. जलाराम बापा द्वारा दिए गए जीवन मंत्र "भूखे को अन्नदान जैसा श्रेष्ठ दान दूसरा नहीं है" का सही अर्थ अब सेवक को समझ में आने लगा था. जलाराम बापा ने सेवक को भी "रोटी में राम" के दर्शन करवाए. ( जारी )
जलाराम बापा ने वहां खड़े सेवक टीडा भगत से पूछा- "भाई, आपने इन दोनों तेजस्वी महाराज को पहचाना क्या?" सेवक ने प्रतिप्रश्न किया- "नहीं बापा, बिलकुल नहीं पहचाना, कौन थे ये महाराज?" जलाराम बापा ने जवाब दिया- "भाई, वे गोपीचंद और भरथरी थे. वे हमारे इस आश्रम को अपनी चरण धूलि से पवित्र करने आये थे. यह हमारा सौभाग्य है". सेवक ने आश्चर्यचकित होकर कहा- "बापा, सचमुच वे गोपीचंद और भरथरी थे. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है". जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "भाई, आपको अगर असलियत का पता लगाना है तो उनके पीछे पीछे जाओ. अभी वे अधिक दूर नहीं गए होंगे. आप देखोगे इस तेज धूप में भी उनको छाया देने ऊपर बादल साथ चल रहे होंगे". यह जान कर वह सेवक तत्काल उनके पीछे दौड़ पडा.
थोड़ी ही दूर जाने के बाद सेवक को वे दोनों योगी महाराज भजन गाते हुए जाते दिख गए. जलाराम बापा की बात याद आते ही सेवक ने आकाश की तरफ सर उंचा किया तो देखा वास्तव में भरी दोपहरी में भी बादलों का एक समूह ऊपर छाया बन कर दोनों योगी महाराज के साथ साथ चल रहा है. जबकि आसपास तेज धूप थी. सेवक ने यह अद्भुत नजारा देख कर दांतों तले उंगली दबा ली. वे उन दोनों योगी महाराज की ओर अपलक निहारते रहे. फिर
देखते ही देखते वे दोनों सेवक की नज़रों से ओझल हो गए.
वापस लौटते ही सेवक टीडा भगत ने जलाराम बापा को आँखों देखा हाल बताया. उन्होंने हाथ जोड़ कर जलाराम बापा से शिकायत भरे लहजे में कहा- "बापा, अगर ऐसा था, तो आपने मुझे उनके बारे में पहले क्यों नहीं बताया, मैं उनके चरण में गिर कर उनसे कुछ मांग लेता". जलाराम बापा हँसे और कहा- "अरे भाई, अभी भी कुछ पाना शेष रह गया है क्या? यहाँ आपको किस चीज की कमी महसूस हो रही है, जो चाहते हैं वह सब तो यहाँ आपको मिल रहा है. इसके पश्चात भी आपको यदि ऐसा लगता है कुछ पाना और शेष रह गया है तो प्रभु श्रीराम का नाम जपते हुए सच्चे मन से अथितियों की सेवा करते रहो, अवश्य ही आपका बेडा पार हो जाएगा". जलाराम बापा के यह वचन सुन कर सेवक के ज्ञान चक्षु खुल गए. उसी पल सेवक ने अपनी समस्त तृष्णाओं को त्याग दिया. भूखे और दुखी जनों में उन्हें दरिद्र नारायण दिखने लगे. उनकी सेवा ही प्रभु की सच्ची भक्ति लगी. उनकी मन से सेवा करते करते
उन्हें यह समझ में आ गया गरीबों को जो तृप्त करता है, उस पर प्रभु की कृपा दृष्टि अवश्य होती है. जलाराम बापा द्वारा दिए गए जीवन मंत्र "भूखे को अन्नदान जैसा श्रेष्ठ दान दूसरा नहीं है" का सही अर्थ अब सेवक को समझ में आने लगा था. जलाराम बापा ने सेवक को भी "रोटी में राम" के दर्शन करवाए. ( जारी )
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