शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 35 )

संत मेले में वस्त्र दान का चमत्कार : जलाराम बापा संकट अथवा अभाव की स्थिति में हर किसी की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. राजा हो या रंक, जो भी उनसे सहायता करने का आग्रह करता, उसे कभी निराश नहीं करते. राजा रणमलजी भी जलाराम बापा से सहायता प्राप्त करने वालों में से एक थे.
हुआ यूं, एक दिन राज ज्योतिषी ने राजा रणमलजी की जन्म कुण्डली और हस्त रेखा का अध्ययन कर भविष्यवाणी की- "महाराज, आपकी कुण्डली और हाथ की रेखाओं से ज्ञात होता है, आपकी आयु अधिक नहीं है. आपके जीवन पर ख़तरा मंडरा रहा है. राजदरबारियों को भी इस भविष्यवाणी की जानकारी हो गई थी, इसलिए राजा की तरह वे भी चिंतित हो गए. संयोगवश कुछ दिन बाद राजा ग्राम जाम खंभालिया गए, जहां उनकी मुलाक़ात मोरार भगत से हुई. संकट के वक़्त राजा इनसे सदैव मार्गदर्शन लिया करते थे. सो, राजा ने मोरार भगत को राज ज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी के सम्बन्ध में विस्तार से बताया. अपनी चिंता से भी उन्हें अवगत कराया. उन्होंने हाथ जोड़ कर निवेदन किया- "भगत जी, अब आप ही मेरा कल्याण कर सकते हैं. मेरी आयु बढ़ जाय, ऐसा कोई उपाय हो तो कृपया बताइये". मोरार भगत ने शांतचित्त होकर प्रत्युत्तर दिया- "महाराज, विधि के विधान को बदलना आसान नहीं है. जो भाग्य में लिखा रहता है, वह होकर रहता है, किन्तु हम जो भी पुण्य कर्म करते हैं, उसका प्रभाव भी भाग्य परिवर्तन में देखने को मिलता है. अच्छे कार्य का फल मिलता अवश्य है. और अगर संत महात्माओं का आशीर्वाद मिल जाय तो सोने में सुहागा हो जाता है. हो सकता है पुण्य कर्म करने से आपका संकट दूर हो जाय". राजा की आँखें चमक उठी. उन्होंने तपाक से पूछा- "भगत जी, इसका अर्थ है मेरी आयु बढ़ सकती है, मुझे क्या करना होगा, कृपया बताइए". उन्होंने सुझाव देते हुए कहा- "महाराज, आप अपने यहाँ भव्य संत मेले का आयोजन कराइए, उनकी सच्चे मन से सेवा कीजिये, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा". राजा ने सहमत होकर जवाब दिया- भगत जी, मैं आपकी सलाह का पालन अवश्य करूंगा. संत मेले का आयोजन आपके ही नेतृत्व में होगा, आप अनुमति दीजिये". मोरार भगत ने राजा के आग्रह को स्वीकार कर लिया. तत्पश्चात वे दोनों राजमहल के लिए प्रस्थान कर गए.
राजा ने जलाराम बापा सहित सभी संत महात्माओं को निमंत्रण भिजवाया. नियत तिथि को संत मेला प्रारंभ हो गया. इस मेले में सैकड़ों संत, महात्मा, साधु, सन्यासी, वैरागी, ब्रम्हचारी और भक्त जन शामिल हुए. वीरपुर से जलाराम बापा और जोड़ीया गाँव से धरमशी भगत विशेष तौर पर निमंत्रित किये गए थे. मोरार भगत अपनी देखरेख में इस मेले का सुचारू संचालन कर रहे थे. अतिथियों की आवभगत में कोई कमी न हो इसलिए राजा ने कई सेवकों को तैनात कर रखा था. रहने और खाने का माकूल प्रबंध किया गया था. संत मेले में सेवा के जरिये राजा सबका दिल से आशीर्वाद लेने को लालायित थे. संत मेले में रोज भजन कीर्तन का क्रम जारी रहा.
मेले के समापन अवसर पर भजन-कीर्तन मंच से संचालक मोरार भगत ने अपने आभारयुक्त संबोधन में कहा- "आप सभी अतिथियों का मैं महाराज की ओर से आभार प्रकट करता हूँ. आप सबने यहाँ पधार कर महाराज को
उपकृत कर दिया है. आप लोगों के दर्शन और सानिध्य पाकर महाराज धन्य हो गए हैं. महाराज को मैं दीर्घायु होने का आशीर्वाद देता हूँ. आशा है आप लोग भी महाराज को अपना आशीर्वाद देंगे, जिससे वे लम्बे समय तक
सेवा कार्य कर सकें". इनके संबोधन के बाद जलाराम बापा समेत सभी लोगों ने महाराज को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया. संत मेले का विधिवत समापन "वस्त्र दान" से होना निर्धारित था. राजा ने पहले से ही वस्त्र मंगवा
लिए थे. लेकिन संत मेले में अनुमान से कई गुना ज्यादा अतिथियों के आगमन से वस्त्रों की कमी महसूस होने लगी. राजा चिंतित हो गए. उनका दिमाग काम नहीं कर रहा था. कोई उपाय नहीं सूझने पर उन्होंने मोरार भगत
को अपनी परेशानी बताई. सुन कर मोरार भगत मुस्कुराए और आत्मविश्वास के साथ कहा- "जलाराम बापा के रहते आप क्यों परेशान हो रहे हो. जहां जलाराम बापा उपस्थित रहते हैं, वहां किसी वस्तु की कमी नहीं रहती है".
राजा ने जिज्ञासा वश पूछा- "क्या सचमुच ऐसा संभव है?". मोरार भगत ने भरोसा दिलाते हुए कहा- "मैं सच कह रहा हूँ, चाहो तो आप परख कर देख सकते हैं. मेरी मानो तो आप वस्त्र दान जलाराम बापा के हाथों से ही करवाइए, फिर देखना उनका चमत्कार कैसा होता है". राजा प्रसन्न हो गए और कहा- "भगत जी, अगर ऐसा होता है तो मेरी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आयेगी". इस विचार-विमर्श के तुरंत बाद राजा जलाराम बापा के पास गए. उन्होंने हाथ जोड़ कर निवेदन किया- "बापा, आप अगर मेरी सहायता करेंगे तो मेरी लाज बच जायेगी. मैं चाहता हूँ अतिथियों को वस्त्र दान आपके हाथों से संपन्न हो". जलाराम बापा राजा के अंतर्मन को भांप चुके थे. उन्होंने कहा- "ठीक है महाराज, जैसी प्रभु की इच्छा, चलिए". फिर राजा के साथ मेले में पहुँच कर जलाराम बापा ने एक एक कर अतिथियों को वस्त्र बांटना शुरू किया. एक भी अतिथि वस्त्र पाने से वंचित न रहा. सभी वस्त्र पाकर प्रसन्न हो गए. जलाराम बापा का यह चमत्कार देख कर राजा आश्चर्यचकित रह गए. मोरार भगत का अनुमान सत्य साबित हुआ. राजा ने जलाराम बापा के चरण स्पर्श किये और आभार जताया- "बापा, आप कोई साधारण संत नहीं हैं, बल्कि भगवान् श्रीराम के अवतार हैं. सौराष्ट्र की भूमि धन्य हो गई है. आपका उपकार मैं सदैव याद  रखूंगा. अपना शेष जीवन परोपकार और सेवा कार्यों को समर्पित कर दूंगा". तत्पश्चात राजा ने जलाराम बापा सहित सभी अतिथियों को नम आँखों से विदाई दी. ( जारी )                                      
 
                                              

कोई टिप्पणी नहीं: