शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 29 )

कड़बी महिला की खोई नथ नारियल से निकली : जलाराम बापा की पत्नी वीर बाई अपने पति के सेवा कार्यों में सहयोग करने के साथ ही प्रभु भक्ति भी नियमित रूप से करती थीं. रोज रसोई तैयार होने के बाद वे सबसे पहले भगवान् को भोग लगाती थीं, फिर उसके बाद ही अथितियों को भोजन परोसा जाता था. एक दिन वे हमेशा की तरह पूजा पाठ करने के बाद वृद्ध महात्मा से प्राप्त झोली-डंडा के भी दर्शन कर रही थीं, तभी उन्हें उसमें एकाएक साक्षात राधा-कृष्ण के दर्शन हुए. वीर बाई हतप्रभ रह गई. फिर उनकी आँखों से खुशी के आंसू छलक उठे. दोनों हाथ जोड़ कर उन्होंने अपनी कृतज्ञता व्यक्त की. तत्पश्चात वे जब पूजा घर से बाहर वाले कमरे में आयीं तो कड़बी जात की एक
ग्रामीण महिला जो हाथ में एक नारियल रखे हुए थी, उनकी प्रतीक्षा करते हुए मिली. वीर बाई को देखते ही वह कड़बी महिला उनके पैरों में गिर कर रोने लगी. वीर बाई ने उसके सर पर वात्सल्य से हाथ फेरते हुए उसे उठाया. फिर पूछा- "बहन, ऐसे क्यों तुम रो रही हो? कोइ संकट आया हो, कोई दुख हो, तो साफ़ साफ़ बताओ, मेरे प्रभु तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे". अश्रुपूरित नेत्रों के साथ उस महिला ने सकुचाते हुए कहा- "देवी माँ, मैं बहुत परेशान हूँ. यदि आपकी कृपा होगी तो मेरा दुःख दूर हो जाएगा". वीर बाई ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा- "बहन, निःसंकोच अपनी परेशानी बताओ. घबराओ नहीं, तुम्हारा दुःख अवश्य दूर होगा". कड़बी महिला ने अपने आंसू पोछते हुए बताया- "देवी माँ, मैं रूडा पटेल की बहू हूँ. कुछ दिन पहले मैं काना पटेल के लड़के की बारात में गई थी. विवाह के समय आपाधापी में मेरे नाक की नथ गिर कर खो गई. मैंने उसे बहुत ढूंढा लेकिन कहीं न मिली. हो सकता है किसी ने उसे उठाकर खुद रख लिया हो. मेरे पति तो शांत स्वभाव के हैं, लेकिन मेरी सास गुस्सैल है. नथ को लेकर उसने मेरा जीना दूभर कर दिया है. ऐसी स्थिति में जीने से क्या लाभ?, अब आत्महत्या कर लेना ही उचित लग रहा है. इसीलिये अंतिम बार आपका आशीर्वाद लेने आई हूँ, ताकि मेरा परलोक सुधर जाए". वीर बाई ने उसे विनम्रता से समझाते हुए कहा- "बहन, ऐसा बिलकुल नहीं करना. कभी ऐसा आत्मघाती कदम नहीं उठाना. प्रभु की कृपा से हमें यह मानव शरीर मिला है. इसकी रक्षा करना हमारा दायित्व है. इस शरीर के माध्यम से ही हमें अच्छे कार्य करने हैं, फिर इसे नष्ट करने का क्या अर्थ है. तुम धैर्य रखो, तुम्हारा दुख अवश्य दूर हो जाएगा". यह समझाइश देते हुए वीर बाई ने उसे कुछ देर बैठने को कहा. फिर वे उसकी समस्या का समाधान जानने जलाराम बापा के पास गयीं.
जलाराम बापा तब प्रभु भक्ति में ध्यानमग्न बैठे थे. थोड़ी देर बाद जब वे निवृत्त हुए तो वीर बाई ने उन्हें आगंतुक कड़बी महिला की परेशानी का ब्यौरा दिया. उसके द्वारा आत्महत्या करने की मंशा से भी अवगत कराया. यह सुनने के बाद जलाराम बापा ने आँखें बंद कर हाथ जोड़ते हुए प्रभु का स्मरण किया. अगले क्षण वे वीर बाई के साथ उस महिला के पास पहुंचे. जलाराम बापा को देख कर महिला ने नारियल देकर उनके चरण स्पर्श किये और फिर वह रोने लगी. जलाराम बापा ने उसे शांत कराया. तत्पश्चात महिला द्वारा श्रद्धापूर्वक भेंट स्वरुप लाये गए नारियल को उसके सामने ही फोड़ा. नारियल फोड़ते ही चमत्कार हो गया. उस नारियल के भीतर महिला की खोई हुई नथ निकल आई. नारियल के अन्दर से निकली अपनी नथ देख कर वह महिला चौंक गई. पल भर के लिए वह स्तब्ध रह गई. फिर प्रसन्नतावश वह जलाराम बापा के जयकारे लगाने लगी. जलाराम बापा के चमत्कारों के बारे में उसने पहले सुन रखा था. इसलिए उसे यह चमत्कार प्रभु की लीला के सदृश्य लगा. उसने जलाराम बापा के पुनः चरण स्पर्श किये और आभार जताते हुए कहा- "बापा, आपकी लीला अपरम्पार है, आपकी कृपा से मेरा जीवन उजड़ने से बच गया. आपने खोई हुई इस नथ को वापस मुझे दिलवा कर मेरा खोया हुआ सम्मान भी दिलवा दिया है, आपका उपकार मैं कभी नहीं भूल पाउंगी". जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "बेटी, यह लीला मेरी नहीं प्रभु की है. दुःख में वह सबकी सुनता है. प्रभु अपने दुखियारे भक्त पर कृपा करते ही हैं. जीवन बचाने वाला भी वही है और सम्मान देने वाला भी. उपकार प्रभु का ही मानो, मैं तो आप लोगों का सेवक मात्र हूँ".
जब वह महिला नथ मिलने की खुशी में जलाराम बापा के जोर से जयकारे लगा रही थी, तब इसे सुन कर वहां आये हुए अन्य अथिति भी एकत्रित हो गए. नथ संबंधी किस्सा और जलाराम बापा का चमत्कार सबको मालूम हुआ.      जलाराम बापा के यहाँ पहली बार आये एक युवक ने जिज्ञासावश उनसे पूछा- "बापा, आप नाराज न हो तो एक बात पूछू?" जलाराम बापा बोले- "नाराजगी कैसी?, पूछो भाई". उस युवक ने कहा- "बापा, यह कैसे हो सकता है? इस महिला की नथ खोई थी कहीं और किन्तु निकली इस नारियल के भीतर से. यह कैसे संभव हुआ?, समझ में नहीं आ रहा है" जलाराम बापा ने अनजान बनते हुए जवाब दिया- "भाई, यह मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है, तो फिर तुझे कैसे समझाऊं". वह युवक निरूत्तर होकर जलाराम बापा का मुंह ताकने लगा. लेकिन वहां मौजूद पुराने अनुयायी जलाराम बापा के इस चमत्कार को समझ रहे थे.
उधर, वह कड़बी महिला ने जलाराम बापा के इस चमत्कार से प्रभावित होकर मन बना लिया अब अपने गाँव वापस नहीं जायेगी और जलाराम बापा के यहाँ रह कर सेवा कार्य में सहयोग करेगी. उसने वीर बाई से कहा- "देवी माँ, अब इस गृहस्थ संसार से मेरा मोह भंग हो गया है, मैं यहीं रह कर सेवा और प्रभु भक्ति करना चाहती हूँ, आप आज्ञा दें".वीर बाई ने उसे समझाया- "नहीं बहन, ऐसा न सोचो. गृहस्थ संसार में रहते हुए पति की सेवा करना ही प्रभु भक्ति के समान है. तुम प्रसन्नचित्त होकर अपने घर जाओ और परिवार का ध्यान रखो". फिर वह महिला वीर बाई के आदेश का आदर करते हुए अपने गाँव के लिए प्रस्थान कर गई. (जारी )           .      .        .                        
                                                               

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आदरणीय ठक्कर जी....बापा के कई किस्से मैंने पढ़े है...यह नहीं पढ़ा था...आपने बहुत सीमित शब्दों में अपनी बात रखी है...आप इसी तरह बापा के बगिया के रंग—बिरंगे फूलों को लेकर हमारे पास आते रहिये... हो सकता है कि इन फूलों की सुंदरता और निश्छलता से हमारा जीवन भी इन्हीं पुष्पों की भांति सुगंधित हो जाये...जय जलाराम बापा...