रविवार, 8 जनवरी 2012

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 39 )

मृत्यु के बाद मुंह बोली बहन से मुलाक़ात : जलाराम बापा अपनी नश्वर देह को त्याग कर स्वर्गवासी हो चुके थे. उनकी काया की अंतिम यात्रा प्रारम्भ हो गई थी. लेकिन स्वर्ग लोक की ओर जाते जाते भी जलाराम बापा की दो मुलाकातें इस मायावी धरा पर शेष थीं, जो बाद में वीरपुर वासियों के संज्ञान में आयीं भी.
हुआ यूं, जलाराम बापा तीन भाइयों में मंझले थे, लेकिन उनकी कोई बहन नहीं थी. इसलिए उन्होंने अपने गाँव वीरपुर की निवासी गलाल बाई को अपनी मुंह बोली बहन बनाया था. वह जलाराम बापा को स्नेह से जला भाई के नाम से संबोधित करती थीं. रक्षाबंधन के दिन वे जलाराम बापा को राखी बांधना नहीं भूलती थीं. रक्षा सूत्र बाँध कर वे जलाराम बापा को लम्बी उम्र देने प्रभु से कामना करती थीं. हर प्रसंग पर वे मौजूद रहती थीं. दोनों के बीच सगे भाई-बहन से भी ज्यादा स्नेह था. जब जलाराम बापा रोगग्रस्त होकर सदा के लिए बिस्तर पर ही लेटने को विवश हो गए थे, तब गलाल बाई जलाराम बापा का कुशलक्षेम जानने उनके पास नम आँखों के साथ आयीं. बिस्तर के निकट आते ही उन्होंने रोते हुए जलाराम बापा से पूछा- "जला भाई, तबियत कैसी है?'. जलाराम बापा शांत भाव से बोले- "गलाल बेन, इस नश्वर देह की सजा स्वीकार करनी पड़ती ही है. यह तो विधि का विधान है. तुम अपना हालचाल बताओ, कैसी हो?". वह रूआंसी होकर बोली- "जला भाई, मैं तो ठीक हूँ, किन्तु आपका इस तरह गंभीर रूप से बीमार होकर बिस्तर का साथी बन जाना समझ में नहीं आ रहा है. आपके आशीर्वाद से भक्तों का बड़े से बड़ा रोग पल भर में समाप्त हो जाता है, तो फिर आपको रोग इस तरह क्यों सता रहा है?". जलाराम बापा ने संक्षिप्त जवाब दिया- "यह भी प्रभु की इच्छा है, अपनी कोई बात हो तो बताओ". उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा- "जला भाई, आपकी तबियत देख कर कहीं जाने का मन नहीं कर रहा है. किन्तु उमरावी गाँव से मेरे भाई रूपा ने सेवक भेज कर मुझे बुलवाया है. अगर आपकी आज्ञा हो तो आज एक दिन के लिए चली जाऊं". जलाराम बापा ने अनुमति देते हुए कहा- "ठीक है गलाल बेन, जाओ, भाई ने इतने स्नेह से बुलाया है तो तुमको जाना ही चाहिए. किन्तु वहां एक दिन से अधिक नहीं रूकना, मेरा कोई ठिकाना नहीं है". तत्पश्चात गलाल बाई तुरंत अपने भाई रूपा के गाँव जाने के लिए रवाना हो गई. रूपा भाई के घर पहुंचने पर गलाल बाई का आत्मीय स्वागत हुआ. कई दिनों बाद बहन घर आई थी, इसलिए रूपा भाई बेहद खुश हुए, लेकिन उनकी बहन का पूरा ध्यान वीरपुर में लगा हुआ था, जलाराम बापा की याद उन्हें रह रह कर आ रही थी. दूसरे दिन सुबह होते ही उन्होंने रूपा भाई से वीरपुर लौटने की इजाजत माँगी. उन्होंने कहा- "भाई, मुझे अभी वीरपुर वापस जाना है. जला भाई की तबियत बहुत खराब है, इसलिए मैं यहाँ अब अधिक नहीं रूक सकती". रूपा भाई ने जिद करते हुए कहा- "बहन, इतने दिनों बाद भाई के घर आई हो. एक दिन में ही वापस लौटने की बात कर रही हो. एक दो दिन और रूक जाओ". भाई की जिद के आगे गलाल बाई को मजबूर होकर झुकना पडा. वे उस रात रूक गई.
तीसरे दिन गलाल बाई वीरपुर के लिए प्रस्थान की. शाम के करीब चार बज रहे थे. अभी भी वीरपुर दो मील दूर था. एकाएक सामने से जलाराम बापा आते हुए गलाल बाई को दिखे. वह चौंक गयीं. गलाल बाई ने देखा जलाराम बापा के हाथ में पानी की मटकी थी. गलाल बाई प्रसन्न हो गई. वह उनके पास जाकर बोली- "अरे जला भाई, आप
इस समय यहाँ?, इतनी तेज धूप में कहाँ जा रहे हैं?" जलाराम बापा ने खुलासा किया- "गलाल बेन, बिस्तर पर सोने के समय मुझे तुम्हारा ख्याल आया. तुम इतनी धूप में आ रही हो तो प्यासी होगी, इसलिए तुम्हारे लिए मटकी में ठंडा पानी लेकर आया हूँ". गलाल बाई ने गदगद होकर कहा- "भाई हो तो ऐसा, आप कितना ध्यान रखते हैं अपनी बहन का". फिर उन्होंने ठंडा पानी पीकर अपना गला तर किया. जहां जलाराम बापा गलाल बाई को पानी पिला रहे थे, वहां बाजू के खेत में उस समय कचरा भाई डोबरिया किसानी कार्य में व्यस्त थे. जलाराम बापा ने उन्हें देख कर जोर से पुकारा- "कचरा भाई, क्या कर रहे हो". जलाराम बापा की आवाज सुन कर कचरा भाई दौड़ कर आ गए और जवाब दिया- "बापा, खेत से ही हमारी रोजी रोटी चलती है. किसानी का काम तो करना ही पडेगा न, नहीं तो बाल बच्चे भूखे मरेंगे". जलाराम बापा ने हंसते हुए कहा- "ठीक बोल रहे हो कचरा भाई, अपना काम ही अपनी पूजा है. अब वीरपुर गाँव चलो, गलाल बेन को तुम्हारा साथ भी मिल जाएगा". कचरा भाई जलाराम बापा के आदेश को सम्मान देते हुए वीरपुर गाँव चलने के लिए तुरंत राजी हो गए. फिर जलाराम बापा
ने गलाल बाई से कहा- "गलाल बेन, सूर्यास्त होने वाला है, मेरे यहाँ साधुसंत आ गए होंगे, मुझे शीघ्र पहुँचना होगा, तुम दोनों आराम से पहुँचो". गलाल बाई ने जवाब दिया- जला भाई, ठीक है. जैसा आपका आदेश". तत्पश्चात जलाराम बापा तेज कदमों से आगे बढ़ गए. अगले ही क्षण वे नज़रों से ओझल हो गए.
उधर, गलाल बाई और कचरा भाई आहिस्ते आहिस्ते चलते हुए वीरपुर गाँव की सीमा में प्रवेश कर गए. सड़क से सटे शमशान की तरफ दोनों की दृष्टि गई तो देखा वहां कई लोग बैठे हैं और सामने चिता जल रही है. उत्सुकतावश दोनों वहां पहुंचे. गलाल बाई ने एक परिचित से पूछा- "भाई, किसका देहावसान हो गया है?". उसने
रूंधे गले से जवाब दिया- "अरे गलाल बेन, ताजुब्ब है आपको नहीं मालूम, आपके और पूरे गाँव के जलाराम बापा
प्रभु श्रीराम को प्यारे हो गए हैं, वे हमें अनाथ बना कर इस दुनिया से चले गए हैं". यह सुन कर गलाल बाई के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह भौंचक रह गई, इस अशुभ समाचार पर उन्हें भरोसा नहीं हो रहा था. उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा- "क्या बोल रहे हो, ऐसा कैसे हो सकता है, अभी कुछ देर पहले ही जला भाई से मेरी भेंट हुई,  उन्होंने मुझे ठंडा पानी भी पिलाया". इतने में दूसरा परिचित बोला- "गलाल बेन, अंतिम सांस लेने से पहले बापा
आपको बहुत याद कर रहे थे. आप तो मात्र एक दिन के लिए भाई के गाँव गई थीं, फिर आने में देर क्यों कर दीं ?". गलाल बेन रोने लगी. रोते रोते वह अपने सर पर हाथ रख कर जमीन पर बैठ गई. वह निरूत्तर हो गई. लोगों ने उसे सांत्वना देकर शांत कराया. कुछ देर बाद वे जलाराम बापा की चिता के निकट गई और परिक्रमा करने के बाद हाथ जोड़ कर कहा- "जला भाई, आपके आदेश की मैंने अवहेलना की, मुझे क्षमा कर दीजिये". यह कह कर वे फिर फूट फूट कर रोने लगीं. अग्नि संस्कार संपन्न होने के बाद सभी अपने अपने घर चले गए. स्नान आदि शुद्धिकरण के पश्चात सभी ग्रामवासी रात को जलाराम बापा द्वारा बनवाए गए मंदिर परिसर में भजन कीर्तन के लिए एकत्रित हुए. गलाल बाई और कचरा भाई भी आये. गलाल बाई ने जलाराम बापा से मुलाक़ात का पूरा वृत्तांत फिर सुनाया तो किसी को विश्वास नहीं हुआ. सबने उसे मन का वहम बताया. तब कचरा भाई ने गलाल बाई की
बात का समर्थन किया और खुद के साक्षी होने का भरोसा दिलाया. तब फिर ग्रामवासियों को गलाल बाई की बात
सत्य लगी. सबने इस घटनाक्रम को जलाराम बापा का ही चमत्कार निरूपित किया. सभी ने जलाराम बापा के जयकारे लगाए तत्पश्चात राम धुन प्रारम्भ की गई. ( जारी )                
                                                      
         

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