गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 22 )

सर्प दंश से पीड़ित बच्चे को स्वस्थ किया : एक तरफ जलाराम बापा के अनूठे चमत्कारों का सिलसिला जारी था, तो दूसरी ओर श्रद्धालुओं का उनके प्रति विश्वास बढ़ता ही जा रहा था. एक बार वीरपुर के समीपस्थ गाँव में सामजी सोनी के पुत्र को जहरीले सांप ने जब डंसा तो उसका शरीर नीला होने लगा. बच्चे की हालत देख कर परिजन रूआंसे हो गए. इस बीच पड़ोसी भी वहां पहुँच गए. एक पड़ोसी ने उस बच्चे के पिताश्री को सलाह दी- "सामजी भाई, बच्चे का जीवन बचाना चाहते हो तो बिना देर किये वीरपुर जलाराम बापा के पास चले जाओ." यह सलाह सामजी को भी उचित लगी. वे तत्काल बच्चे को लेकर वीरपुर रवाना हो गए.
जलाराम बापा के घर पहुंचते ही सामजी ने चरण स्पर्श कर उन्हें अपने आने का मकसद बताया. सुन कर जलाराम बापा कुछ नहीं बोले. केवल उन्होंने एक सेवक को इशारा कर चिमटा मंगवाया, तत्पश्चात उस चिमटे को तीन बार बच्चे के उस अंग पर छुवाया, जहां सांप ने डंसा था. फिर तो जैसे कोई चमत्कार हो गया. क्षण भर में उस निर्जीव से बच्चे ने आँखें खोली और उठ कर बैठ गया. यह अद्भुत नजारा देख कर सामजी सहित वहां उपस्थित सभी अनुयायी बोल उठे- "जलाराम बापा की जय". पुत्र को मौत के मुंह से वापस लौटा देख कर सामजी सोनी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. उसकी आँखों से खुशी के आंसू छलक उठे. जलाराम बापा के पैर छूकर उसने कहा- "बापा, आपने आज मेरे बच्चे को नया जन्म दिया है, आपका यह उपकार मैं जीवन भर याद रखूंगा". जलाराम बापा ने कहा- "भाई, यह तो प्रभु की कृपा है, उपकार उनका मानो". इतना कह कर जलाराम बापा अन्य सेवा कार्य में व्यस्त हो गए. सामजी सोनी भी आज्ञा लेकर अपने गाँव रवाना हो गए.
मृत पक्षी जब जीवित हो गए : राजकोट के राजा की नौकरी छोड़ कर तीन मुस्लिम शिकारी वीरपुर के रास्ते जूनागढ़ की ओर जा रहे थे. उनके पास एक पिंजरा था, जिसमें कुछ मृत पक्षी थे. वीरपुर गाँव की सीमा पर इनकी मुलाक़ात जलाराम बापा से हो गई. जात-पांत के भेदभाव से जलाराम बापा परे थे, इसलिए आग्रहपूर्वक उन्हें भी अपने यहाँ भोजन कराने ले आये. वे मुस्लिम शिकारी आ तो गए, लेकिन पिंजरे में मरे हुए पक्षी होने के कारण मन ही मन संकोच और अपराध बोध हो रहा था. वे सोचने लगे- "कहीं खुदा के इस नेक बन्दे को हमारे पिंजरे में रखे मृत परिंदों के बारे में मालूम हो गया तो वे दुखी हो जायेंगे". इन तीनों मुस्लिम शिकारियों को भोजन कराने के बाद जलाराम बापा ने उनसे कहा- "भाइयों, आपके पिंजरे में कैद इन मूक पक्षियों को भी भूख लगी होगी, इन्हें भी दाना-पानी दिया जाना चाहिए. वे शिकारी कुछ बोल पाते, इससे पहले ही जलाराम बापा उस पिंजरे के पास गए और
उसका मुहाना खोल दिया. अन्दर मृत पड़े पक्षी जीवित होकर अपने पंख फडफडाते हुए बारी बारी उड़ गए. यह अजूबा देख कर उन शिकारियों की आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई. उन्हें आत्मग्लानी हुई और वे रोते हुए जलाराम बापा के पैरों में गिर कर माफी माँगने लगे. जलाराम बापा ने उनके सर पर हाथ रखते हुए कहा- "भाइयों,
जीव दया भी एक बड़ा धर्म है. मूक पक्षियों की सेवा करोगे तो तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा". उन शिकारियों ने समवेत स्वर में कहा- "बापा, आज से हम ऐसा ही करेंगे". फिर जलाराम बापा से अनुमति लेकर अपने गंतव्य स्थान की ओर चल पड़े.
नदी का बहाव बदला : जलाराम बापा एक बार जोडीया बंदरगाह गए. उस गाँव की सीमा पर नदी का बहाव अनुकूल न होने से ग्रामीण महिलायें परेशान थीं. जलाराम बापा को उन महिलाओं ने अपनी परेशानी बताई. जलाराम बापा ने उन्हें भरोसा दिलाया- "बहनों, चिंता मत करो. समय आने पर सब ठीक हो जाएगा". जलाराम बापा का यह आश्वासन आश्चर्यजनक ढंग से फलीभूत हुआ. मानसून आते ही नदी का बहाव स्वतः बदल गया. इस तरह
ग्रामीण महिलाओं की दिक्कतें हमेशा के लिए दूर हो गई.
नवागाम में संक्रामक रोग मिटाया : नवागाम में एक बार संक्रामक बीमारी फ़ैली थी. ग्रामवासी सभी तरह का इलाज कराकर देख चुके थे.कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था. आखिरकार गाँव के मुखिया और कुछ ग्रामीण जलाराम बापा के पास जाकर उनसे अपनी तकलीफ बताई. परेशानी सुनकर जलाराम बापा उसी पल उनके साथ नवागाम
रवाना हो गए. नवागाम पहुँच कर उन्होंने हालात का जायजा लिया. फिर जिस कुवे से ग्रामीण पीने का पानी लाते थे, उसमें भभूति डाली और प्रभु से संक्रामक रोग मिटाने की प्रार्थना की. तत्पश्चात जलाराम बापा ने ग्रामीणों से कहा- "आप लोग निश्चिन्त रहें, कुछ दिन में बीमारी दूर हो जायेगी". इतना कह कर वे वापस वीरपुर लौट गए. चार दिन बाद जब पूरे नवागाम में संक्रामक रोग दूर हो गया तो ग्रामीण अचंभित रह गए. सबने प्रसन्नतापूर्वक जलाराम बापा के जयकारे लगाए.
        
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