शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 26 )

मृत युवा शिष्य मंगू में प्राण लौटाए : जलाराम बापा के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ती ही जा रही थी. श्रद्धालु उन्हें भगवान का दूत मानने लगे थे. उनके गाँव वीरपुर में कालिदास नामक एक अनुयायी भी था. एक दिन उनके घर एक ज्योतिष जोशी महाराज आये. कालिदास ने उत्सुकतावश उन्हें अपने दस वर्षीय पुत्र मंगू का भविष्य बताने का आग्रह किया. ज्योतिष ने मंगू की हस्त रेखा देख कर भविष्यवाणी की "दस साल बाद यानी जब इस लड़के की आयु बीस वर्ष की होगी तो इसके जीवन को खतरा होगा. हाँ, यदि किसी महान परोपकारी संत की कृपा होगी तो ही इसके जीवन की रक्षा होगी".ज्योतिष की यह भविष्यवाणी सुन कर कालिदास और उसका परिवार सन्न रह गया. उस ज्योतिष जोशी महाराज को दक्षिणा देकर विदा किया गया.
कालिदास दिन भर उस ज्योतिष की भविष्यवाणी के कारण मायूस रहे. दूसरे दिन सुबह पूजा पाठ के पश्चात उन्हें एकाएक जलाराम बापा की याद आई. "यदि किसी महान परोपकारी संत की कृपा होगी तो ही उसके पुत्र के जीवन की रक्षा होगी" ज्योतिष की इस भविष्यवाणी के मद्देनजर कालिदास को जलाराम बापा ही उपयुक्त लगे. जलाराम बापा की शरण में जाना उचित समझा. वे तत्काल अपने पुत्र मंगू को लेकर जलाराम बापा के यहाँ पहुँच गए. लेकिन तय यह किया ज्योतिष की भविष्यवाणी का कोई जिक्र नहीं करेंगे. अपने अनुयायी कालिदास को देख कर जलाराम बापा ने उसका आथित्य सत्कार किया फिर पूछा- "भाई, मेरे योग्य कोई और सेवा हो तो बताओ". कालिदास ने सकुचाते हुए हाथ जोड़ कर कहा- "बापा, यह मेरा एकलौता बेटा मंगू है, आप इसे कंठी बाँध कर अपना शिष्य बना लीजिये. आप इसके गुरू बन जायेंगे तो इसका जीवन धन्य हो जाएगा". फिर उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया- "बेटा मंगू इधर आ, अपने गुरूदेव के पैर छूकर आशीर्वाद ले". मंगू ने फुर्ती से जलाराम बापा के चरण स्पर्श किये. जलाराम बापा ने उसे आशीर्वाद दिया. तत्पश्चात कालिदास से कहा- "भाई, मैं तो प्रभु का एक सामान्य सा भक्त हूँ, आप लोगों का एक छोटा सेवक हूँ, कोई सिद्ध योगी संत महात्मा नहीं हूँ, जो तुम्हारे बेटे को कंठी बाँध कर उसका गुरू बन सकूं. मैं इस योग्य नहीं हूँ , इसके लिए मुझे क्षमा करिए". जलाराम बापा द्वारा इनकार किये जाने से कालिदास की मायूसी और बढ़ गई. उन्होंने निराशा भरी नज़रों से पास में बैठे जलाराम बापा के एक विशेष अथिति तेजस्वी महात्मा की ओर देखा. यह पूरा वार्तालाप वे भी सुन रहे थे. कालिदास की निराशाजनक किन्तु आग्रहयुक्त नज़रों को वे भांप गए. तेजस्वी महात्मा ने जलाराम बापा से विनम्रता पूर्वक कहा- "भगत, संकोच मत करो. इश्वर का नाम लेकर इस बच्चे को कंठी बाँध दो और अपना चेला बना लो". जलाराम बापा तेजस्वी महात्मा की बात नहीं काट सके. उनके आदेश का सम्मान करते हुए कालिदास के पुत्र मंगू को कंठी बाँध दी, तत्पश्चात उसे सत्य और सेवा के मार्ग पर चलने की सीख देते हुए आशीर्वाद दिया. मंगू ने पुनः जलाराम बापा के चरण स्पर्श किये. कालिदास अत्यंत प्रसन्न हो गए. उन्होंने जलाराम बापा से निवेदन किया- "बापा, अबसे मेरे बेटे का जीवन आपके हवाले है, इसकी रक्षा आप पर निर्भर है".जलाराम बाप ने जवाब दिया- "भाई, जीवन की रक्षा करने वाला एकमात्र प्रभु है. मेरा आशीर्वाद है प्रभु अवश्य रक्षा करेगा. घोर संकट के समय कोई सहायता की आवश्यकता हो तो इस सेवक को बुलाना, मैं उपस्थित हो जाउंगा". कालिदास हर्षित होकर अपने बेटे मंगू के साथ घर की तरफ चल पडा.
कालिदास और उसके परिवार वालों की चिंता अब समाप्त हो गई थी. अब वे चैन की नींद लेने लगे थे. वक्त बीतता गया. बेटे मंगू की उम्र बढ़ने लगी. गुणवान, सज्जन होने के साथ ही कामकाज में भी वह निपुण हो गया था. लोग उसकी तारीफ़ करने लगे. सोलह बरस पूरे होते ही उसके लिए रिश्ते आने शुरू हो गए. लेकिन पिताश्री कालिदास बेटे के लिए अच्छे रिश्ते आने पर भी साफ़ इनकार कर देते. मन में ज्योतिष की भविष्यवाणी का खटका तो था ही. उनकी इच्छा थी बेटे की आयु बीस वर्ष पूर्ण होने के बाद ही उसका विवाह करूंगा, अन्यथा क्यों किसी लडकी का जीवन भी बर्बाद हो".
अब मंगू ने १९ वसंत देख लिए थे. १९ वर्ष तक इस युवक की काया निरोगी थी. उसे किसी तरह की बीमारी ने नहीं जकड़ा था. लेकिन जैसे ही मंगू ने बीसवें वर्ष में प्रवेश किया, उसे पेट में दर्द होना शुरू हो गया. वह पेट की पीड़ा से परेशान रहने लगा. एक दिन ऐसा भी आया, जब पेट का दर्द बढ़ कर उसके लिए असहनीय हो गया. तुरंत वैद्य, हकीम बुलाये गए. सभी प्रकार का उपचार करा कर देख लिया गया, किन्तु कोई फ़ायदा नहीं हुआ. पेट की पीड़ा बढ़ती ही गई. वह छटपटाता रहा. कुछ देर बाद युवक मंगू ने अपनी आँखें सदा के लिए मूँद ली. घर में शोक का वातावरण छा गया. माता, पिताश्री और परिजनों के आंसू नहीं थम रहे थे. तब तक पड़ोसी और गाँव के परिचित जन भी शोक जताने एकत्रित हो गए. पड़ोसी कालिदास को सान्तवना देने लगे.
शोक संतप्त कालिदास को एकाएक उस ज्योतिष जोशी महाराज की भविष्यवाणी याद आ गई, जो सच सिद्ध हुई. इसके साथ ही जलाराम बापा भी याद आये. जलाराम बापा द्वारा बेटे को कंठी बांधने के बाद कहे गए यह शब्द कालिदास के कान में गूंजने लगे- "घोर संकट के समय कोई सहायता की आवश्यकता हो तो इस सेवक को बुलाना, मैं उपस्थित हो जाउंगा". कालिदास ने अपनी धोती से आँखें पोछी. समीप बैठे चचेरे भाई शामजी से उन्होंने कहा- "शामजी भाई, आप तुरंत जलाराम बापा के यहाँ जाकर उन्हें यह सूचना दीजिये "आपने जिसे कंठी बाँध कर शिष्य बनाया है, वह सेवक अंतिम यात्रा के लिए जा रहा है". शामजी तत्काल रवाना हो गए. जलाराम बापा के यहाँ पहुँच कर शामजी ने उन्हें कालिदास का सन्देश देते हुए सारा वृत्तांत सुनाया. यह सुन कर जलाराम बापा बोले- "क्या बात कर रहे हो भाई, ऐसा कैसे हो सकता है?, चलिए, मैं भी आपके साथ चलता हूँ". बिना देर किये जलाराम बापा शामजी के साथ कालिदास के घर की ओर चल पड़े.
दस मिनट बाद जलाराम बापा कालिदास के घर पहुँच गए. बाहर शोक जताने वालों की भीड़ लगी थी. घर के भीतर
महिलाओं का रूदन जारी था. कालिदास के एकलौते युवा पुत्र मंगू की अर्थी तैयार थी. जलाराम बापा को देखते ही
कालिदास रोते हुए उनके पैरों में गिर पड़े और कहा- "बापा, मैं कहीं का नहीं रहा. मेरा सब कुछ लुट गया. मेरा एकलौता जवान बेटा देखते ही देखते मुझसे दूर चला गया. भगवान् को बुलाना था तो मुझे बुला लिया होता".
जलाराम बापा ने उसे सान्तवना देते उठाया और कहा- "हिम्मत रखो भाई, एक बार मुझे अपने शिष्य मंगू का मुंह तो दिखा दो. जलाराम बापा की इच्छा का आदर करते हुए अर्थी पर लिटाये हुए मंगू के शव से उपरी हिस्से का कफ़न हटा दिया गया. अंतिम संस्कार की विधि में दक्ष समाज के एक बुजुर्ग ने मंगू के मुंह से कफ़न हटाते हुए कहा- "लीजिये बापा, अपने जवान शिष्य का मुंह अंतिम बार देख लीजिये". जलाराम बापा अर्थी के पास बैठ गए. मंगू के शव पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरा और कहा- "मंगू, मेरे प्यारे शिष्य, अभी और कितनी देर तुझे नींद लेनी है, ज़रा आँख खोल कर मेरी ओर देख". जलाराम बापा के इतना कहते ही चमत्कार हो गया. अगले ही क्षण मंगू की आँख खुल गई. वह एकटक जलाराम बापा की तरफ देखने लगा. जलाराम बापा राम राम जपते हुए मुस्कुराए. उन्होंने कहा- "मंगू, मेरे प्यारे शिष्य, खड़े हो जा, तुझे अभी सेवा के बहुत कार्य करने शेष हैं".मंगू के शरीर में हलचल होने लगी. यह अजूबा देख कर कालिदास सहित सभी उपस्थित जन आश्चर्यचकित रह गए. समाज के बुजुर्ग व्यक्ति ने तुरंत मंगू के शरीर के बंधन खोल दिए. मंगू उठ कर खडा हो गया. उसके पिताश्री कालिदास खुशी से झूम उठे. वे हर्षित होकर जलाराम बापा के जयकारे लगाने लगे. वहां मौजूद लोग भी भक्ति भाव से "जलाराम बापा की जय" बोलने लगे.
पल भर में शोक का माहौल हर्ष के वातावरण में बदल गया. कालिदास ने जलाराम बापा के चरण स्पर्श करते आभार जताया- "बापा, आप भगवान् के अवतार हैं. आपने मेरी खुशियाँ लौटा दी. मेरे एकलौते सहारे को नया जीवन देकर बड़ा उपकार किया. मैं, मेरा बेटा और पूरा कुटुंब जीवन भर आपका आभारी रहेगा". मंगू ने भी जलाराम बापा के पैर छूकर आभार जताया. जलाराम बापा ने दोनों से कहा- "जीवन की डोर प्रभु के हाथ में रहती है, हम इंसान तो कठपुतली मात्र हैं. उनकी इच्छा ही सर्वोपरि है. इसलिए प्रभु पर सदैव आस्था रखना".
जलाराम बापा से आशीर्वाद लेने के बाद कालिदास ने प्रसन्न होकर सबका मुंह मीठा कराने के उद्देश्य से चचेरे भाई शामजी से कहा- "शामजी भाई, दो चार आदमी को साथ ले जाकर हलवाई के यहाँ जाओ और लगभग पचास लोगों
को पूरा हो उतना हलवा बनवा कर ले आओ". कुछ देर बाद हलवा लाया गया. इसी दौरान आसपास के मोहल्ले में भी मंगू के जीवित होने की चमत्कारिक घटना की जानकारी वायुवेग से फ़ैल चुकी थी. फलस्वरूप करीब पांच सौ लोग हलवा बन कर आते तक इकट्ठे हो गए. यह विकट स्थिति देख कर कालिदास घबरा गए. पचास लोगों के जितना हलवा मंगवाया गया था, जबकि मौजूद थे करीब पांच सौ लोग. हलवा किसे खिलाएं, किसे न खिलाएं. कालिदास की असमंजसता जलाराम बापा से छिपी न रही. उन्होंने कालिदास से कहा- "भाई, इसमें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है. जिस गंज में हलवा रखा है, उस पर कपड़ा ढँक कर बाजू में घी का दीपक जला और प्रभु श्रीराम का नाम लेकर सबको हलवा परोसना प्रारम्भ कर. मैं यहीं बैठा हूँ". फिर क्या था. सभी को हलवा परोसा गया. पचास के बजाय करीब पांच सौ लोगों का मुंह मीठा हो गया. यह चमत्कार भी चर्चा का विषय बन गया. फिर
बारी बारी सबने जलाराम बापा के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया और अपने अपने घर की राह पकड़ी. ( जारी )                                            
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