शनिवार, 17 दिसंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 23 )

पुकारने से मृत लड़का जीवित हो उठा : जलाराम बापा के भक्त काया रैयानी के पुत्र की एक दिन अचानक मृत्यु हो गई. परिजन रोने लग गए. पूरा परिवार शोक में डूब गया. किसी को कुछ समझ में नहीं आया वह लड़का अचानक मौत के मुंह में कैसे चला गया. इसी बीच वहां जलाराम बापा पहुँच गए. न जाने उन्हें कैसे इस शोकमय घटना की जानकारी मिल गई. जलाराम बापा को देखते ही काया रैयानी उनके पैरों में गिर कर फफक फफक कर रोने लगे . और कहा- "बापा, भगवान् ने मेरे बेटे को इतनी जल्दी क्यों उठा लिया, उसका क्या कसूर था, उसके बदले मुझे क्यों नहीं उठाया". जलाराम बापा ने उसके सर पर हाथ फेर कर सांत्वना देते हुए कहा- "भाई, तुम क्यों रो रहे हो, शांत हो जाओ. कुछ नहीं हुआ है तुम्हारे पुत्र को".फिर जलाराम बापा ने अपने अनुयायी काना रैयानी से कहा- "भाई, मुझे तुम्हारे पुत्र का चहेरा देखना है, उस पर लपेटा कपड़ा हटा दो". उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए कफ़न खोल दिया गया. फिर जलाराम बापा ने उस मृत लडके की तरफ देख कर कहा- "बेटा, तुम क्यों इस तरह गुमसुम से सोये हुए हो. आँख खोल कर ज़रा मेरी ओर तो देखो".तत्पश्चात चमत्कार हो गया. क्षण भर में वह मृत लड़का आँख मलते हुए उठ कर बैठ गया, मानो गहरी नींद से जागा हो. इस अप्रत्याशित दृश्य से शोक का माहौल पल भर में खुशी के वातावरण में बदल गया. उस लड़के के पिताश्री काना रैयानी खुशी से झूम उठे, आँखों से खुशी के आंसू छलक उठे. काना रैयानी समेत सभी लोग भक्ति भाव से जयकारे लगाने लगे- "जलाराम बापा की जय".
जीवित हुए उस लड़के के पिताश्री ने जलाराम बापा के चरण स्पर्श कर आभार जताते हुए कहा- "बापा, आपके कारण मेरे पुत्र का पुनर्जन्म हुआ है, मैं जीवन भर आपका कर्जदार रहूँगा. आपका बहुत बहुत आभार".जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "प्रभु सदैव भक्तों का साथ देता है, मेरा नहीं प्रभु का आभार मानो". इतना कह कर जलाराम बापा चुपचाप वहां से विदा हो गए.
स्मरण मात्र से आंधी थम गई : देवपरा गाँव में नानजी नामक एक किसान जलाराम बापा का कट्टर अनुयायी था.
एक बार उसका पूरा परिवार दोपहर को एक बड़े छायादार वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन कर रहा था. एकाएक उसी समय तेज आंधी चलना शुरू हो गयी. सभी परिवार वाले घबरा गए. उन्हें भय सताने लगा कहीं तेज आंधी से वृक्ष जड़ से ना उखड जाय. संकट से बचने किसान नानजी ने तत्काल हाथ जोड़ कर जलाराम बापा का स्मरण किया. फिर तो उसी पल तेज आंधी थम गई. स्थिति सामान्य हो गई. किसी पर कोई आंच न आई. शाम को घर पहुंचने पर किसान नानजी ने गाँव वालों को इस चमत्कारिक घटना के बारे में बताया. उसी वक्त ग्राम मुखिया की उपस्थिति में यह तय हुआ सभी किसानों की उपज का बीसवां हिस्सा जलाराम बापा के सदाव्रत-अन्नदान के लिए नियमित रूप से दिया जाएगा. अगले ही दिन अपने हिस्से का अनाज लेकर जब किसान नानजी वीरपुर गए तब उन्होंने जलाराम बापा के चरण स्पर्श करने के बाद उनसे तेज आंधी वाले घटनाक्रम का सविस्तार जिक्र किया. उन्होंने जलाराम बापा से हाथ जोड़कर कहा- "बापा, आपको सच्चे मन से याद करो तो उतने में ही सब संकट दूर हो जाते हैं. तेज आंधी वाले दिन भी ऐसा ही हुआ था. उस दिन तो हम सब मरते मरते बचे. आपकी कृपा से हम सब सुरक्षित हो गए. जीवन पर्यंत हम आपके आभारी रहेंगे".जलाराम बापा ने स्मित मुस्कान के साथ कहा- "भाई, आप लोग संकट के समय यदि मुझे याद करोगे, तो मेरा भी दायित्व है आप लोगों की रक्षा करना. बदले में मुझे ही क्यों न तकलीफ उठानी पड़े. यह देखो मेरी पीठ". किसान नानजी ने देखा जलाराम बापा की पीठ मानो पेड़ की शाखाओं से छिल गई हो. वह अचंभित रह गया. जलाराम बापा फिर मौन हो गए. किसान नानजी ने उनसे आज्ञा लेकर अपने गाँव के लिए रवानगी दर्ज की.
फसल सुरक्षित रहने की मन्नत फली : अमरेली जिले में एक बार रात को मौसम खराब हो गया. एकाएक ओले गिरने लगे. किसान उका पटेल जलाराम बापा का भक्त था. ओले गिरते देख वह चिंतित हो गया. उसे चिंता सताने लगी कहीं ओले की वजह से उसकी फसल नष्ट न हो जाए.उसने जलाराम बापा को श्रद्धापूर्वक याद कर मन्नत मानी- "हे जलाराम बापा, मेरे खेत में ओले न पड़े और फसल सुरक्षित रहेगी तो मैं आपके यहाँ आकर दो नारियल
अर्पण करूंगा". फिर सुबह होने पर जब अपने खेत जाकर किसान उका पटेल ने नजारा देखा तो आश्चर्यचकित रह गया. आसपास के खेतों में ओले की वजह से फसल पूरी तरह नष्ट हो गई थी, लेकिन उसके खेत में फसल लहलहा रही थी. ओले का नामोनिशान न था, फसल पूर्णतः सुरक्षित थी. उसने चैन की सांस ली और तुरंत जलाराम बापा के यहाँ मन्नत के मुताबिक़ धन्यवाद ज्ञापित और नारियल अर्पित करने वीरपुर रवाना हो गया. वीरपुर पहुँच कर उसने सर्वप्रथम जलाराम बापा के चरण स्पर्श किये और मन्नत फलने पर आभार जताया- "बापा, आपकी कृपा से मेरी फसल बर्बाद होने से बच गई, अन्यथा मेरा परिवार दाने-दाने को मोहताज हो जाता". जलाराम बापा ने प्रत्युत्तर में कहा- "भाई, प्रभु पर सदा भरोसा रखो, सुखी रहोगे. दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, इसलिए
कभी मत घबराना". फिर किसान उका पटेल ने दो नारियल चढ़ाए.
गंगा-यमुना स्वयं विकलांग भक्त के घर आयीं : वीरपुर में विकलांग भीखा भाई भी जलाराम बापा के भक्तों में से एक
थे. गंगा-यमुना की यात्रा करने की उनकी दिली इच्छा थी, लेकिन इसमें विकलांगता आड़े आ रही थी. इसका उसे बहुत मलाल था. एक दिन भोर में उसकी नींद अचानक खुल गई. उसने अपने घर में पानी की गागर लिए दो तेजस्वी महिलाओं को देखा. क्षण भर में वे मटके में पानी उड़ेल कर अदृश्य हो गई. सूर्योदय के बाद भीखा भाई
जलाराम बापा के घर गए और आशीर्वाद लेकर उनको सारा वृत्तांत सुनाया. जलाराम बापा ने मुस्कुराते हुए कहा- "भीखा भाई, वे कोई सामान्य स्त्रियाँ नहीं थीं, बल्कि स्वयं गंगा-यमुना थीं. प्रभु के सच्चे और अशक्त भक्तों के पास वे स्वयं चल कर आती हैं". फिर प्रसन्न भाव से भीखा भाई अपने घर रवाना हो गए.
गोंडल नरेश और जूनागढ़ के नवाब ने भी सदाव्रत शुरू कराया : जलाराम बापा के सदाव्रत-अन्नदान से प्रेरित  होकर गोंडल के राजा ने वीरपुर से दो मील दूर स्थित चरखडी गाँव में राज्य खर्च से सदाव्रत-अन्नदान प्रारंभ करवाया. तत्पश्चात कुछ ही दिन में श्रद्धालुओं में यह जुमला प्रसिद्द हो गया "वीरपुर में मिले दाल रोटी, चरखडी में
मिले चावल".वहीं दूसरी ओर जूनागढ़ के नवाब जब जलाराम बापा की लोकप्रियता सुनकर वीरपुर आये तब उन्होंने भी यहाँ से प्ररणा पाकर समीपस्थ गाँव में सदाव्रत-अन्नदान शुरू करवाया.( जारी )                        
                                                                     

कोई टिप्पणी नहीं: