गुरुवार, 17 नवंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 3 )

प्रभु स्वयं बालक जलाराम के दर्शन करने आये : बालक जलाराम की सेवा भावना के किस्से दिन प्रतिदिन चर्चित होने लगे थे. चमत्कार का सिलसिला शुरू हो गया था. उनके घर एक बुजुर्ग महात्मा के आगमन की घटना तो विस्मयकारी थी. हुआ यूँ , एक दिन वयोवृद्ध महात्मा वीरपुर गाँव पधारे. वे कहीं और जगह जाने के बजाय सीधे बालक जलाराम के घर की चौखट पर आकर खड़े हो गए. इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य निहित था ,वही जानते थे. उस समय बालक जलाराम के पिता प्रधान ठक्कर घर पर मौजूद नहीं थे. वे अपनी दुकान पर थे. जबकि माता राजबाई घर के कामकाज में जुटी थीं.
उधर घर के सामने वाली गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे. उस वयोवृद्ध महात्मा ने सबसे पहले उन बच्चों की तरफ खोजपूर्ण दृष्टि डाली. वे थोड़े निराश हुए. फिर उन्होंने जोर से जयकारा लगाया- जय सीताराम, जय सीताराम. जयकारा सुनते ही तत्काल माता राजबाई घर से बाहर आयीं. संत महात्माओं के आथित्य सत्कार और सेवा के लिए सदा आतुर रहने वाली माता राजबाई ने उस महात्मा को देखते ही हाथ जोड़कर नम्रता से कहा- आइये पधारिये महाराज जी.लेकिन उस महात्मा की नजरें तो बालक जलाराम को तलाश रहीं थीं.उन्होंने तत्काल पूछा-
मैय्या, तुम्हारा मंझला पुत्र कहाँ है? खेलता होगा आसपास कहीं...इतना कहकर राजबाई ने गली में खेलते हुए बच्चों की ओर नजरें दौड़ाई. महात्मा ने आदेश दिया- उसको यहाँ बुलाओ. राजबाई ने निवेदन किया- आप विराजें,
भोजन करिए, वह अभी आता ही होगा.महात्मा ने बात काटते हुए कहा- नहीं, नहीं, ये सब बाद में, पहले तुम मुझे
अपने मंझले पुत्र के दर्शन कराओ.राज बाई ने पहले भोजन करने के लिए उनसे बहुत आग्रह किया लेकिन उस महात्मा ने अपना हठ नहीं छोड़ा.आखिरकार राज बाई ने खेल रहे बच्चों की तरफ देख कर जोर से पुकारा- जला...
ओ जला...सामने से कोई जवाब न मिलने पर राजबाई खुद उन बच्चों के पास गयीं.बालक जलाराम को वहां न पाकर वे निराश हो गयीं.तत्काल लौट कर उन्होंने महात्मा से कहा-महाराज जी आप थोड़ी देर बैठिये, जला आसपास कहीं दिख नहीं रहा है,मैं उसे खोज कर ले आती हूँ.महात्मा ने हठपूर्वक कहा- नहीं, मैं बैठने वाला नहीं,
पहले तुम अपने पुत्र को खोज कर यहाँ ले आओ. उससे बगैर मिले मैं नहीं जाउंगा. ठीक है... इतना कहकर राजबाई
बालक जलाराम को खोजने निकल पडी.आसपास के बच्चे भी उनके साथ हो लिए.
सब लोग जब गाँव की सीमा पर पहुंचे तब एक बच्चा चिल्ला उठा- देखो ओ रहा जला.राजबाई ने देखा पुत्र जला थोड़ी दूर वृक्ष के नीचे एक भिक्षुक को अपने हाथों से कुछ खिला रहा था.माता ने फिर जोर से उसे पुकारा.जला ने घूम कर देखा तो माता पुकार रही थी.बालक जलाराम ने जवाब दिया- बा, आता हूँ.भिक्षुक को खिला कर वह दौड़ता
हुआ माता के पास आ पहुंचा और पूछा- बा, कहिये कुछ काम था क्या? माता ने गर्वित होकर कहा- अपने घर एक
महात्मा आये हैं. मुझे मालूम है,भिक्षुक को खिला कर मैं घर आने ही वाला था.पुत्र का यह जवाब सुनकर माता को
आश्चर्य हुआ.फिर सब चल पड़े.बालक जलाराम आगे आगे, बाकी सब पीछे पीछे.
सब जब घर पहुंचे तो देखा महात्मा जस के तस उसी जगह खड़े थे. उन्हें देख कर बालक जलाराम ने साष्टांग दंडवत प्रणाम किया. आशीर्वाद देते हुए महात्मा ने पूछा- क्यों बच्चा, मुझे पहचानते हो? बालक जलाराम ने सौम्य
मुस्कराहट के साथ जवाब दिया-वाह कृपालु, आपको कौन नहीं पहचानता? दोनों हाथ जोड़ कर उसने शीश नवाया. महात्मा ने बालक जलाराम के सर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया और पल भर में अंतर्ध्यान हो गए.न बैठे, न भोजन किया, केवल बालक जलाराम के दर्शन कर अंतर्ध्यान होने वाले महात्मा कौन थे? किसी को समझ में नहीं
आया.माता राजबाई ने दुखी स्वर में कहा- जला,ये गलत हुआ.महात्मा घर आये और बिना भोजन किये वापस चले गए.मुझे अच्छा नहीं लगा.बालक जलाराम ने स्मित मुस्कान के साथ दिलासा देते हुए कहा- बा,तू अनावश्यक परेशान हो रही है, वे और कोई नहीं, बल्कि सबके अन्नदाता थे.पुत्र का यह रहस्यमयी जवाब सुन कर माता राजबाई आश्चर्यचकित भी हुई और प्रसन्न भी. उन्हें प्रभु के दर्शन होने की अनुभूति हुई.फिर सबने बालक जलाराम से पूछा-तो क्या वे.......सवाल पूरा होने से पहले बालक जलाराम मंद मंद मुस्कुराते हुए उस जगह पर गए, जहाँ महात्मा खड़े थे. वहां की मिटटी अपने माथे पर लगा कर प्रणाम किया. ( जारी.... )
                                                      
                                 

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