शनिवार, 26 नवंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 12 )

जलाराम के नाम की पहली मन्नत दरजी हरजी ने रखी, जो पूरी हुई : भक्त जलाराम द्वारा प्रारम्भ किये गए मानव सेवा के महायज्ञ में प्रतिदिन श्रद्धालुओं के सहयोग की आहुतियाँ भी फलीभूत हो रही थीं. भक्त जलाराम और उनकी पत्नी वीरबाई की सर्वहारा जन सेवा का प्रसाद पाकर उपकृत लोग स्वयं को धन्य मान रहे थे. उनके श्रेष्ठ कार्यों के पुष्पों की सुगंध चहुँ ओर फ़ैल गयी थी. उनके प्रति आदर और श्रद्धा भाव बढ़ना स्वाभाविक था. भक्त जलाराम प्रभु भक्ति के बीस वसंत अब तक देख चुके थे. युवा अवस्था के इस पड़ाव में आम तौर पर अधिकतर युवक जवानी के नशे में चूर रहते हैं, ऐसे संवेदनशील समय में युवा जलाराम प्रभु भक्ति के परम आनंद में मस्त रहते थे. यह देख कर गाँव के अन्य युवकों और वृद्धों को भी सुखद आश्चर्य होता था. उनके लिए ताजुब्ब का विषय था युवा जलाराम आखिर कैसे संसार की मोह-माया से बेहद परे हैं. काम वासना, क्रोध, लोभ जैसी बुराइयों से कैसे दूर हैं. लेकिन भगवान में भरोसा रखने वाले श्रद्धालुओं को इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता था. इसमें भी उन्हें भगवान् की कोई लीला नजर आती थीं.
उस समय वीरपुर जैसे छोटे गाँव में चिकित्सा के अच्छे संसाधन उपलब्ध नहीं थे. बीमार जनों को ज्यादातर परम्परागत घरेलू  उपचार का सहारा लेने विवश होना पड़ता था. वैद्य और हकीम इक्का दुक्का ही थे. प्राथमिक दवाखाना गाँव से दूर था. वीरपुर गाँव का एक दरजी, जिसका नाम हीरजी था, इसी समस्या का शिकार था. लगभग चार माह से वह पेट दर्द से पीड़ित था. वह सभी तरह के उपचार आजमा चुका था. किन्तु पेट दर्द ख़त्म होने
के बजाय बढ़ता ही जा रहा था. दर्द के मारे उसका बुरा हाल हो गया था. दर्द सहने की शक्ति जवाब दे रही थी. इसके कारण उसका सिलाई का कामकाज भी ठप हो गया था. एक दिन उस दरजी का शुभचिंतक मित्र पटेल घर आया. उसे देख कर हीरजी ने पूछा- " आइये मोटा भाई, बैठिये. कैसे आना हुआ?" मित्र पटेल ने उत्तर दिया- "तुम्हारा हालचाल जानने आया हूँ. अब कैसी तबियत है. अभी जो दवा ले रहे हो, वह असर कर रही है या नहीं?". हीरजी ने कराहते हुए कहा- "अरे मोटा भाई मत पूछो, दर्द के मारे हालत खराब है. लगता है यह दुश्मन पेट दर्द मेरी जान लेकर ही रहेगा".पटेल को अपने बीमार मित्र का दर्द देखा नहीं गया. उसने दिलासा देते हुए सुझाव दिया- "हीरजी, हिम्मत मत हारो. सुनो, तुमने सब प्रकार की दवा खाकर देख लिया है फिर भी तुम्हारा पेट दर्द दूर नहीं हो रहा है. मेरी एक सलाह मानोगे तो कहूं?" हीरजी ने उतावलेपन से हांमी भरीऔर कहा- "अरे मोटा भाई, आप जो कहोगे, मैं मानने को तैयार हूँ. बस, किसी भी तरह यह नासुकड़ा पेट दर्द ठीक हो जाए. तंग आ गया हूँ इससे. जब दर्द बर्दाश्त नहीं होता तो ऐसा मन करता है इस पेट को चीर दूं". मित्र पटेल ने स्नेहपूर्वक हीरजी की पीठ सहलाते हुए कहा- "अरे अरे, ऐसा कभी मत करना. इस तरह अगर हिम्मत हारोगे तो कैसे बात बनेगी". फिर उसने दार्शनिक अंदाज में कहा- "अपना यह शरीर तो भगवान् की भेंट स्वरुप है. इसलिए भगवान पर भरोसा रखो. सुनो, बीमारी में जब दवा काम न आये तो दुआ का सहारा लेना चाहिए. मन में श्रद्धा हो तो भले मानुष की दुआ भी दवा बन जाती है". हीरजी ने बीच में ही टोकते हुए कहा- "मोटा भाई, जल्दी उस भले मानुष का नाम बताओं जिसकी दुआ से मेरा यह दर्द बंद हो जाएगा".मित्र पटेल ने आत्मविभोर होकर जवाब दिया- "अरे नासमझ, उस देव तुल्य पुरूष को कौन नहीं जानता? जो स्वयं भूखे रहकर दुखियों और संत महात्माओं का पेट भरता हो, उसे और क्या कहेंगे? प्रभु के इस सच्चे भक्त का नाम है जलाराम. यह हमारा सौभाग्य है वे अपने गाँव वीरपुर में जन्म लिए हैं. वे सही मायने में भगवान के अंश हैं. तुम केवल उनको सच्चे मन से याद कर जल्दी ठीक होने की मन्नत मांगों. देखना, मुझे विश्वास है कोई न कोई अवश्य चमत्कार होगा. सारा गाँव भी इसे देखेगा". पेट के असहनीय दर्द से पीड़ित दरजी हीरजी ने सोचा-"सब कुछ करके देख लिया है. चलो अब यह भी आजमाने में क्या हर्ज है? फिर मित्र पटेल की सलाह से सहमत होते हुए उसने कहा- "ठीक है मोटा भाई, आपने जैसा कहा है वैसा ही करता हूँ. सलाह देने के लिए धन्यवाद". इतना कहकर दरजी हीरजी ने श्रद्धा भाव से दोनों हाथ जोड़ कर भक्त जलाराम का स्मरण करते हुए मन्नत माँगी- "हे भक्त जलाराम, आपकी कृपा से यदि मेरा पेट दर्द दूर हो जाएगा तो मैं आपके सदाव्रत-अन्नदान
के लिए पांच बोरी अनाज भेंट करूंगा".मित्र पटेल को आत्मिक संतोष की अनुभूति और प्रसन्नता हुई. उसने जाते
वक़्त कहा- "हीरजी, देखना अब तुम जल्दी ठीक हो जाओगे".
दरजी हीरजी का मन्नत युक्त निवेदन मानों प्रभु तक पहुँच गया हो, उसी रात से उसके पेट का दर्द कम होना शुरू हो गया. हफ्ते भर में तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया, जैसे कभी उसे पेट दर्द हुआ ही न हो. वह बेहद प्रसन्न हुआ. उसने श्रद्धाभाव से भक्त जलाराम का पुनः स्मरण कर हाथ जोड़ते हुए आभार जताया. फिर हर्षोल्लास के साथ वह
मित्र पटेल को स्वस्थ होने की खुशखबरी सुनाने दौड़ पडा. हीरजी को अपनी तरफ खुशी से दौड़ कर आता देख मित्र पटेल को यह समझते देर नहीं लगी जलाराम के नाम की उसकी मन्नत फल गई है. हीरजी ने आते ही चहक कर कहा- "मोटा भाई, चमत्कार हो गया. देखो भक्त जलाराम की कृपा से मैं बिलकुल ठीक हो गया हूँ. मेरा पेट दर्द छूमंतर हो गया है. ऐसा लग रहा है जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो". मित्र पटेल ने भी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए श्रद्धाभाव से हाथ जोड़ कर कहा- " हे भक्त जलाराम, मेरे मित्र को स्वस्थ करने के लिए आपका लाख लाख धन्यवाद". उसने फिर हीरजी से कहा- "मेरा अनुमान सौ टका सत्य निकला. सच्चे मन से प्रभु तो क्या उसके  असली भक्त को भी याद करो तो सारे दुःख दर्द स्वयं मिट जाते हैं. हीरजी तुम पहले ऐसे सौभाग्यशाली श्रद्धालु हो, जिसने भक्त जलाराम के नाम की मन्नत माँगी और वह पूरी भी हुई". दरजी हीरजी ने प्रसन्नचित्त होकर कहा- "मोटा भाई, मैं तो जीवन भर भक्त जलाराम का एहसानमंद रहूँगा. आपका भी आभारी हूँ, आपकी सलाह से यह संभव हुआ. अब मैं मन्नत पूरी होने के एवज में भक्त जलाराम को सदाव्रत-अन्नदान के लिए पांच बोरी अनाज भेंट स्वरुप दे आता हूँ. आप भी मेरे साथ चलेंगे तो मेहरबानी होगी". मित्र पटेल ने स्वीकृति देते हुए कहा- "अवश्य चलूँगा, इस पुण्य कार्य के लिए साथ जाना मेरा सौभाग्य होगा. भक्त जलाराम के दर्शन भी हो जायेंगे". फिर दोनों चल पड़े.
बाजार से दरजी हीरजी ने पांच बोरी अनाज खरीदा और उसे लेकर पहुँच गए भक्त जलाराम के घर. उनके साथ मित्र पटेल भी थे. उस समय भक्त जलाराम साधुजनों के साथ सत्संग में व्यस्त थे. भक्त जलाराम के पास पहुँचते ही बिना कुछ बोले दरजी हीरजी उनके पैरों में गिरकर अपना सर रख दिया.आँखों से अश्रु की धार बह रही थी. भक्त जलाराम ने उसके सर पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए कहा- "हीरजी काका, उठिए, आप यह क्या कर रहे हैं. आप मेरे पिताश्री के बराबर हैं.आपका स्थान मेरे चरणों में नहीं, ह्रदय में है". हीरजी ने रूंधे गले से कहा- "नहीं, मेरा सही स्थान आपके चरणों में ही है.आप मेरे बापा हो. मेरे पूजनीय जलाराम बापा हो. आज आपकी कृपा के कारण ही मैं                    
भला चंगा हूँ. आपको याद कर मन्नत मांगते ही एक हफ्ते में मेरा पेट दर्द दूर हो गया. दवा करके मैं थक गया था. आपका मैं जीवन भर आभारी रहूँगा. कृपया मन्नत के एवज का यह पांच बोरी अनाज सदाव्रत-अन्नदान के उपयोग के लिए  भेंट स्वरुप स्वीकार करें".भक्त जलाराम ने दरजी हीरजी के आग्रह को सहर्ष स्वीकार कर लिया. उन्होंने धन्वाद देते हुए कहा- "हीरजी काका, यह सब प्रभु श्रीराम की महिमा है.यह चमत्कार उन्हीं का है.मैं तो केवल उनका दास, भक्त हूँ. आपके द्वारा भेंट किये गए अनाज से भूखेजनों का पेट भरेगा, प्रभु श्रीराम आपका आगे भी कल्याण करेंगे".इसके बाद दरजी हीरजी और उनके मित्र पटेल पुनः भक्त जलाराम के चरण स्पर्श कर विदा हुए. इस तरह भक्त जलाराम के नाम की सर्वप्रथम मन्नत रखने वाले सफल श्रद्धालु के रूप में दरजी हीरजी भी प्रसिद्ध हुए. ( जारी ..... )                                            
                       
                              
        

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