सोमवार, 28 नवंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 14 )

जला सो अल्ला, वो करे सबका भला : जलाराम बापा मानव सेवा की एक प्रेरणा दायक मिसाल बन चुके थे. जात पांत और छुआछूत जैसी कुरूतियों से वे कोसो दूर थे. सर्वधर्म में उनकी आस्था थी. अपने द्वार आये दीनदुखियों और भूखेजनों की सेवा करते समय वे न तो उसकी जात पूछते थे और न ही उसका धर्म. उन्हें तो केवल अपना धर्म मालूम था, वह था मानव सेवा धर्म. इसी कारण जलाराम बापा के अनुयायी सभी धर्म के थे. कोई उन्हें भगत कहता, कोई साधु सेवक तो कोई फ़कीर मददगार के नाम से संबोधित करता. जलाराम बापा को स्मरण कर मन्नत रखने और उसके फलने का सिलसिला जारी था. प्रतिदिन कोई न कोई उपकृत श्रद्धालु मन्नत पूरी होने की खुशी में जलाराम बापा के घर भेंट लाने लगा.
वीरपुर गाँव में जमाल मियाँ नामक एक मुस्लिम रहवासी था. कई दिनों से वह दुखी था. उसका दस वर्षीय इकलौता पुत्र कोई गंभीर बीमारी के कारण बिस्तर पकड़ चुका था. उसकी तकलीफ बढ़ते ही जा रही थी. गाँव और आसपास के वैद्य तथा हकीम का इलाज भी कारगर साबित नहीं हुआ. जमाल मियाँ और उसकी बीबी हिम्मत हार चुके थे. एक दिन जमाल मियां की मुलाक़ात दरजी हीरजी से हो गयी. यह वही दरजी था, जिसका असहनीय पेट दर्द जलाराम बापा की मन्नत फलस्वरूप ठीक हो गया था. जमाल मियां को देख कर दरजी हीरजी ने पूछा- "क्या बात है जमाल मियाँ, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए, सब खैरियत तो है ना?" जमाल मियाँ ने उदासी के साथ कहा- "हीरजी भाई, हमने न जाने कौन से करम किये हैं, अल्ला हमसे नाराज है". हीरजी ने अचंभित होकर कहा- "मियाँ खुलकर बताओगे भी". तब जमाल मियाँ के आँखों में आसूं आ गए. फिर अपने आप को सामान्य करते हुए उसने अपने बेटे की अज्ञात असाध्य बीमारी का जिक्र करते हुए कहा- "हीरजी भाई, मेरे बीमार बेटे को कोई भी इलाज नहीं फल रहा है, समझ नहीं आ रहा है क्या करू?" हीरजी ने उसे दिलासा देते हुए कहा- "मियां, एक इलाज सूझ रहा है, इसके लिए तुमको न तो किसी वैद्य के पास जाना पडेगा, न ही किसी हकीम के पास. जात धरम से हटकर केवल प्रार्थना करनी पड़ेगी, तुमको अगर भरोसा हो तो कहूं". दुखी जमाल मियाँ की आँखों में कुछ चमक लौटी. उसने अधीर होकर पूछा- "हीरजी भाई आपकी मेहरबानी होगी, फ़ौरन बताओ, मुझे सब पर पूरा एतबार है. अल्ला करे, किसी तरह मेरा बेटा जल्द तंदुरूस्त हो जाए". हीरजी ने सुझाव देते हुए कहा- "मियाँ, तुम यह जानते ही हो पिछले दिनों मैं अपने पेट के दर्द से कितना परेशान था. तुम्हारे बेटे की तरह मुझे भी कोई इलाज नहीं फल रहा था. भला हो मेरे मित्र पटेल का, जिसकी सलाह पर मैंने भक्त जलाराम को याद कर दर्द ठीक हो जाने की मन्नत रखी, जो हफ्ते भर में पूरी हो गयी. अब देखो बिलकुल स्वस्थ होकर तुम्हारे सामने हूँ. मेरी मानों, तो तुम भी भक्त जलाराम बापा को दिल से याद कर बेटे के जल्द ठीक होने की मन्नत रखो. देखना कोई चमत्कार जरूर होगा". सब तरफ से हार चुके जमाल मियाँ ने मन में सोचा- "कहीं से कोई उम्मीद की रोशनी नजर नहीं आ रही है, अब इस नुस्खे को भी आजमाने में हर्ज ही क्या है?, शायद अल्ला मेहरबान हो जाए". यह सोच कर सहमति के साथ उसने हीरजी से कहा- "हीरजी भाई शुक्रिया, आपने मेरा हौंसला बढ़ा दिया. आपका मशविरा मुझे मुफीद लग रहा है". इतना कह कर जमाल मियां उसी वक़्त जमीन पर घुटने मोड़ कर इबादत की मुद्रा में बैठ गया और मन्नत मांगते हुए कहा- "हे भगत जला, मैं अपने बीमार बेटे के जीने की उम्मीद छोड़ चुका हूँ, अगर आपकी मेहरबानी से वह तंदुरूस्त हो जाता है तो मैं आपके सदाव्रत-अन्नदान के लिए चालीस बोरी अनाज भेंट स्वरुप देने आउंगा".
फिर जमाल मियाँ ने हीरजी को धन्यवाद देकर अपने घर की राह पकड़ी. घर आकर उसने सारा किस्सा अपनी बीबी को सुनाया.उसकी भी हिम्मत अफजाई हुई. रात होने को आई. इकलौते बीमार बेटे के बिस्तर के पास मियाँ
बीबी सेवा करते बैठे थे. बेटे को दर्द से कराहते देख दोनों का कलेजा फटा जा रहा था. इनकी भी आँखों से नींद काफूर हो गयी थी. बैठे बैठे रात गुज़री. अलसुबह पांच बजते ही बीमार बेटे ने पानी माँगा. माँ ने पास रखे मटके से पानी निकाल कर बेटे को पिलाया. उसे बिस्तर पर बैठाने में जमाल मियाँ ने भी मदद की. पानी पीने के बाद बेटे को गहरी नींद आ गयी. सूर्योदय होते ही बेटे की नींद खुल गयी. उसने माँ से कहा- "मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को दीजिये". यह सुन कर माँ की आँखों से खुशी के आंसू छलक आये. कई दिनों बाद बेटे ने खुद खाने के लिए कुछ माँगा था. माँ ने प्रसन्न भाव से हलवा बनाकर उसे खिलाया. फिर तो जैसे चमत्कार हो गया. हलवा खाने के बाद बेटा बिस्तर छोड़ कर खडा हो गया. यह अजूबा देखकर माँ और जमाल मियाँ की खुशी का ठिकाना न रहा. माँ और जमाल मियाँ ने जलाराम बापा को तहे दिल से याद कर उनका शुक्रिया अदा किया. दूसरे दिन तो बेटा पूरी तरह
स्वस्थ होकर हँसते फिरते खेलने कूदने लग गया.
उसी वक़्त जमाल मियाँ यह खुशी का पैगाम देने दौड़ कर दरजी हीरजी की दुकान जा पहुंचा. उसे अत्यंत प्रफ्फुल्लित अवस्था में देख कर हीरजी ने उत्सुकतावश पूछा- "क्या बात है जमाल मियाँ, आज बड़े खुश नजर आ रहे हो, क्या कोई छुपा खजाना मिल गया है?" उसने आकाश की तरफ देख दोनों हाथ उठा कर कहा- "हाँ, आज मैं बहुत खुश हूँ. मुझे मेरा असली खजाना यानी मेरा बेटा भगत जला की मेहरबानी से तंदुरूस्त हालत में वापस मिल गया है. या अल्ला तेरा लाख लाख शुक्रिया. जला सो अल्ला, वो करे सबका भला". हीरजी ने कहा- "जमाल मियाँ,                
भगत जला की कृपा से तुम्हारा बीमार बेटा अब बिलकुल स्वस्थ हो गया है, यह जानकार मुझे भी अत्यंत प्रसन्नता हो रही है. मैं भी उनकी कृपा का कर्जदार हूँ. भगत जला वास्तव में चमत्कारिक संत पुरूष हैं. वे अब तो सबके बापा हैं. वे वीरपुर गाँव की अनमोल धरोहर हैं". जमाल मियाँ ने भी इस धारणा का समर्थन करते हुए कहा- "हीरजी भाई, आप सौ फीसदी सच बयान कर रहे हैं. अब जला मेरे अल्ला हैं. मैं उनका यह कर्ज जिन्दगी भर नहीं चुका सकता. आपका भी शुक्रिया, अगर आपने सलाह न दी होती तो मेरा बेटा मुझसे छीन जाता. एक मेहरबानी और कर दीजिये. भगत जलाराम के घर आप मेरे साथ चलिए. मन्नत पूरी होने के एवज में मुझे चालीस बोरी अनाज सदाव्रत-अन्नदान के लिए भेंट स्वरुप देना है". हीरजी ने कहा- "यह तो मेरा सौभाग्य होगा, जलाराम बापा के दर्शन हो जायेंगे, उनके दर्शन जितनी बार करो कम है. जल्दी चलिए, नेक काम में देर नहीं होना चाहिए".
तत्पश्चात जमाल मियाँ ने बाजार से चालीस बोरी अनाज खरीद कर उसे बैल गाडी में डलवा कर हीरजी के साथ
जलाराम बापा के घर पहुँच गए. दरवाजे के पास बैल गाडी खडी करवा कर जमाल मियाँ तेज क़दमों से घर के भीतर चले गए. उनके पीछे पीछे हीरजी भी थे. जलाराम बापा प्रभु भक्ति में ध्यान मग्न होकर बैठे थे. जमाल मियाँ
उनके पैरों में गिर गए. अश्रुपूरित होकर भक्ति भाव से हाथ जोड़ कर उसने कहा- "भगत जी, आपकी मेहरबानी से
मेरे बीमार बेटे को नयी जिन्दगी मिली है, मुझे भी जीने की राह मिली है. आपका जिन्दगी भर आभारी रहूँगा. मेरी भेंट मंजूर करने की मेहरबानी भी करें". जलाराम बाप ने आशीर्वाद देते हुए कहा- "जमाल भाई, ऊपर वाला सबका
भला करता है. उस पर सदा भरोसा रखना". हीरजी ने भी जलाराम बापा के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया.
जाते जाते जमाल मियाँ ने जयकारा लगाया- "जला सो अल्ला ... वो करे सबका भला". ( जारी )      
                                                    
                                 

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