मंगलवार, 22 नवंबर 2011

Jalaram bapaa kee jeewan-kathaa ( 8 )

१७ साल की आयु में तीर्थ यात्रा करने गए : जलाराम के पड़ोसी बनिया दुकानदार के व्यव्हार में अब बेहद बदलाव आ गया था.उस दिन की चमत्कारिक घटना देखने के बाद जलाराम के प्रति उसमे आदर भाव जागृत हो गया था.वह स्वयं अब जलाराम की प्रभु भक्ति की शक्ति का प्रचार करने लगा था.आसपास के गाँव में भी यह घटना प्रचारित हो गई थी.जिस अनुपात में पास पड़ोस के दुकानदारों और गाँव वालों की नज़रों में जलाराम सच्चे प्रभु भक्त के रूप में समा गए थे, उससे कहीं ज्यादा खुद जलाराम के ह्रदय में प्रभु भक्ति और आस्था बढ़ गई थी.
दुकानदारी में अब जलाराम का मन नहीं लग रहा था.हालांकि वे रोज दुकान खोलने और बंद करने की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे थे.लेकिन चाचा वालजी जलाराम के अंतर्द्वंद को भलीभांति समझ रहे थे.माकूल समय देख एक दिन उन्होंने जलाराम से पूछ लिया-"अरे जला, उस रोज मैंने तुझे सरे राह सबके सामने डाटा, जबरिया शक किया, तुझे बुरा तो नहीं लगा?" जलाराम ने मुस्कुराते हुए कहा-" बिलकुल नहीं काका,आपने अपने हिसाब से जो कुछ किया ठीक किया.समाज में, बाजार में रहना है तो सबकी अच्छी बुरी बातें सुननी ही पड़ती है, आपने भी अगर उनकी सुनी तो क्या गलत किया?"  जलाराम के जवाब से वे संतुष्ट नहीं हुए, इसलिए फिर कुरेदते हुए पूछा-" जला, अगर तू मुझसे नाराज नहीं है तो आजकल दुकान में गुमसुम क्यों बैठा रहता है? तेरी उदासी को कोई न कोई कारण तो जरूर होगा". जलाराम ने चाचा की जिद को देखते हुए मन की बात कह दी- "काका, सच बात तो यह है
मेरे प्रभु मुझे लगातार याद कर अपने पास बुला रहे हैं.वे एक बार मुझसे मिलना चाह रहे हैं.दिन हो या रात, हर पल
उनकी पुकार मुझे सुनाई देती है.मैं भी प्रभु से मिलने बेताब हूँ." चाचा ने झल्ला कर कहा- "जला, तू साफ़ साफ़ बता, चाहता क्या है?"जलाराम ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए मंशा जाहिर की-"काका,मेरे मन में तीर्थ यात्रा करने
की बहुत इच्छा है.यदि आपकी आज्ञा मिलेगी तो मेरे मन की मुराद पूरी हो जायेगी". चाचा वालजी सोच में डूब गए.
फिर समझाइश देते हुए कहा-"जला, अभी तेरी आयु तीर्थ यात्रा करने के लायक नहीं है. तेरी उम्र अभी १७ वर्ष है. तुझे पता नहीं तीर्थ यात्रा पर जाना कितना कठिन है. तू बड़ा हो जा, मैं स्वयं तेरी तीर्थ यात्रा का पूरा प्रबंध कर दूंगा".अंततः जलाराम ने चाचा वालजी की सलाह मानते हुए बात वहीं ख़त्म कर दी.लेकिन मन में तीर्थ यात्रा पर
जाने की कसक जारी थी.वास्तव में उस जमाने में तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए आवश्यक वाहन साधन सबको उपलब्ध नहीं थे.घोड़ा या ऊंट गाडी भी सीमित संख्या में थे.ज्यादातर श्रद्धालु पदयात्रा करते थे.इसलिए तीर्थ यात्रा
में समय और श्रम अधिक लगता था.हालांकि यह सब परेशानी जलाराम वीरपुर से गुजरने वाले तीर्थ यात्रियों के मुंह से सुन चुके थे.इसलिए उन्होंने अपने चाचा से ज्यादा बहस नहीं की.
कुछ दिन तक जलाराम ने अपने घर वालों से तीर्थ यात्रा के सम्बन्ध में कोई चर्चा नहीं की.लेकिन मन बैचेन था.
माता,पिताश्री और चाचा का दिल दुखा कर वे जिदपूर्वक तीर्थ यात्रा पर नहीं जाना चाहते थे.इसलिए उनकी अनुमति की वे धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने लगे.धीरे धीरे जलाराम का मन सांसारिक क्रियाकलापों और दुकानदारी
से उचटने लगा था.प्रभु भक्ति को छोड़ कर अब सब कुछ अनियमित सा हो गया था.अपने गाँव वीरपुर को ही तीर्थ स्थल मान कर धार्मिक गतिविधियाँ बढ़ा दी.दिन रात पूजा पाठ, भजन कीर्तन में मग्न रहने लगे.उनका सेवा कार्य  भी पहले की तरह जारी रहा.जलाराम की भक्ति के प्रभाव को देखते हुए आखिरकार एक दिन पिताश्री और चाचा ने आपस में सलाह मशविरा कर जलाराम को तीर्थ यात्रा पर जाने की सहर्ष अनुमति दे दी.अनुमति पाते ही जलाराम फूले नहीं समाये.बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर जलाराम प्रभु का स्मरण करते हुए तत्काल तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े.
चारों धाम की यात्रा पूरी कर करीब दो साल बाद जलाराम सकुशल अपने गाँव वीरपुर लौटे.वे १९ साल के हो चुके थे.  
तीर्थ यात्रा के दौरान हुए अनुभवों और अनुभूति को वे भूल नहीं पा रहे थे. संत महात्माओं के मिले सानिध्य से वे अभिभूत थे.इसी के कारण उनमें अब वैराग्य की भावना प्रबल रूप से जागृत हो गई थी.सन्यासी जीवन जीने की उत्कंठा बढ़ गई थी.चारों धाम की यात्रा ने उनका ह्रदय पूरी तरह धार्मिक बना दिया था.सांसारिक कार्य और चाचा की दुकानदारी में अब उनकी कोई रुचि न थी.दुकान फिर सम्हालने चाचा के आग्रह को उन्होंने नम्रता से ठुकरा
दिया.चाचा वालजी ने उनके मन को टटोला- "जला, क्या बात है, तू दुकान नहीं आ रहा है?" जलाराम ने शांतचित्त
हो कर कहा- "काका,अब मेरी दुनिया अलग है और आपकी अलग. मुझे तो अब केवल प्रभु की दुकान में ही बैठना
है". चाचा वालजी ने पूछा- "जला, माना अब तेरी दुनिया अलग है, लेकिन पूरा दिन करेगा क्या?" जलाराम ने स्मित मुस्कान के साथ कहा- "अब तो मुझे मेरे प्रभु का व्यवसाय बढ़ाना है".चाचा समझ गए जलाराम अब पूरी तरह अपने प्रभु के भक्ति रंग में सराबोर हो चुका है.इसलिए आगे चुप रहना उचित समझा.
महात्मा भोजल राम को गुरू बनाया, कंठी बंधवाई : दिन बीतने लगे.अब जलाराम सब मायाजाल से मुक्त हो चुके थे.संत महात्मा ही अब उनके सगे संबंधी थे.उनकी संगत में समय व्यतीत होने लगा.पूजा पाठ, भजन कीर्तन में कब समय बीत जाता था, उन्हें पता ही नहीं लगता था.भूखे जन की चिंता रहती थी, लेकिन खुद की भूख भुला देते थे.एक दिन जलाराम के मन में सवाल उठा-अब तक उन्होंने किसी को अपना गुरू क्यों नहीं बनाया है, गुरू से कंठी क्यों नहीं बंधवाई है? गुरू के बिना तो भक्ति जीवन अधूरा है.प्रभु प्राप्ति का सही मार्ग तो वे ही बता सकते हैं.लेकिन अपना गुरू किनको बनाऊं? इसी उधेड़बुन में जलाराम एक दिन अपने गुरू की खोज में निकल पड़े. पदयात्रा करते हुए वे जब अमरेली के समीप फतेपुर गाँव पहुंचे, तब उनकी भेंट महात्मा भोजल राम से हुई.उनके चरण स्पर्श कर जलाराम ने अपनी आंतरिक अभिलाषा व्यक्त की.महात्मा भोजल राम श्रद्धालुओं के जरिये जलाराम की प्रसिद्धि से वाकिफ थे.महात्मा ने जलाराम से कहा - "बच्चा, अभी तेरी उम्र किसी को गुरू बनाने की नहीं है". जलाराम ने हाथ जोड़ते हुए कहा- "गुरूजी, भक्ति और शिष्यता के लिए उम्र कभी बाधक नहीं होती". भोजल राम विद्वान् महात्मा थे,इसलिए उन्होंने तुरंत अपनी सहमति देते कहा-" ठीक है बच्चा, तुझे अपना चेला बनाने में मुझे भी प्रसन्नता होगी".फिर उन्होंने जलाराम को कंठी बांधकर अपना शिष्य बना लिया.
कुछ दिन तक जलाराम वहीं अपने गुरू की सेवा करते रहे.उनसे गुरू ज्ञान प्राप्त करते रहे.एक दिन जलाराम ने उनसे कहा- "गुरूजी,अब अगर आपका आदेश हो तो मैं वापस अपने गाँव जाऊं?" गुरू महात्मा भोजल राम ने उत्सुकतावश पूछा- "बच्चा, वहां जाकर क्या करेगा?" जलाराम ने जवाब दिया- "अपने गाँव वीरपुर में मैं सदाव्रत प्रारंभ करना चाहता हूँ". यह सुन कर गुरू खुश हो गए, उन्होंने अनुमति देते हुए कहा- "जा बच्चा, सदाव्रत शुरू कर, मेरा आशीर्वाद सदैव तेरे साथ रहेगा. घर वालों के साथ साथ साधुजनों, महात्माओं और भिक्षुओं की सेवा कर.इश्वर तेरा भला करेगा.आगे चलकर सारी दुनिया में तेरा नाम रोशन होगा". आज्ञा मिलते ही जलाराम ने अपने गुरू भोजल राम के चरण स्पर्श किये और वीरपुर गाँव के लिए प्रस्थान किया.
 ( जारी ..... )                                          
  
                

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